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बचपन में संतान को जैसी शिक्षा दी जाती है, उनका विकास उसी प्रकार होता है
संसार में उस व्यक्ति का जीवन धरती पर स्वर्ग के समान है, जिसकी संतान आज्ञाकारी हो, पत्नी संस्कारवान और परिवार को जोड़कर रखने वाली हो और जो अपने कमाए हुए धन से संतुष्ट हो. ये तीनों चीजें बहुत भाग्य से ही किसी को मिलती हैं.
झूठ बोलना, उतावलापन, दुस्साहस, छल-कपट, मूर्खतापूर्ण कार्य करना, लोभ करना, अपवित्रता और निर्दयता, ये सभी स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं. हालांकि आज के समय में शिक्षित महिलाओं ने इस सोच को काफी हद तक बदल दिया है, इसलिए उनसे ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती.
कुछ दुख ऐसे हैं जो व्यक्ति को अंदर से जला देते हैं और वो उसकी पीड़ा चाहकर भी किसी के सामने प्रकट नहीं कर पाता. पत्नी के वियोग का दुख, अपने भाई-बंधुओं से प्राप्त अपमान का दुख, कर्ज का बोझ, दुष्ट राजा की सेवा करने का दुख और निर्धनता का दुख, ऐसा ही है.
बचपन में संतान को जैसी शिक्षा दी जाती है, उनका विकास उसी प्रकार होता है. ऐसे में माता पिता का कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और संस्कार दें. ताकि उनके बेहतर चरित्र का निर्माण हो सके.
अगर आपके बच्चे ने कोई गलत कार्य किया है तो माता पिता को कभी उसकी गलती का नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. न ही उसे उस समय प्यार से समझाना चाहिए. कई बार बच्चे को डांटने और सख्त व्यवहार करने की जरूरत होती है.
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