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हां अब भी प्रकृति का ही डंका बजता है. सुबह कुहरे से ढंके पर्वतों
लाइफस्टाइल | भीमताल की मंथर गति से आप जल्द ही तालमेल बिठा लेंगी, जहां अब भी प्रकृति का ही डंका बजता है. सुबह कुहरे से ढंके पर्वतों और बैंगनी-नीले रंग की झील के सौंदर्य के बीच आपकी नींद टूटेगी. उत्तराखंड के कुमाऊं में झीलों की पूरी लड़ी है-भीमताल, सतताल, गरूड़ और नौकुचियाताल. नैनीताल की प्रसिद्घी ने लंबे अर्से तक कुमाऊं की ख़ूबसूरत झीलों के सौंदर्य की ओर पर्यटकों का ध्यान नहीं जाने दिया. आप यात्रा की शुरुआत गरुड़ताल से कर सकती हैं, इसे लोग पन्ना भी कहते हैं. लंबी-संकरी सड़क से होते हुए आपकी गाड़ी यहां पहुंचेगी. ताल की सुंदरता को आप मंत्रमुग्ध हो कर देखती रह जाएंगी. ऐसा आभास होगा, जैसे यह ताल सघन वनों से घिरा एक गहरा, झिलमिलाता हुआ हरे रंग का प्याला हो. जंगल से गुज़रते हुए आपको सघन हरियाली के साथ साथ प्रकृति के शुष्क नज़ारे भी मिलेंगे, आप पाएंगी पथरीली ज़मीन और अटूट ख़ामोशी. इसके बाद मिलेगा एक खुली छत का चर्च, जिसकी उजली पृष्ठभूमि में सूरज को झील में चमकते हुए देख सकेंगी. झील के किनारे बैठने के लिए एंपिथिएटर के जैसी सीढि़यां बनाई गई हैं.
किसी सपाट पत्थर पर बैठकर इत्मीनान से इस ख़ूबसूरत झांकी को मन में उतार लें या करीने से तराशी सीढ़ियों पर ध्यानमग्न हो जाएं. हवा में उड़ती हुई पत्तियां किसी दैवीय आशीर्वाद की तरह आपको छू जाएंगी.बादलों की अठखेली का यह दृश्य देखकर आप ख़ुद को भाग्यशाली महसूस कर सकती हैं.जब आप ख़ामोश ज़ंगल की गहराइयों में और खोती हैं तो रास्ते और परिदृश्य बड़ी तेज़ी से बदलने लगते हैं. संतरियों से खड़े वृक्ष हवा में झूमते हुए माहौल में गूंज जगा रहे होते हैं. उनकी फैली हुई शाखाओं को देखकर लगता है जैसे आसमान की ओर कोई सिर उठाए प्रार्थना की मुद्रा में हाथ जोड़े खड़ा हो. चहलक़दमी के दौरान जब ऐम्बर की सूखी पत्तियां आपके पैरों तले कुचली जाती हैं, तब बंदूक दागने जैसी आवाज़ आती है. लंबे-संकरे जंगली मार्ग पर कुछ दूर जाने के बाद एक बेतरतीब-सी, हरी छत वाली, भूरे पत्थरों से बनी इमारत को देखकर आप ठिठक जाएंगी. यह सतताल आश्रम है, जिसे डॉ ई स्टैन्ली जोंस ने वर्ष 1930 में स्थापित किया था. यह आश्रम उन सभी के लिए है, जो सचमुच ईश्वर को ढूंढ़ने की आकांक्षा रखते हैं. वैसे भी इस हरी भरी तपोभूमि की अथाह शांति में यह काम थोड़ा आसान हो जाता है.
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