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इस गांव में आज भी पत्थर के बर्तनों में खाते हैं दाल बाटी चूरमा, स्वाद ऐसा की भूल जायेगें सब कुछ

Admin4
16 Aug 2023 10:27 AM GMT
इस गांव में आज भी पत्थर के बर्तनों में खाते हैं दाल बाटी चूरमा, स्वाद ऐसा की भूल जायेगें सब कुछ
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राजस्थान। जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर रैणी तहसील के डोरोली गांव में एक मंदिर है, जहां खाना बनाने और खाने के लिए पत्थर के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है. हालाँकि, वर्तमान भौतिकवाद ने इस परंपरा को भी प्रभावित किया है। लेकिन मंदिर पर पत्थर के बर्तन आज भी मौजूद हैं। खाना पकाने और खाने के लिए उपयोग किया जाता है यह गांव पत्थर के बर्तनों के लिए मशहूर है रैणी तहसील का डोरोली गांव तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है. यहां की काले पत्थर से बनी वस्तुएं दूर-दूर तक प्रसिद्ध रही हैं। लगभग तीन दशक पहले तक यहां पत्थर का सामान बनाने का काम बहुतायत में होता था। यहां रहने वाले कारीगर आटा पीसने की चक्की, मसाला पीसने की चक्की, बट्टा, चकला, आटा गूंथने के लिए कथड़ी आदि तैयार कर बेचते थे। इस गांव में रहने वाले कारीगर पुश्तैनी काम करते थे। धीरे-धीरे यहां पत्थरों का काम करने वाले कारीगर कम होते गए। लेकिन, अब भी कई कारीगर पत्थर के बर्तन बनाते हैं।
डोरोली गांव में एक पुराना हनुमान मंदिर है, गांव के लोगों की इस मंदिर में गहरी आस्था है. लोग यहां सामानी व अन्य आयोजन करते रहते हैं। इस मंदिर में हनुमानजी को चूरमा बाटी दाल का भोग लगाने की परंपरा है। यहां खाने के लिए विशेष प्रकार के पत्थर के बर्तनों का उपयोग किया जाता है। यह पत्थर का बर्तन एक विशेष प्रकार का होता है, जिसमें दाल, सब्जी, चूरमा या अन्य खाद्य पदार्थ रखने के लिए अलग-अलग स्थान बने होते हैं। लोग इन पत्थर के बर्तनों में चूरमा बाटी दाल खाते हैं. खास बात यह है कि लोग धार्मिक आयोजनों में इनका उपयोग करने के बाद इन्हें धोकर साफ कर यहीं छोड़ जाते हैं। इसका फायदा यह हुआ कि लोगों को आयोजनों में खाने के लिए बर्तनों की व्यवस्था नहीं करनी पड़ती। इस मंदिर में धार्मिक आयोजनों में वृद्धि हुई है। लेकिन अब भी पत्थर के बर्तनों में खाना खाने की परंपरा है.
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