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हेल्थ : थैलेसीमिया एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुंचने वाला ऐसा रक्त विकार है, जिससे शरीर में हीमोग्लोबिन बनना बंद हो जाता है। हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) में प्रोटीन अणु के रूप में आक्सीजन वाहक है। थैलेसीमिया बीमारी में आरबीसी का अत्यधिक क्षय होने लगता है, जिससे एनीमिया हो जाता है। हमारे देश में हर वर्ष 10 से 12 हजार बच्चे थैलेसीमिया के साथ जन्म लेते हैं। वर्तमान में इस बीमारी से ग्रस्त लोगों की संख्या 1.5 लाख से अधिक है। इसी तरह वंशानुगत रक्त विकार वाली बीमारी सिकल सेल का भी प्रभाव देश के एक बड़े हिस्से में वर्षों से बना हुआ है। इन दोनों ही बीमारियों को रोकने के लिए प्रयास तो हो रहे हैं, लेकिन बड़ी चुनौती अब भी बरकरार है।
थैलेसीमिया दो तरह की होता है। पहला, मेजर थैलेसीमिया, जो गंभीर तरह की बीमारी है। इसमें बच्चे के जन्म के कुछ ही महीनों बाद उसमें खून बनना बंद हो जाता है। रक्त जांच से थैलेसीमिया की पुष्टि होती है। सामान्य तौर पर माता-पिता में थैलेसीमिया का जीन होता है और दोनों से यह बच्चे में आ जाता है। दूसरा, माइनर थैलेसीमिया, जो अपेक्षाकृत कम चिंताजनक है। हालांकि, सामान्य लोगों की तुलना में इनका हीमोग्लोबिन कम रहता है, लेकिन उनकी जिंदगी के लिए कोई खास खतरा नहीं होता।
मेजर थैलेसीमिया जन्म के साथ ही शुरू हो जाता है, जिससे बार-बार रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। इससे बच्चे के शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ने लगती है। शरीर में ऐसा कोई सिस्टम नहीं है, जिससे आयरन स्वत: बाहर निकल जाए। आयरन बढ़ने से लिवर, हृदय पर दुष्प्रभाव होने लगता है। हालांकि, आयरन की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए कुछ दवाएं दी जाती हैं।