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क्या आपका बच्चा भी रहता हैं गुमसुम, इस तरह करें अपने सेंसेटिव चाइल्ड को हैंडल

SANTOSI TANDI
5 Sep 2023 8:37 AM GMT
क्या आपका बच्चा भी रहता हैं गुमसुम, इस तरह करें अपने सेंसेटिव चाइल्ड को हैंडल
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अपने सेंसेटिव चाइल्ड को हैंडल
तनाव या डिप्रेशन आज के समय की बड़ी चिंता बन रहा हैं और जब भी इसकी बात आती हैं, तो वयस्कों, कामकाजी लोगों का ख्याल दिमाग में आता है, जबकि बच्चे भी इस समस्या से अछूते नहीं हैं। बच्चों से घर की रौनक और चहल-पहल होती हैं और जब आपका बच्चा गुमसुम रहने लेगे तो यह चिंता का विषय हैं। कई बार बच्चे सेंसेटिव हो जाते है जिस वजह से भी गुमसुम रहने लगते हैं। बच्चों के गुमसुम रहने को नजरअंदाज करना उनकी मानसिक सेहत पर बुरा असर डालता है। ऐसे में पेरेंट्स को समझदारी दिखाते हुए बच्चों के मन की बात जाननी चाहिए और उन्हें समझते हुए स्थिति को संभालना चाहिए। सेंसेटिव होने का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि आपके बच्चे में किसी भी प्रकार से आत्मविश्वास या सोशल स्किल्स की कमी है। लेकिन आपको उन्हें उभारने की जरूरत हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि किस तरह आप अपने सेंसेटिव चाइल्ड को हैंडल कर सकते हैं और उनका गुमसुम रहना दूर कर सकेंगे।
कम्यूनिकेट करें
जब आपको इस बारे में पता चले, तो सबसे पहले आप अपने बच्चे से बात करें। कोई भी कदम उठाने से पहले उसकी राय लें और उसके मन की बात जानने की कोशिश करें। ध्यान रखें कि आप जो भी कदम उठाते हैं, उसका सीधा असर आपके बच्चे की इमोशनल और मेंटल हेल्थ पर पड़ेगा इसलिए कुछ भी करने से पहले अपने बच्चे से जरूर बात कर लें। बात करने से हर चीज का हल निकल जाता है और निश्चित ही आपके बच्चे ही इस परेशानी को भी सुलझाने में आप उसकी मदद कर सकते हैं।
बच्चे के दोस्त बनें
अधिक संवेदनशील बच्चे की अच्छी परवरिश करने के लिए सबसे पहले आपको अपने पेरेंटिंग का तरीका बदलना होगा। उसका गाइड बनने से पहले आपको उसका दोस्त बनना होगा। इसके लिए सबसे पहले आप उसके विचार, उसकी राय को पूरी अहमियत दें। उसके तरीके को गलत न बताएं। वो जैसा है, उसे वैसा ही स्वीकार करें। उस पर विश्वास करें। उसे खुले मन से अपने विचार व भाव व्यक्त करने का मौका दें।
इमोशनल सहयोग दें उन्हें
जैसा कि बच्चों का मन बहुत कोमल होता है, इसलिए वो भावुक भी उतने ही होते हैं। बच्चाें को इमोशनल सहयोग भी बहुत जरूरी है। कई बार पेरेंट्स बच्चे को बहुत छोटी-छोटी बातों में भी डाटने लगते हैं, जोकि सही नहीं है। संवेदनशील बच्चे पेरेंट्स की बातों को दिल से लगा बैठते हैं। इस कारण बच्चे का सोचने का तरीका धीरे-धीरे नकारात्मक होने लगता है। इस कारण बच्चा और भी ज्यादा सेंसिटिव हो जाता है। इसलिए पेरेंट्स को बच्चों को इमोशनल रूप से स्पोर्ट करें। उन्हें भवानात्मक चोट न पहुंचने दें। यदि बच्चा को गलती कर रहा है, तो उसे सबके बीच डाटने के बजाए, अकेले में ले जाकर समझाएं। इसके अलावा, बच्चे को बार-बार टोकना पसंद भी नहीं आता है। इसलिए सेंसिटिव बच्चों की पेरेंटिंग में पेरेंट्स इन बातों का ध्यान रखें। बच्चों के लिए इमोशनल सहयोग बहुत जरूरी है।
बच्चों की शिकायत भी सुनें
अगर आपके और बच्चों के बीच की दूरी बढ़ रही है, तो इसका कारण भी आप दोनों के बीच ही होना चाहिए। ऐसा हो सकता है कि आप किसी मत पर बच्चे के हित के लिए डटे हों लेकिन आपका बच्चा इससे अलग सोच रखता हो। बच्चे की शिकायत सुनें। उसे आपकी शिकायत करने और आपके खिलाफ किसी फैसले को रखने का पूरा हक है। पहले बच्चे की बात सुनें, समझें और फिर बीच का रास्ता निकालें। अपनी मर्जी उस पर थोपने से आपको बचना चाहिए।
सेफ फील करवाएं
अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा आपसे हर बात कहे तो आपको सबसे पहले तो उसे सेफ फील करवाना होगा। उसे एहसास होना चाहिए कि वो आपसे अपनी परेशानी को शेयर कर सकता है और वो आपके साथ बात करने में ओपन होना चाहिए। उसे ये मालूम होना चाहिए कि आप उसकी बात सुनेंगे और उसकी प्रॉब्लम को इग्नोर नहीं करेंगे।
अलग-अलग अनुभवों से रूबरू कराएं
संवेदनशील बच्चे एक धारणा को पकड़कर बैठ जाते हैं, इसलिए उन्हें अलग-अलग तरह के अनुभवों से रूबरू कराना बहुत जरूरी होता है। इस तरह उनमें निर्णय लेने की क्षमता, समस्या का समाधान करने की तार्किक शक्ति तथा निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने की हिम्मत पैदा होगी।
हर चीज में नियम न लगाएं
यह सही है कि बच्चों को नियम सिखाना बहुत जरूरी है, लेकिन हर बात में उनके लिए नियम हो, यह जरूरी नहीं है। बच्चे की संवेदनशीलता का ध्यान रखते समय इस बात का भी पेरेंट्स को ख्याल रखना जरूरी है कि बच्चों को पर उतने ही नियम लगाएं, जितना अनुशासन के लिए जरूरी है। इससे बच्चे को एक अच्छा माहौल मिलेगा। बात-बात में नियम लगाने से बच्चों का मानसिक विकास भी प्रभावित होता है। हां, लेकिन जो नियम बच्चे के अनुशासन के लिए है, उन नियमों का पालन जरूर करवाइए। बच्चे के लिए कुछ नियमों का होना भी जरूरी है, नहीं तो बच्चा जिद्दगी हो जाएगा। संवेदनशील बच्चे बदलावों को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते।
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