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बच्चे के व्यवहार को बेहतर बनाने की बजाय उसे बिगाड़ देती हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बच्चों को छोटी-मोटी बातों के लिए जिद करते देख मां-बाप का दिल पिघल जाता है और वे बच्चों की बात मान लेते हैं। लेकिन, जब बच्चे बड़े होकर किसी ऐसी चीज के लिए जिद करते हैं जो मान पाना उनके लिए संभव नहीं है या जो बच्चों के लिए माता-पिता को ठीक नहीं लगती, तो मां-बाप के लिए ऐसे जिद्दी बच्चों को शांत कर पाना मुश्किल हो जाता है। माता-पिता कभी नहीं चाहेंगे कि उनके बच्चे अड़ियल या जिद्दी बने। हालांकि, रोजमर्रा की ज़िंदगी में लोग कई बार ऐसी गलतियां कर देते हैं जो उनके बच्चे के व्यवहार को बेहतर बनाने की बजाय उसे बिगाड़ देती हैं।
क्यों बन जाते हैं बच्चे जिद्दी?
लाड़-प्यार से बच्चों की परवरिश करने और बच्चों को जिद्दी बनाने में मदद करने वाली इन आदतों के बीच का फर्क खुद मां-बाप को आसानी से पता भी नहीं चल पाता और जब उन्हें बच्चे के जिद करने और बड़ों की बात ना समझने जैसे व्यवहार अपने बच्चे में दिखायी देते हैं तो माता-पिता का दिल अच्छे मां-बाप ना बन पाने के दुख से टूट जाता है। इस स्थिति से बचने के लिए छोटी उम्र से ही बच्चों को अनुशासित और अच्छे व्यवहार का महत्व समझाएं और माता-पिता उन गलतियों को दोहराने से बचें जो उन्हें जिद करना या अड़ियल बनना सिखाती हों। ऐसी ही कुछ आदतों के बारे में पढ़ें यहां-
ना मानें उनकी हर बात
छोटे बच्चों को अपनी बात मनवाने के लिए जिद करने की आदत होती है और जब वे देखते हैं कि उनके मां-बाप एक-दो बार कहने के बाद ही उनकी हर मांग पूरी हो जाती है तो वे जिद्दी बन जाते हैं। इसीलिए, माता-पिता को बच्चों की हर बात मानने से बचना चाहिए। कई बार मां-बाप पैसों की परवाह किए बगैर बच्चों के लिए महंगे खिलौने और स्कूटर्स आदि खरीद लेते हैं। लेकिन, जब आपके पास पैसे नहीं होंगे या वह किसी ऐसी चीज की डिमांड करेगा जिसे खरीद पाना आपके बस में नहीं है तो ऐसे में लाजमी है कि आपका बच्चा आपसे जिद करे। इसीलिए, कोई भी महंगा सामान खरीदते समय बच्चे को समझाएं कि पउस सामान की कीमत काफी ज्यादा है और इसीलिए, उसे अगली बार महंगे खिलौने कुछ समय बाद ही मिल सकेंगे। कभी-कभार बच्चे को सामान खरीदकर देने की बजाय उन्हें कुछ दिन इंतजार करने के लिए भी कहें।
बच्चों को सिखाएं जिम्मेदारी उठाना
कई बार घर के लाड़ले बच्चों को काम करने से मना कर दिया जाता है। या किसी घर में बड़े बच्चे तो घर के छोटे-मोटे कामों में हाथ बंटाते हैं पर छोटे बच्चों को काम नहीं करना पड़ता है। ऐसे में बच्चे ज़िम्मेदार बनने की बजाय आलसी और लापरवाह बन जाते हैं। बच्चों को जिम्मेदारी उठाना सिखाएं, बच्चों को घर में छोटे-छोटे कामों में हिस्सा लेना सिखाएं जैसे-टेबल पर रखीं गिलासों और प्लेट्स को अरेंज करना, अपने कपड़े फोल्ड करना और उन्हें अलमारी में रखना या बिखरे हुए खिलौने अरेंज करना। इन सब कामों से बच्चा जिम्मेदार बनेगा और अपना काम दूसरों पर थोपने जैसी आदत से बचेगा।
बच्चों को समय ना देना साबित हो सकता है बड़ी गलती
बच्चों को अच्छी परवरिश देने के लिए मां-बाप दोनों को मेहनत करनी पड़ती है। वहीं, मौजूदा समय में जहां वर्किंग कपल्स बढ़ती प्रतियोगिता और वर्क प्रेशर के कारण दिन में 12-15 घंटों तक बिजी रहते हैं वहीं, अधिकांश न्यूक्लियर परिवारों में जहां एक ही बच्चा होता है वहां माता-पिता के साथ बच्चे का समय भी कम ही बीतता है। साथ ही बच्चे फोन और टीवी या अन्य गैजेट्स को देखते रहते हैं। ऐसे में बच्चों और माता-पिता के बीच इमोशनल कनेक्ट भी बहुत कम होता है और बच्चे माता-पिता की बात भी मानने से इनकार करने लगते हैं।
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