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मनी (दाएं) एक शांत नर है. ‘‘मैंने उसे कभी बेवजह चिंघाड़ते, नखरे या ज़िद करते नहीं देखा है,’’ कहते हैं आनंद. ‘‘आप उसकी आवाज़ तभी सुन पाएंगे, जब जयश्री (बाएं) उससे बातचीत कर रही होगी. जयश्री के अलावा मनी केवल मिन्ना नामक एक दूसरी हथिनी से ही बात करता है. एकांत पसंद जयश्री भी मनी से तभी बात करती हैं, जब वे नदी में स्नान कर रहे होते हैं.’’
जब कोई हथिनी शिशु को जन्म देती है तो उसका पूरा झुंड बच्चे की देखभाल में लग जाता है, ताकि नई-नवेली मां को खाने के लिए अतिरिक्त समय मिल सके. इससे मां पर्याप्त दूध उत्पन्न कर पाती है और उसे अपनी खोई हुई शक्ति को दोबारा अर्जित करने में भी आसानी होती है. झुंड का हर सदस्य व्यक्तिगत रूप से बच्चे को दुलारता-सहलाता है, ताकि वो ख़ुद को अकेला न महसूस करे. इन हाथियों को कभी-कभी कड़े फ़ैसले भी लेने पड़ जाते हैं. यदि नवजात शिशु किसी बीमारी या चोट के चलते झुंड के साथ चल पाने में असमर्थ होता है तो उसे उसकी मां के साथ पीछे छोड़कर झुंड के बाक़ी सदस्य आगे बढ़ जाते हैं, ताकि दूसरे सदस्य संभावित ख़तरों से सुरक्षित और अप्रभावित रह सकें.
एक झुंड में सामान्यत: 20 सदस्य होते हैं, जिनका नेतृत्व सबसे अनुभवी मादा हाथी करती है. उसकी उत्तराधिकारी मादा झुंड में सबसे पीछे चलती हैं. जब झुंड बड़ा हो जाता है तब उसका विभाजन कर दिया जाता है, उत्तराधिकारी को नए झुंड का नेता बनाया जाता है. यदि ये दोनों झुंड भटकते हुए वर्षों बाद भी कहीं मिलते हैं तो वे एक-दूसरे का अभिवादन करने के लिए रुक जाते हैं. उसके बाद झुंड के नए बच्चों को एक-दूसरे से परिचित कराया जाता है. सालों से बिछड़े परिवार काफ़ी समय साथ रहकर एक-दूसरे पर स्नेह लुटाते हैं. कोत्तूर एलिफ़ेंट अभ्यारण्य में भले ही पारंपरिक झुंडवाला ढांचा न हो, पर वहां मिन्ना को मुखिया का सम्मान प्राप्त है और अम्मू उसकी उत्तराधिकारी की भूमिका निभाती है.
मादा मुखिया, नर नेतृत्वकर्ताओं की तरह आक्रामक नहीं होतीं. वे एक-दूसरे की उम्र का अंदाज़ा लगा लेती हैं और उसके बाद आपस में वरिष्ठता के अनुसार सामंजस्य बिठा लेती हैं. कभी-कभार किसी बड़े ख़तरे से निपटने के लिए या नए इलाक़े में सुरक्षित प्रवेश के उद्देश्य से हाथियों के झुंड आपसी विलय कर लेते हैं. कोत्तूर स्थित केंद्र में हाथियों के बीच इस बात को लेकर झगड़ा या मन-मुटाव नहीं होता कि इस तरह के सम्मिलित झुंडों का नेतृत्व कौन करेगा. सबसे उम्रदराज़ मादा को स्वाभाविक रूप से नेता चुन लिया जाता है. उद्देश्य पूरा होने के बाद सभी हाथी दोबारा अपने वास्तविक छोटे-छोटे झुंडों में बंट जाते हैं, फिर हर झुंड अपनी-अपनी राह चल देता है.
मादा हाथी के अंदर स्त्रियोंवाले गुण पांच वर्ष की उम्र से ही नज़र आने लगते हैं. सुंदरी (बाएं) तब छह या सात वर्ष की थी, जब पांच वर्षीय अगस्तिन को कोत्तूर सेंटर लाया गया था. ‘‘अगस्तिन बड़ा ज़िद्दी था और उसे वहां तालमेल बिठा पाने में भी दिक्कत हो रही थी,’’ बताते हैं आनंद. ‘‘सुंदरी तुरंत उसकी मदद के लिए पहुंच गई. वो अक्सर अपने सूंड से स्पर्श करके अगस्तिन को शांत करने की कोशिश करती थी. वो उससे धीमी आवाज़ में बात भी करती थी.’’
कोडानाड स्थित हाथी प्रशिक्षण केंद्र में रहनेवाले कृष्णा और गंगा हमउम्र हैं. एक बार कृष्णा के पैर में चोट लग गई, वो अधिक देर तक खड़ा नहीं रह पाता था. ऐसे में गंगा खेलने में उसकी मदद करती थी. कृष्णा आमतौर पर एक ओर करवट लेकर सोया रहता था, जिसके चलते उसी के वज़न से उसके अंगों को नुक़सान पहुंचने का ख़तरा पैदा हो गया था. समझदार गंगा ने स्थिति को भांप लिया. जब वो कृष्णा को अधिक देर तक सोते देखती तो उसके पास आ जाती और उसके गाल तथा सूंड को सहलाते हुए उसे खड़ा होने के लिए प्रेरित करती.
कौन हैं आनंद शिंदे?
अप्रैल 2012 में मुंबई के फ़ोटो-पत्रकार आनंद शिंदे काम के सिलसिले में केरल स्थानांतरित हो गए. चूंकि उनके लिए वह एक अनजान जगह थी और वे वहां की भाषा भी नहीं समझ पाते थे इसलिए उन्होंने छुट्टी के दिनों का सदुपयोग करने के लिए कोत्तूर और कोडानाड हाथी अभ्यारण्य जाना शुरू कर दिया, जहां हाथियों को पुनर्वसित कराने के केंद्र संचालित किए जाते हैं. त्रिशूर पुरम के एलिफ़ेंट फ़ेस्टिवल में प्रदर्शित उनकी तस्वीरें उन्हें प्रिंसिपल चीफ़ कंज़र्वेटर ऑफ़ फ़ॉरेस्ट (वाइल्डलाइफ़) और चीफ़ वाइल्डलाइफ़ वॉर्डन वी गोपीनाथ के क़रीब ले आईं. आनंद ने उनसे हाथियों के आसपास रहने और उनकी गतिविधियों का निरीक्षण करने की अनुमति मांगी. उसके बाद उन्होंने बड़ी ख़ामोशी से इन हाथियों की ज़िंदगी में झांकते हुए उनके आपस में संवाद साधने के तरीक़े को समझने की कोशिश की. उन्होंने पाया कि हाथी अहिंसक और शांति प्रिय प्राणी हैं. आगे चलकर आनंद ने हाथियों के साथ परस्पर विश्वास और स्नेह से एक मित्रवत संबंध कायम कर लिया. अब आनंद विभिन्न एलि़फेंट सेंटर्स में प्रेजेंटेशन के माध्यम से यह बताते हैं कि किस तरह प्रशासन नवजात हाथी शिशुओं की होनेवाली असमय मृत्यु की दर में कमी ला सकता है. हाथी के बच्चे सेंटर्स के माहौल से तालमेल बिठा सकें, इसके लिए प्रशासन को इन बच्चों के मनोविज्ञान को समझना होगा और इनकी सही देखभाल करनी होगी. डायलॉग विद एलिफ़ेंट्स नामक उनके फ़ोटोग्राफ़्स की सिरीज़ को मीडिया फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के नैशनल फ़ोटोग्राफ़ी कॉन्टेस्ट 2013 में सर्वश्रेष्ठ फ़ोटो स्टोरी के रूप में सम्मानित किया गया था. इस सिरीज़ की कुछ तस्वीरों के माध्यम से आनंद हमें उस तरीक़े और बुद्धिमत्ता से परिचित कराना चाहते हैं, जिसका सीधा संबंध हाथी समाज की कार्यप्रणाली और रहन-सहन से है.
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