लाइफ स्टाइल

बधाई की दिहाड़ी

Rani Sahu
25 Dec 2022 6:55 PM GMT
बधाई की दिहाड़ी
x
बधाई देने से कहीं ज्यादा बधाई लेना एक कला है, भले ही किसी कला के नाम पर बधाई नहीं मिलती। बधाई का अपना ही शोरगुल और अपना ही वातावरण है। अब बंद दरवाजों के भीतर भी मंथन यही होता है कि बधाई के हर अवसर को कैसे पकड़ा जाए। बधाई का अपना मूड है। जरूरी नहीं इनसानी मूड के मुताबिक बधाई दी जाए। पूरे पांच साल सरकारें बधाइयां ही तो खाती रहती हैं और अंतत: इसकी बदहजमी में चुनाव हार जाती हैं। बधाई को तारीफ बनाना या तारीफ को बधाई की तरह लेना दरअसल किसी तंग मोड़ पर गति से वाहन चलाने जैसा है। बधाई के बहाने कई लोग आत्मनिर्भर बनने की सोचते हैं, इसलिए हर तरह की बधाई देने वाले हर समूह में वांछित हो जाते हैं। दफ्तर में अधिकारी की ऊल जुलूल डे्रस सेंस को विश्व की सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए एक छोटी सी बधाई दरअसल खुद की नौकरी चमकाने की अलामत है। बधाइयां आजकल उन्हें ज्यादा मिलती हैं, जो सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर पाते हैं, बिना चुनाव लड़े सरकारी लाभ पा जाते हैं। अवैध धंधों के संचालन के पीछे भी बधाइयां अपना असर दिखाती हैं, इसलिए बधाई अब नैतिक नहीं, अमर्यादित-अनैतिक होकर भी स्वीकार्य है।
अपना रामू आज तक कोई ऐसा काम नहीं कर पाया कि कोई बधाई देता, लेकिन जिस रात अवैध खोखा खड़ा कर पाया, उसके आसपास बधाई चक्र स्थापित हो गया। उसे बधाई देने वाले वे तमाम लोग थे, जिन्हें शहर की ऐसी अंधेरी गली में अपना गम हल्का करने के लिए शराब की अवैध बिक्री सेवा चाहिए थी। भले ही रामू का जन्म किसी बधाई के साथ नहीं हुआ, लेकिन जिंदगी में खड़ा होने की पात्रता में यह अवैध खोखा उसे आबाद कर रहा है। वह जबसे अवैध धंधों में शरीक हो रहा है, देश और समाज में उसकी स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। उसे लगने लगा है कि देश की वर्तमान व्यवस्था को उसकी तरह जीना कहीं अधिक मंजूर होने लगा है। उसे हर दिन अवैध खोखा बचाने के लिए किसी न किसी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी को बधाई देनी होती है। इस बधाई के लिए उसे कोई न कोई बहाना खोजना पड़ता है। इसलिए देश में जन्मदिन अब बधाइयों में बिकते हैं। प्रभावशाली लोगों के विवाह समारोह बधाई में बिकते हैं। जब जब किसी बड़े साहब, नेता या कार्यकर्ता के घर बधाई का अवसर आता है, रामू के पास सूचना लेकर कोई न कोई कारिंदा आ जाता है। ये बधाइयां उसके लिए मछली का धंधा हैं।
ताजा मछलियों का धंधा। अलग अलग बधाई, साहब या नेता की लंबाई के अनुसार और मछली का धंधा, सभी एक साथ चलने लगे। यहां उपलब्ध अलग अलग प्रजाति की मछलियों के मुताबिक साहबों की प्रजातियों का फैसला। प्रशासन के कांटों में बधाई का उपयोग कुछ ऐसा कि हर कोई बिना कांटे के मछली मांगता है। अब तो रामू अपनी हर दिहाड़ी में सारी बधाइयों की दिहाड़ी जोड़ लेता है। उसके बढ़ते धंधे के बीच बधाई का कबाड़ भी बढ़ रहा है। उसे यह सोचने की फुर्सत नहीं कि बधाई देना रिश्वत की कला है या अब रिश्वत ही बधाई है, लेकिन उसकी सूची में वे लोग बढ़ते जा रहे हैं जिन्हें बधाई देने के लिए उसे भी अवसर ढूंढना है। हर दिन उसकी कढ़ाई पर बधाई तली जाती है। वह खुश है कि उसकी तरफ से तो कोई न कोई मछली ही साहब को बधाई दे आती है, कभी नगर निगम, कभी पुलिस की खिदमत में, तो कभी अनजान विभाग या नेता के लिए बधाई तली जाती है। वह अब हैरान है कि व्यवस्था में जिंदा बधाइयों का शौक भी बढऩे लगा है। बात मछली से शुरू होकर अब जिंदा मछली तक पहुंच गई, लेकिन समाज को कोई फर्क नहीं पड़ रहा। घर में दो बेटियां और एक कम उम्र बीवी के सामने वह अब व्यापारी है। उसकी कमाई देख देख कर घर के सभी सदस्य बधाई देने लगे हैं, लेकिन उसे डर है कि बधाई में फंसे अपने धंधे में क्या वह अब घर परिवार को बचा पाएगा। वह सरकार के ट्रांसफर ऑर्डर पर नई बधाइयों से डरता है। नई सरकार के गठन पर मिलती बधाइयों से डरता है।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक

By: divyahimachal

Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story