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लाइफस्टाइल: पर्यावरण-संरक्षण की जिम्मेदारी सबकी भागीदारी वर्तमान में हर बीतते दिन के साथ पूरी दुनिया में पर्यावरण-संकट गहराता जा रहा है। इसका कारण भी हम सब ही हैं, इसलिए इसके संरक्षण की जिम्मेदारी भी हम सभी को मिलकर उठानी होगी।
हिन्दी सिनेमा का एक बहुत जाना-माना चेहरा हैं जूही चावला। यह उनकी एक बहुत बडी $खासियत है कि सिनेमा के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों से भी वे गहरे तक जुड़ी रहती हैं। पिछले काफी समय से मेरी चिंता हमारे देश के पर्यावरण को लेकर बढ़ती जा रही है, जिसमें खासतौर पर प्लास्टिक का बढ़ता प्रयोग और उससे होने वाला नुकसान शामिल हैं। प्लास्टिक के बढ़ते नुकसान को देखते हुए यदि हम जल्द ही सचेत नहीं हुए तो आने वाले समय में यह प्लास्टिक हम सभी के जीवन का भारी दुश्मन साबित होगा।
हमारे देश में बहुत कम लोग पर्यावरण को लेकर जागरूक हैं। लोग सोचते हैं कि प्लास्टिक कैसे हमारे पर्यावरण के लिए नुकसानदेह हो सकता है। दरअसल, नुकसान प्लास्टिक का प्रयोग उतना नहीं करता, जितना इसके कचरे का निपटान न हो पाना खतरनाक है। प्लास्टिक अलग-अलग रसायनों से बना पदार्थ है, जिसका इस्तेमाल सबसे ज्यादा पैकेजिंग के लिए होता है। यदि इसके कचरे की रिसाइक्लिंग विश्व की अनुमोदित प्रक्रियाओं और दिशा-निर्देशों के अनुसार की जाए तो यह पर्यावरण या स्वास्थ्य के लिये खतरा न बने। साधारण प्लास्टिक से ज्यादा नुकसानदेह प्लास्टिक के थैले होते हैं, जो आपको हर छोटी-बड़ी दुकानों पर छोटे-मोटे सामान को रखकर पकड़ा दिये जाते हैं। प्लास्टिक बैग्स बनाने में जिन कैमिकल्स का इस्तेमाल होता है, उनसे बहुत सी बीमारियां हो जाती हैं।
किराने वाले थैले आम तौर पर एचडीपीई के, जबकि ड्राई क्लीनर के थैले एलडीपीई से बने होते हैं। प्लास्टिक मूल रूप से विषैला नहीं होता, परन्तु प्लास्टिक के थैले रंग और रंजक, धातुओं और अन्य तमाम प्रकार के अकार्बनिक रसायनों को मिलाकर बनाए जाते हैं। इनमें से कुछ से कैंसर होने की आशंका होती है तो कुछ खाद्य पदार्थों को विषैला बनाते हैं। रंजक पदार्थों में कैडमियम जैसी धातुएं होती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए खतरा साबित हो सकती हैं।
प्लास्टिक थैलियों का निपटान यदि सही ढंग से नहीं किया जाता है तो वे जल निकास (नाली) प्रणाली में अपना स्थान बना लेती हैं, जिससे नालियों में अवरोध पैदा होकर पर्यावरण को अस्वास्थ्यकर बना देता है। इससे पानी से पैदा होने वाली बीमारियां हो जाती हैं। रिसाइकिल किये गए अथवा रंगीन प्लास्टिक थैलों में ऐसे रसायन होते हैं, जो जमीन में पहुंच जाते हैं तो मिट्टी और भूगर्भीय जल को विषाक्त बना देते हैं। जिन उद्योगों में पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर तकनीक वाली रिसाइकिलिंग इकाइयां नहीं लगी होतीं, वे इससे पैदा होने वाले विषैले धुएं से पर्यावरण के लिए समस्या पैदा कर सकते हैं। प्लास्टिक की थैलियों, जिनमें बचा हुआ खाना पड़ा होता है, उन्हें पशु अपना आहार बना लेते हैं, जिसके नतीजे उनके लिए नुकसानदायक हो सकते हैं। चूंकि प्लास्टिक सहज रूप से मिट्टी में घुल-मिल नहीं सकता, लेकिन उसे यदि मिट्टी में छोड़ दिया जाए तो भूगर्भीय जल की रिचाॄजग को रोक सकता है।
ज्यादातर विकसित देशों में अलग-अलग तरह का कचरा फेंकने के लिए अलग-अलग ड्रम होते हैं, ताकि इनकी रिसाइक्लिंग की जा सके। छोटे से छोटा प्लास्टिक का टुकड़ा बहुत सावधानी से फेंका जाना चाहिए।
फिर भी यह एक बहुत कड़वा और भयानक सत्य है कि प्लास्टिक को फेंकना और जलाना दोनों ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। प्लास्टिक जलाने पर भारी कैमिकल उत्सर्जन होता है, जो श्वसन प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
सरकार और पर्यावरण संरक्षण संस्थाओं के अलावा भी हर एक नागरिक की इसके प्रति कुछ जिम्मेदारियां हैं, जिन्हें अगर समझ लिया जाए तो पर्यावरण को होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसके अलावा भी कुछ बातों का खास ध्यान रखना जरूरी है, जैसे-
बाजार जाते वक्त अपने साथ कपड़े या कागज के थैले लेकर जाएं। .डिस्पोजेबल या ऐसे प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचें, जिसे इस्तेमाल के बाद फेंकना होता है। मिट्टी के बर्तनों के इस्तेमाल को बढ़ावा दें और प्लास्टिक के सामान का कम इस्तेमाल करें। प्लास्टिक की पीईटीई और एचडीपीई प्रकार के सामान चुनें। प्लास्टिक बैग और पोलिएस्ट्रीन फोम को कम से कम इस्तेमाल करें।
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Deepa Sahu
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