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लाइफ स्टाइल
क्या आपको भी लगता है पब्लिक टॉयलेट यूज़ करने में डर? तो यह है टॉयलेट फ़ोबिया
Kajal Dubey
28 April 2023 1:50 PM GMT

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यदि आप सार्वजनिक शौचालय (पब्लिक टॉयलेट ) की सीट पर बैठने से पहले सावधानी बरतती हैं-ये सोचकर कि इस पर कई डरावनी चीज़ें विराजमान हैं, जो आपको बीमार कर देंगी तो ये जानना ज़रूरी है कि इसमें एसटीडीज़ (सेक्शुअली ट्रांस्मिटेड डिज़ीज़ेज़) शामिल नहीं हैं.
पार्वती कुट्टी*, सार्वजनिक शौचालय का प्रयोग करने का सोचकर भी परेशान हो जाती हैं. इतना ज़्यादा कि वे बाहर जाने के लिए ट्रेन की यात्रा से भी बचना चाहती हैं. ‘‘मैं समझती हूं कि यह कहना ठीक होगा कि मैं क़रीब-क़रीब माइसोफ़ोबिया (कीटाणुओं से जुड़ा पैथोलॉजिकल डर) से पीड़ित हूं. आपको मेरी ऑफ़िस डेस्क पर, मेरे बैग में और यहां तक कि मेरे बिस्तर के पास भी हैंड सैनिटाइज़र मिलेगा. सार्वजनिक शौचालयों से मुझे डर लगता था. अपेक्षाकृत साफ़ ऑफ़िस टॉयलेट्स से भी मैं घबराती थी. ये डर इतना हावी हो गया कि मैंने लू-ब्रेक्स लेना भी बंद कर दिया. मैं सेक्शुअली ट्रांस्मिटेड डिज़ीज़ेज़ और दूसरे इन्फ़ेक्शन्स का शिकार होकर अस्पताल में भर्ती नहीं होना चाहती थी. इस बारे में सोचकर ही मेरा दिल धड़कने लगता था.’’
हालांकि पार्वती का केस थोड़ा अतिशय लग सकता है, लेकिन वो अकेली ही ऐसी महिला नहीं हैं, जो जर्मोफ़ोबिक हों. हममें से अधिकत लोग यही सोचते हैं कि टॉयलेट सीट्स और नल के हैंडल्स पर कीटाणु विराजमान हैं. पर जहां स्वच्छता को लेकर आपकी चिंता जायज़ हैं, वहीं ये जानना ज़रूरी है कि लू-ब्रेक्स लेने से आपको एसटीडी होने का ख़तरा बिल्कुल नहीं है.
सेक्स एक्सपर्ट व थेरैपिस्ट डॉ महिंदर वत्स कहते हैं,‘‘सार्वजनिक शौचालय के इस्तेमाल की वजह से एसटीडीज़ होने की संभावना बहुत ही कम है. लेकिन डब्ल्यूएचओ शौचालय के इस्तेमाल के बाद हाथ धोने की सलाह देता है, ताकि बैक्टीरियल और वायरल इन्फ़ेक्शन्स से बचा जा सके. फिर भी इन्फ़ेक्शन की संभावना केवल तभी होती है, जब आपको कोई ज़ख्म हो और वो पूरी तरह ठीक न हुआ हो. सार्वजनिक शौचालय के इस्तेमाल से आपको एसटीडीज़ नहीं, बल्कि यूटीआई होने की संभावना हो सकती है.’’
एसटीडीज़ की सच्चाई
क्लमिडिया, गोनोरिया, सिफ़िलिस और जेनाइटल वार्ट्स जैसी एसटीडीज़ संक्रमित व्यक्ति के साथ सेक्शुअल संबंध बनाने से ही फैलती हैं. हालांकि क्रैब्स (प्यूबिस लाइस) या स्केबीज़, सैक्शुअली भी फैलते हैं और इनसे संक्रमित लोगों के कपड़े, चादर या टॉवेल्स के इस्तेमाल से भी फैलते हैं. संक्रमित व्यक्ति की त्वचा से अलग होने के बाद प्राकृतिक वातावरण में पहुंचते ही वायरस लगभग तुरंत मर जाते हैं. टॉयलेट सीट के इस्तेमाल से संक्रमित होने के लिए बड़ी ही आदर्श स्थिति होनी चाहिए-जैसे ही संक्रमित व्यक्ति उठे और संक्रमण के अंश छोड़े, कोई दूसरा व्यक्ति उसके तुरंत बाद टॉयलेट सीट पर बैठे और या तो उसे किसी तरह का ज़ख्म हो या उसकी त्वचा गीली हो और वो इस तरह बैठे कि ज़ख्मवाला या गीला हिस्सा वहां हो, जहां संक्रमित व्यक्ति ने संक्रमण के अंश छोड़े हों. तो आप ही सोचिए कि इसकी कितनी कम संभावना है!
डॉ वत्स कहते हैं कि इसके बावजूद सावधानी बरतना बेहतर है. वे सलाह देते हैं,‘‘यदि आप ट्रेन से यात्रा कर रही हैं या फिर कहीं और सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल कर रही हैं तो अख़बार या टिशू साथ में ज़रूर रखें. टॉयलेट के इस्तेमाल से पहले अख़बार या टिशू बिछा दें. जब आप यात्रा कर रही हों तो हैंड सेनिटाइज़र रखें ये बहुत काम की चीज़ है.’’
ध्यान रखनेवाली बातें
हरपीज़ का वायरस थोड़ा ढीठ होता है. संक्रमित व्यक्ति के शरीर से अलग होने के बाद भी यह चार घंटों तक जीवित रह सकता है. इस वायरस से संक्रमित टॉयलेट को यदि कोई दूसरा व्यक्ति इस्तेमाल करता है और उसे त्वचा पर ज़ख्म (जो शरीर के भीतर इस वायरस के प्रवेश का ज़रिया हो सकते हैं) हैं तो वह व्यक्ति भी संक्रमित हो सकता है. लेकिन एक सच ये भी है कि शरीर की सुरक्षा दीवार को तोड़ने के लिए ऐसे वायरस की पर्याप्त संख्या की ज़रूरत होती है. अत: इस तरह से इन्फ़ेक्शन फैलने की भी बहुत कम संभावना है, डॉ वत्स कहते हैं.
टॉयलेट फ़ोबिया
ब्रिटेन की नैशनल फ़ोबिक सोसायटी द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार, वर्ष 2006-07 में तक़रीबन 40 लाख ब्रिटिश ‘टॉयलेट फ़ोबिया’ की समस्या से ग्रस्त थे. तब इस सोसायटी ने इस डिस्ऑर्डर को अपने अधिकार क्षेत्र में ऐन्ज़ाइटी कंडिशन का नाम दिया. कई लोग इससे इतना ज़्यादा प्रभावित होते हैं कि वे घर से बाहर ही नहीं जाना चाहते और वे इस मामले में किसी तरह का चिकित्सकीय परीक्षण भी
नहीं करवाना चाहते हैं.
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