लाइफ स्टाइल

इन 9 तरीक़ों से करें डिजिटल डिटॉक्स

Kajal Dubey
16 July 2023 12:21 PM GMT
इन 9 तरीक़ों से करें डिजिटल डिटॉक्स
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सुबह सोकर उठते ही आप सबसे पहले क्या करते हैं? वह बीते दौर की बात हो गई है, जब हम उठते ही सबसे पहले नित्यकर्म से निवृत्त हुआ करते थे. ख़ुद पर और अपने आसपास के लोगों पर ज़रा-सा ध्यान देकर आप पाएंगे कि ज़्यादातर लोग उठते ही सबसे पहले अपने स्मार्ट फ़ोन का मुंह देखते हैं. सस्ते स्मार्टफ़ोन और उससे भी सस्ते डेटा ने हमें दूर रहनेवाले अपनों से तो जोड़ दिया है, पर हमें ख़ुद से दूर कर दिया है. हमें सोशल मीडिया पर अपनी आवाज़ उठाने की स्पेस तो दी है, पर कुछ नया सोचने-समझने की दिमाग़ की जगह को कैप्चर कर लिया है. हम मल्टी-टास्कर तो बन गए हैं, पर किसी एक काम में मास्टर नहीं रहे हैं. कुछ न करते हुए भी हम व्यस्त रहने लगे हैं.
अपने स्मार्टफ़ोन के स्क्रीन पर पूरी दुनिया की ख़बर लेना बड़ा ही आसान और आनंददायक लग सकता है, पर जो चीज़ हमें आनंददायक लगती है वह हमें कब अपने गिरफ़्त में लेकर अपनी आदी बना ले, पता ही नहीं चलता. आज के दौर में टेक्नोलॉजी ने हमें आदी बना दिया है. हमें पता ही नहीं कि हम इस लत यानी एडिक्शन की क्या क़ीमत चुका रहे हैं. गर्दन का दर्द, उंगलियों और आंखों की समस्या तो बस कुछ ऐसे साइड इफ़ेक्ट हैं, जो दिखते हैं. ध्यान केंद्रित करने की हमारी क्षमता कम हो गई है, हम पहले से अधिक बेसब्र हो गए हैं, तनाव भी अब अधिक सताता है... जैसी बातों को हम भले ही टेक्नोलॉजी की लत को दोषी न ठहराएं, पर ये हैं तो इसी के साइड इफ़ेक्ट.
इसके साथ ही यह बात भी माननी पड़ेगी कि हम लाख चाहे टेक्नोलॉजी को बुरा समझें, पर उससे पूरी तरह अलग हो पाना संभव नहीं है. यहां संभव की जगह प्रैक्टिकल शब्द यूज़ करें तो ज़्यादा अच्छा होगा. एक्स्पर्ट्स की मानें तो आपको अपने फ़ोन से पूरी तरह दूर जाने की ज़रूरत नहीं है, बस उसके टच स्क्रीन को थोड़ा कम टच किया करें. आइए जानते हैं, टेक्नोलॉजी से सुरक्षित दूरी बनाने यानी टेक डिटॉक्स या डिजिटल डिटॉक्स के कुछ प्रैक्टिकल तरीक़े.
1. सबसे पहले नोटिफ़िकेशन को नोटिस थमाएं
वह पुश नोटिफ़िकेशन्स ही हैं, जो फ़ोन की तरफ़ से आपका ध्यान हटने नहीं देते. हालांकि वे तो आपको अपडेट देने का अपना काम ही कर रहे हैं, पर पूरी ईमानदारी से किया जा रहा उनका काम आपको कोई दूसरा काम नहीं करने देता. जैसे ही कोई नोटिफ़िकेशन आता है, आपके हाथ काम छोड़कर फ़ोन चेक करने लग जाते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार यदि आप आधे घंटे में पांच बार नोटिफ़िकेशन्स के प्रभाव में आकर अपने फ़ोन को हाथ लगाते हैं तो समझिए ‌नोटिफ़िकेशन आपका दुश्मन बन गया है. आपको तुरंत जितना संभव हो सके, उतने नोटिफ़िकेशन्स टर्न ऑफ़ कर देना चाहिए. यक़ीन मानिए, यदि आपको देश-दुनिया की ख़बर थोड़ी देर से मिलेगी तो पहाड़ नहीं टूट जाएगा. आज भी लोग अति महत्वपूर्ण ख़बरें देने के लिए फ़ोन ही करते हैं.
2. फ़ोन को थोड़ा कम अट्रैक्टिव बनाएं
यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह ख़ूबसूरत चीज़ों की ओर अट्रैक्ट होता है. यदि आपने फ़ोन को चटक रंगों के कवर में संभालकर रखा है तो बहुत संभव है कि आपकी नज़र बार-बार उस ओर जाए. यही बात उसके स्क्रीन के रंग और सेटिंग पर भी लागू होती है. कोई बहुत अच्छी फ़ोटो आपने अपनी वॉल पर रखी है तो आप उसे देखने के चक्कर में फ़ोन में कब घुस जाएंगे पता ही नहीं चलेगा. आप अपने फ़ोन का वॉलपेपर कम अट्रैक्टिव या ब्लैक ऐंड वाइट रख सकते हैं.
3. खाने के दौरान फ़ोन रख दें दूर
आपने देखा होगा खाने की टेबल पर फ़ोन ने भी अपनी जगह बनानी शुरू कर दी है. रेस्तरां आदि में तो लोग खाते हुए फ़ोन में घुसे पड़े रहते हैं. यह अलग बात है कि वे ख़ुद नहीं जानते कि फ़ोन में आंखें गड़ाए और उसपर उंगलियां घुमाते हुए वे करना क्या चाहते हैं. आजकल पुराने दोस्त वैसे तो ज़्यादा मिल नहीं पाते, पर कभी ग़लती से चाय पीने के लिए मिल भी गए तो एक-दूसरे की ओर देखकर बातचीत करने के बजाय फ़ोन में देखते रहते हैं. साइकोलॉजिस्ट का कहना है कि खाने की टेबल पर फ़ोन पड़ा हो तो हम भले ही उसकी ओर ध्यान न दें, पर वहां मौजूद लोगों से हमारे इंटरैक्शन की क्वॉलिटी पर फ़र्क़ पड़ता है. हम जितनी ऊर्जा फ़ोन में लगाते है, लोगों से मिलते समय हमारी गर्मजोशी उतनी कम हो जाती है. तो उम्मीद है आप समझ ही गए होंगे कि अगली बार क्या करना है.
4. हर दिन कुछ घंटे ‘टेक-फ्री आवर’ के रूप में आरक्षित रखें
हालात तो इतने बुरे हो गए हैं कि हममें से ज़्यादातर लोग अपने स्मार्टफ़ोन के बिना अधूरा महसूस करने लगते हैं. इसका अंदाज़ा इस बात से लगाएं, जिस दिन आप ऑफ़िस से निकलते समय फ़ोन घर पर भूल जाते हैं. दिनभर सोचते रहते हैं न जाने किसका फ़ोन या मैसेज आया होगा. जितने फ़ोन या मैसेज आपको औसतन आते नहीं, उससे भी ज़्यादा आप अपने फ़ोन को मिस करते हैं. फ़ोन के इस मोह-माया से बचने के लिए हर दिन कुछ घंटे ऐसे तय करें, जब चाहे जो हो जाए फ़ोन की ओर देखना तक नहीं है. आपको अपनी ज़िंदगी में सुखद बदलाव देखकर आश्चर्य न हो तो कहना. कम से कम एक हफ़्ते तक अपने इरादे पर टिके रहकर तो देखें.
5. फ़ोन को बेडरूम से बाहर का रास्ता दिखाएं
ज़्यादातर लोग बेडरूम में सिरहाने फ़ोन रखने का बहाना यह बनाते हैं कि ऐसा अलार्म लगाने के लिए किया है. लेकिन जब उनकी नज़र बगल में रखे फ़ोन पर पड़ती है तो वे स्क्रीन पर स्क्रोल करना शुरू कर देते हैं. यदि बेडरूम में फ़ोन रखने का आपका भी यही बहाना हो तो बेहतर होगा कि आप कोई अलार्म क्लॉक ख़रीद लें. बेडरूम में फ़ोन पर समय बिताने के बजाय, अपने पार्टनर पर ध्यान दें. अपने बेडरूम को नो-टेक ज़ोन बनाकर आप न केवल पार्टनर से बेहतर नज़दीकी का अनुभव करेंगे, बल्कि अच्छी नींद भी पाएंगे.
6. पेपर से फिर करें प्यार
इन दिनों टेक्नोलॉजी के चलते लोगों की रीडिंग हैबिट में बड़ा बदलाव देखने मिल रहा है. प्रिंटेड किताबें या पेपर पढ़ने की जगह लोग टैबलेट या मोबाइल पर ही पढ़ने लगे हैं. लेकिन आपने ख़ुद अनुभव किया होगा, ऑनलाइन पढ़ते समय आपका दिमाग़ काफ़ी डिस्ट्रैक्टेड फ़ील करता है. वहीं जब आप प्रिंटेड पेपर या किताबें पढ़ता है तो आपका मस्तिष्क स्थिर रहता है और सूचनाओं को बेहतर ढंग से एब्ज़ॉर्ब करता है. इसलिए यदि आपने न्यूज़पेपर का सब्स्क्रिप्शन बंद कर दिया है तो समय आ गया है उसे रीन्यू कराने का. और हां, किताबों से दोस्ती भी आपको टेक्नोलॉजी के दुष्चक्र में फंसने से बचाएगी.
7. स्क्रीन टाइम पर लगाएं लगाम
ऐसा अक्सर होता है कि हम जब किसी ज़रूरी काम से स्मार्टफ़ोन या लैपटॉप के स्क्रीन पर नज़र गड़ाते हैं, तब वह काम पूरा होते-होते हम बिना ज़रूरत स्क्रोल कर चुके होते हैं. गूगल पर सर्च करते हुए फ़ेसबुक होते हुए इंस्टाग्राम तक पहुंच जाने में देर नहीं लगती. ऐसा करके हम अपने दिमाग़ को कन्फ़्यूज़ कर देते हैं. बहुत से लोगों की तो यह शिकायत है कि वे ऑनलाइन ब्राउज़िंग शुरू करने के बाद भूल जाते हैं कि आख़िर वे ब्राउज़िंग कर क्यों रहे हैं. हमें अपने ओरिजिनल टास्क पर लौटने के लिए अपने दिमाग़ को एकाग्राचित करने में काफ़ी समय लग जाता है. तो बेहतर होगा कि आप स्क्रीन टाइम पर लगाम लगाने की दिशा में सजग होकर प्रयास करें. आपको अपनी प्रोडक्टिविटी में बढ़ोतरी देखने मिलेगी.
8. यदि सही मायने में सोशल बनना चाहते हैं तो सोशल मीडिया को बाय-बाय कह दें
फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम और वॉट्सऐप जैसे प्लैटफ़ॉर्म्स हमें दूर-दराज़ के लोगों से जोड़ने में मदद करते हैं, लेकिन रिसचर्स की मानें तो हम सोशल मीडिया पर जितना समय बिताते हैं, उतना बुरा महसूस करते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हम वहां दोस्तों और रिश्तेदारों का केवल ख़ुशहाल वर्ज़न देखते हैं. हमें लगने लगता है कि हमारी ज़िंदगी कितनी दु‌खियारी है. यदि आप सही मायने में ख़ुश रहना चाहते हैं तो दोस्ती की ज़िंदगी का आकलन वर्चुअल वर्ल्ड से करने के बजाय असल ज़िंदगी से करें. सोशल मीडिया पर भी ऐसे लोगों को अनफ़ॉलो कर दें, जिनके पोस्ट्स देखकर आपको बुरा महसूस होता है. अनचाहे लोगों को ब्लॉक, म्यूट, अनफ़ॉलो, अनफ्रेंड या डिलीट करने में झिझकें नहीं. ऐसा करके आप न केवल अपना समय बचाएंगे, बल्कि सुकून भी कमाएंगे.
9. अपने शरीर की ओर ध्यान देना शुरू करें
ज़्यादातर शहरी लोगों का दिन में आधे से ज़्यादा समय स्क्रीन पर घूरते हुए बीतता है. इसका नतीजा हमारे शरीर को भुगतना पड़ता है. आंखों में खुजली, ड्रायनेस या दर्द के साथ-साथ सिरदर्द जैसी समस्याएं हमें बताती हैं कि आप शरीर के साथ ज़्यादती कर रहे हैं. इससे बचने के लिए 20-20 का रूल अपनाएं. यानी 20 मिनट तक स्क्रीन को देखने के बाद अगले 20 मिनट तक उसकी ओर देखें तक नहीं. फ़ोन पर टेक्स्ट पढ़ते समय उसे उठाकर आंखों की सीध में रखें, बजाय गर्दन झुकाकर पढ़ने के, इस तरह आप टेक्स्ट नेक से बच सकते हैं. फ़ोन से रेग्युलर ब्रेक लेकर टेक्स्ट नेक, स्मार्टफ़ोन थम्ब जैसी समस्याओं से दूर रह सकते हैं. फ़ोन से नियमित ब्रेक आपको शरीर का बेहतर ध्यान रखने में मदद करेगा.
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