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सुगंध का इतिहास बहुत पुराना है. हमारे यहाँ विभिन्न प्रकार की सुगंध का प्रयोग राजा महाराजाओ के काल से ही होता आया है . परफ्यूम को व्यक्ति की प्रतिष्ठा का प्रतिक भी माना जाता है. सुगंध किसी भी समय आप के मन को बहका सकती है, लेकिन जितना आसान इसे लगाना होता है उस से कही अधिक इसे बनाने में मेहनत और लगन शामिल होती है.
सुगंध को प्राकृतिक साधनों से निकाला जाता है और यह काम एक लंबी प्रक्रिया के बाद होता है. इसे बनाते वक़्त यह भी ध्यान रखना होता है की जो सुगंध आप बना रहे है वह उस फूल के जैसी गंध ही दे.
एक सवाल अक्सर पूछा जाता है कि क्या सुगंध त्वचा के लिए हानिकारक होती है? इस का जवाब यह है कि किसी भी सुगंध को बनाने के बाद बारबार इस बात की जांच की जाती है कि यह त्वचा के लिए हानिकारक तो नहीं. लेकिन अगर व्यक्ति अलेर्जिक है तो वह सुगंध का प्रयोग न करे.
सुगंध का एक फैशन ट्रेंड है. इसे दिन में, रात में, कैजुअल या खास अवसर आदि को ध्यान में रख कर लगाया जाता है. इस से व्यक्ति के व्यक्तिव का भी पता चलता है. पहले पुरुष हलकी सुगंध पसंद करते थे, अब स्ट्रोंग पसंद करते है. लेकिन महिलाए अभी भी हलकी और मीठी सुगंध ज्यादा पसंद करती है.
सुगंध को अधिक दिनों तक सलामत रखने के लिए उसे बॉक्स में रख कर फ्रिज में रखे और इस्तेमाल के लिए निकालने पर उसे धूप और रौशनी से बचाएं. ठडे और कम रोशनी में स्टोर करने से वह सालों तक चलती है.
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