लाइफ स्टाइल

क्या आप जानते हैं भारतीय ट्रेनों में AC Coach की शुरुआत कब हुई थी

Manish Sahu
10 Aug 2023 4:24 PM GMT
क्या आप जानते हैं भारतीय ट्रेनों में AC Coach की शुरुआत कब हुई थी
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लाइफस्टाइल: देश में ट्रेन एक ऐसा यातायात माध्यम माना जाता है जिससे सफर करना बेहद आसान और सस्ता होता है। एक शहर से दूसरे शहर और एक राज्य से दूसरे राज्य में जाना होता है तो कई लोग सबसे पहले ट्रेन से ही सफर करने के बारे में सोचते हैं।
ट्रेन से सफर करने का एक अलग ही मजा होता है। जब ट्रेन का टिकट AC Coach में हो तो शीशे से बाहर का नजारा भी देखने का मौका मिलता है और इंसान सर्दी-गर्मी से दूर भी रहता है।
वैसे तो आपने हजारों बार ट्रेन से सफर किया होगा, लेकिन अगर आपसे यह पूछा जाए कि भारतीय ट्रेनों में AC Coach को लगाने की शुरुआत कब हुई थी या पहली एसी ट्रेन कब चली थी, तो फिर आपका जवाब क्या होगा?
इस आर्टिकल में हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि भारत में कब एसी कोच वाली ट्रेन चली थी। आइए जानते हैं।
भारत में एसी ट्रेन कब चली थी?
भारत में एसी ट्रेन या कोच कब चली थी, इसका इतिहास बेहद ही दिलचस्प है। कहा जाता है कि भारत की पहली एसी ट्रेन साल 1928 में चली थी। इस ट्रेन को अंग्रेजों में अपनी सुविधा के लिए चलवाई थी।
ट्रेन में एसी कोच जोड़ने से पहले ट्रेन को 'पंजाब मेल' के नाम से जाना जाता था, लेकिन साल 1934 में एसी कोच जोड़ने के बाद इस ट्रेन का नाम बदलकर 'फ्रंटियर मेल' रख दिया गया। बाद इसका नाम फिर से बदल दिया गया और इसे 'गोल्डन टेम्पल मेल' रखा गया।
पहली एसी ट्रेन कहां से कहां तक चलती थी?
भारत की पहली एसी ट्रेन मुंबई सेंट्रल से अमृतसर तक चलती थी। हाका जाता है कि देश के बंटवारे से पहले यह पाकिस्तान के लाहौर और अफगानिस्तान से होते हुए मुंबई सेंट्रल तक जाती थी। यह ट्रेन उस समय की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन मानी जाती थी और अंग्रेज अधिकारी काफी संख्या में सफर करते थे। (5 स्टार होटल से कम नहीं यह रेलवे स्टेशन)
ट्रेन को कैसे ठंडा रखा जाता था?
ट्रेन को कैसे ठंडा रखा जाता था, उसकी कहानी भी बेहद रोचक है। पहली एसी ट्रेन को आज की तरह ठंडा रखने के लिए आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल नहीं किया जाता था।
कहा जाता है कि फ्रंटियर मेल को ठंडा रखने के लिए उस समय बर्फ की सिल्लियों का इस्तेमाल किया जाता था। पहले की ट्रेन में आइस चैंबर बनाया जाता था जिसमें बर्फ की सिल्लियों को डाला जाता था। बर्फ की सिल्लियों के पास पंखा मौजूद होता था और पंखा चलने पर ठंडी-ठंडी हवा आती थी। (रेलवे का मंथली पास ऐसे बनाएं)
15 मिनट लेट होने पर शुरू हो गई थी जांच
उस समय ट्रेन अपने समय की इतनी पाबंदी थी कि कभी भी लेट से नहीं चलती थी, लेकिन कहा जाता है कि एक बार ट्रेन अपने समय अनुसार 15 मिनट के देरी से पहुंची तो जांच के आदेश जारी कर दिए गए कि आखिर ट्रेन क्यों लेट पहुंची।
पंजाब मेल ट्रेन को लेकर एक अन्य कहानी है कि हिंदी फिल्म 'नेताजी सुभाष चंद्र बोस : द फॉरगॉटन हीरो' में इसका जिक्र है इसी ट्रेन में नेताजी बैठकर पेशवर गए थे और वहां से कबूल।
क्या आज भी गोल्डन टेम्पल मेल ट्रेन चलती है?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि समय के साथ इस ट्रेन का रंग-रूप बदलते रहा और आज भी यह ट्रेन चलती है। अब यह ट्रेन आधुनिक हो चुकी है और इसमें सभी प्रकार के एसी डिब्बे लगे हुए हैं।
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