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आज भी 50 प्रतिशत महिलाएं पीरियड्स में यूज करती हैं कपड़ा कहीं आप तो नहीं कर रही ये गलती

Shiddhant Shriwas
18 May 2022 7:14 AM GMT
आज भी 50 प्रतिशत महिलाएं पीरियड्स में यूज करती हैं कपड़ा कहीं आप तो नहीं कर रही ये गलती
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इस आयु वर्ग की 78 प्रतिशत महिलाएं माहवारी के दौरान एक स्वच्छ प्रक्रिया अपनाती हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि, 15-24 साल की उम्र की करीब 50 फीसदी महिलाएं अभी भी माहवारी के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। विशेषज्ञों ने इसके लिए माहवारी के बारे में जागरूकता की कमी और वर्जनाओं को जिम्मेदार ठहराया है। विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि यदि किसी अस्वच्छ कपड़े का दोबारा इस्तेमाल किया जाता है, तो इससे कई तरह के स्थानीय संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

64 प्रतिशत महिलाएं करती हैं नैपकिन का उपयोग
हाल ही में जारी एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट में, 15-24 वर्ष की आयु की महिलाओं से पूछा गया था कि वह माहवारी के दौरान सुरक्षा के लिए कौन-सी विधियों का उपयोग करती हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में 64 प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं, 50 प्रतिशत महिलाएं कपड़े का उपयोग करती हैं, और 15 प्रतिशत महिलाएं स्थानीय रूप से तैयार नैपकिन इस्तेमाल करती हैं। कुल मिलाकर, इस आयु वर्ग की 78 प्रतिशत महिलाएं माहवारी के दौरान एक स्वच्छ प्रक्रिया अपनाती हैं।
महिलाओं को हो सकती है ये समस्या
स्थानीय रूप से तैयार किए गए नैपकिन, सैनिटरी नैपकिन, टैम्पोन और माहवारी कप सुरक्षा के स्वच्छ तरीके माने जाते हैं। माहवारी के दौरान स्वच्छता के अभाव में होने वाले संक्रमण के बारे में गुरुग्राम के सी.के. बिड़ला अस्पताल में प्रसूति और स्त्री रोग विभाग की चिकित्सक आस्था दयाल कहती है, 'कई अध्ययनों से पता चला है कि अस्वच्छता के चलते बैक्टीरियल वेजाइनोसिस या यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (यूटीआई) जैसे प्रजनन ट्रैक के संक्रमण हो सकते हैं जो अंततः पैल्विक संक्रमण बन जाते हैं।' उन्होंने कहा कि चूंकि ये संक्रमण पेल्विस तक जा सकते हैं, अत: महिलाएं गर्भवती होने में कठिनाई या समय से पहले प्रसव (जिसके परिणामस्वरूप समय से पहले जन्म) जैसी गर्भावस्था संबंधित जटिलताओं का सामना कर सकती हैं।'
स्वच्छ विधि नहीं अपनाती कुछ महिलाएं
एनएफएचएस की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिन महिलाओं की स्कूली शिक्षा 12 साल या उससे अधिक है, उनमें बिना स्कूली शिक्षा वाली महिलाओं (90 प्रतिशत बनाम 44 प्रतिशत) की तुलना में स्वच्छता पद्धति का उपयोग करने की संभावना दोगुनी से अधिक है। 90 प्रतिशत शहरी महिलाओं की तुलना में, 73 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं माहवारी सुरक्षा के एक स्वच्छ तरीके का उपयोग करती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार (59 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (61 प्रतिशत) और मेघालय (65 प्रतिशत) में सबसे कम महिलाएं माहवारी संरक्षण की एक स्वच्छ विधि अपनाती हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं करती हैं कपड़े का उपयोग
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुटरेजा कहती हैं, ''यह सर्वे शिक्षा और माहवारी के दौरान सुरक्षा की जरूरत में सीधा संबंध बताता है। उन्होंने कहा कि सर्वे में बिना स्कूली शिक्षा वाली 80 प्रतिशत महिलाओं ने सैनिटरी पैड का उपयोग करने की सूचना दी है, जबकि 12 या अधिक वर्षों की स्कूली शिक्षा वाली केवल 35.2 प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी पैड का उपयोग करती हैं। मुटरेजा ने कहा कि माहवारी की सुरक्षा के लिए कपड़े का उपयोग शहरी क्षेत्रों (31.5 प्रतिशत) की महिलाओं की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं में अधिक (57.2 प्रतिशत) होता है।
माहवारी को लेकर शर्म करती हैं महिलाएं
माहवारी के बारे में बोलने की वर्जना महिलाओं को स्वच्छ तरीकों तक पहुंचने से हतोत्साहित करती है। माहवारी के दौरान स्वच्छता के लिए लड़कियों की शिक्षा में निवेश की आवश्यकता है, साथ ही सामाजिक मानदंडों और व्यवहारों को बदलने के लिए व्यापक सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार अभियानों की आवश्यकता है।''सामाजिक कार्यकर्ता और सामाजिक अनुसंधान केंद्र (सेंटर फॉर सोशल रिसर्च) की निदेशक रंजना कुमारी ने कहा कि माहवारी के दो पहलुओं को समझना महत्वपूर्ण है। इसमें पहला है माहवारी से जुड़ी शर्म और दूसरा यह कि लड़कियां इसे किसी के साथ साझा नहीं करती हैं।
लड़कियों के लिए स्वच्छता बेहद आवश्यक
पूनम ने कहा कि प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) के तहत देश भर के केंद्रों में सैनिटरी नैपकिन एक रुपये प्रति पैड की कीमत पर उपलब्ध कराए जाते हैं। उन्होंने कहा, 'सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नैपकिन के लिए सरकार द्वारा कराई जा रही उपलब्धता एक रुपये में है। अगर आपको 12 नैपकिन की भी जरूरत है तो आपको माता-पिता से 12 रुपये मांगने की जरूरत है और महिलाएं उन्हें सूचित करने से कतराती हैं। उन्होंने कहा, 'इसके अलावा, माता-पिता सोचेंगे कि यह एक बेकार खर्च है, इसलिए माता-पिता को भी परामर्श देने की आवश्यकता है कि लड़कियों के लिए स्वच्छता आवश्यक है।'


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