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लाइफ स्टाइल
इस प्रदूषण में अस्थमा एवं सांस के मरीज खुद को कैसे रखें स्वस्थ, जाने
Bhumika Sahu
2 Nov 2021 7:00 AM GMT
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लॉजिस्टिक्स कंपनी Delhivery ने सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) के साथ अपने इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) के लिए ड्राफ्ट रेड हीयरिंग प्रोस्पेक्टस (DRHP) फाइल की है. आईपीओ का साइज 7,128 करोड़ रुपये का होगा.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सर्दियों की दस्तक के साथ दिल्ली-एनसीआर सहित देश के तमाम शहरों में प्रदूषण अपने खतरनाक स्तर को भी पार कर चुका है. ऐसे में, उन लोगों की समस्या खासा बढ़ जाती है, जो या तो अस्थमा के मरीज हैं, या फिर उन्हें सांस की कोई दूसरी बीमारी है. कई बार नौबत हॉस्पिटल में एडमिट होने तक पहुंच जाती हैं. अब यहां बड़ा सवाल यह है कि इस खतरनाक प्रदूषण के बीच खुद को सुरक्षित कैसे रखा जा सके. इस सवाल का जवाब तलाशने के हमने बात की इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में पल्मोनोलॉजी एण्ड रेस्पिरेटरी मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. निखिल मोदी से. पढ़िए, डॉ. मोदी से बातचीत के अहम अंश….
सवााल 1: दिल्ली-एनसीआर सहित देश के तमाम हिस्सों में सर्दी के साथ पॉल्यूशन ने भी दस्तक दे दी है. कई शहरों के पॉल्यूशन का स्तर खतरे के निशान को भी पार कर चुका है. ऐसे माहौल में, दमा यानी अस्थमा के मरीजों की परेशानियां खासा बढ़ जाती हैं. इनकी सेहत दुरुस्त रहे, इसको लेकर आप क्या सुझाव देना चाहेंगे.
डॉ मोदी: दिल्ली में पॉल्यूशन का स्तर तो वैसे लगभग 12 महीने ही खराब रहता है, लेकिन सर्दियों के समय पॉल्यूशन का स्तर कई बार जानलेवा बन जाता है. दरअसल, सर्दियों में हवा की रफ्तार कम और नमी बढ़ जाती है. पहले जो पॉल्यूशन तेज हवा के साथ साफ हो जाता था, सर्दियों में वही पॉल्यूशन हवा की रफ्तार कम होने की वजह से वातावरण में बना रहता है. वहीं, पराली के जलने सहित अन्य कारणों के चलते वातावरण मे पर्यावरण का स्तर बेहद जहरीला होने लगता है.
जहां तक बात अस्थमा या सांस के मरीजों की बात है तो उनमें एलर्जी टेंडेंसी पहले से रहती है. सांस के साथ शरीर के अंदर पहुंची दूषित हवा कंजेशन और म्यूकस (बलगम) पैदा करती है. नतीजतन, मरीज को सांस लेने में दबाव बढ़ जाता है, जिसके चलते अटैक बेहद सीवियर हो जाते है. जिन परिस्थितियों को सामान्य दवाओं से कंट्रोल किया जा सकता है, पॉल्यूशन के चलते वह संभव नहीं हो पाता है. कई बार, इन मरीजों को सीवियर अटैक के साथ निमोनिया इंफेक्शन बढ़ जाता है, जिसके चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है.
सवााल 2:ये बात हुई कि पॉल्यूशन की वजह से हमें किस तरह के परेशानी होती है. यहां सवाल है कि दिल्ली-एनसीआर जैसे बेहद प्रदूषित शहरों में रहने वाले लोग इस पॉल्यूशन का सामना करते हुए सेहतमंद कैसे रहें.
डॉ मोदी: पॉल्यूशन पर नियंत्रण करने के लिए कई प्रयास चल रहे हैं, लेकिन उनके आने मे अभी काफी समय लगेगा. लेकिन, तब तक हमें इस पॉल्यूशन के बीच रहते हुए खुद को संभाल कर रखना है. इसके लिए जरूरी है कि इस बीच आप तबतक घर से बाहर न निकलें, जबतक बहुत जरूरी न हो. घर के बाहर मास्क पहन कर ही निकले. एक साधारण से मॉस्क की मदद से आप सांस की गंभीर बीमारियों से बच सकते हैं. वैसे, कोरोना के चलते लोगों में बहुत सी गुड हैबिट्स आई हैं, इसमें मास्क पहनना भी एक गुड हैबिट है.
पॉल्यूशन को लेकर हम पहले भी मास्क रिकमंड किया जाता रहा है. यहां यह बात खास है कि नार्मल मास्क भले ही कोविड को न रोक पाए, लेकिन पॉल्यूशन के इम्युलेशन को इतना कम कर सकते हैं कि आप काफी हद तक प्रोटेक्टेड रहेंगे. दूसरा कुछ अच्छी हैबिट स्टीम लेना और गर्म पानी से गार्गल (गरारे) करना है. स्टीम और गर्म पानी के गरारे आपकी सांस की नली को साफ रखेंगे. आपको समय से सअपनी दवाइयां खानी हैं, जिससे आपकी सांस की बीमारी पर कंट्रोल ठीक रहता है. इस तरह, कुछ सिंपल स्टेप की मदद से हम खुद को बचा सकते हैं.
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सवााल 3: अभी आपने स्टीम लेने और गर्म पानी से गार्गल करने की सलाह दी. हम उस दौर में जाएं जब कोविड अपने चरम पर था और हर शख्स स्टीम ले रहा था, उस वक्त स्टीम को लेकर खास तौर पर सचेत किया गया था. उस वक्त यहां कहा गया कि स्टीम की वजह से गले में जख्म हो रहे हैं, और ये जख्म ब्लैक फंगस की वजह बन रहे हैं. जिसके बाद, लोगों में स्टीम को लेकर एक तरह का खौफ बैठ गया. ऐसे मे, स्टीम लेना कितना सही या गलत है. यदि सही है तो उसका सही तरीका क्या है?
डॉ मोदी: हम ऐसा नहीं कह सकते कि स्टीम लेना खराब चीज है. स्टीम का फायदा यह होता है कि भाप अंदर पहुंच कर पानी बन जाता है और यही पानी अंदर फंसे हुए म्यूकस को ब्रेक करके क्लियर करने में मदद करता है. जहां तक चलते ब्लैक फंगस होने की बात है, तो ह्यूमस एनवायरमेंट में फंगस तेजी से बढ़ता है. कोविड के दौर में, ईएनटी स्पेशलिस्ट का आर्ब्जरवेशन यह था कि सीवियर कोविड के मरीजों को स्टोराइड की हाई डोज दी जा रही थी, जिसके चलते ब्लैक फंगस के बॉडी में मल्टीप्लाई ज्यादा होने लग गई थी.
वहीं, ऐसे अस्थमा या सांस की बीमारी वाले दूसरे मरीज, जिन्हें एलिर्जक प्रॉब्लम है, उनका म्यूकस बहुत थिक हो जाता है, जो फंसने लगता है, स्टीम उसको क्लीयर करने में हेल्प करती है, इसमें ब्लैक फंगस का रिस्क नहीं रहता है, क्यों कि उनकी इम्युनिटी भी ठीक होती है. जहां तक स्टीम कितनी बार लेना है या उसका तरीका क्या है, तो दिन में एक या दो बार, सुबह-शाम स्टीम लेना बहुत है, ऐसा नहीं, कि हम हर दो घंटे में स्टीम ले रहे है. स्टीम लेने के लिए अब स्टीमर मशीन भी आ रहे हैं, जिससे आप सीधे स्टीम ले सकते हैं. इसके अलााव, आ किसी भगोने में पानी गर्म करके टावल सिर पर डालकर स्टीम ले सकते हैं.
सवााल 4: चलिए अब हम बात उनकी बात करते हैं, जो बीते समय में कोविड की चपेट में आ चुके हैं. इसमें बहुत बड़ी संख्या ऐसे मरीजों की है, जिसके लंग्स सीधे तौर पर गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे. अब इस दीवाली में, कोविड का कहर झेल चुके मरीजों को किस तरह के एहतियात बरतने चाहिए, जिससे वे किसी दूसरी तरह की कॉम्प्लिकेशन में न फंसे.
डॉ मोदी: हमारे देश में एक बड़ी जनसंख्या है, जो पोस्ट कोविड स्टेज में हैं. इन लोगों की सांस की नलियों और लंग्स में कहीं न कहीं, कोविड की सूझन सहित दूसरे प्रभाव बचे हुए हैं. पोस्ट कोविड स्टेज के लोगों को अस्थमा और सांस की बीमारी वाले मरीजों की तरह अपना अपना ध्यान खास तौर पर रखना होगा. पोस्ट कोविड स्टेज वाले लोगों में भी अस्थमा के मरीजों की तरह, खांसी और स्वांस लेने में दिक्कत की संभावनाएं बनी हुई हैं. इसके अलावा, हल्की सी लापरवाही से इंफेक्शन और म्यूकस फंसने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.
इन लोगों को भी अस्थमा वालों की तरह मास्क लगाकर बाहर निकलना, अपने आप को हेल्दी रखना, रेगुलर एक्सरसाइज करना और थोड़ी स्टीम लेना होगा. ये सारी चीजें फायदा करेंगी. साथ ही, कोई भी सिंटम आने पर इन लोगों तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए, ताकि कुछ भी हो तो ट्रीटमेंट के जरएि उसको जल्दी कंट्रोल किया जा सके.
सवााल 5:अस्थमा या सांस के मरीजों को एक एडवाइस बहुत कामनली दी जाती है कि हो सके तो कुछ टाइम दिल्ली एनसीआर से बाहर गुजारिए.
डॉ मोदी: जी हां, जिनको बहुत सीवियर प्राबल्म हो जाती है और उनकी एलर्जी कंट्रोल में नहीं आ रही होती है, वह कई बार हम उन्हें दिल्ली-एनएसीआर से कुछ समय के लिए बाहर जाने की एडवाइस देते हैं. दरअसल, कई बार उनकों हमें बहुत हैवी दवाइयां देनी पड़ती हैं. सिंटम कट्रोल करने के लिए स्ट्राइड्स का भी देना भी पड़ जाता है. ऐसे केस में, हाई डोज स्ट्राइड्स देना शरीर को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है. ऐसे केस में सलाह दी जाती है कि आपके सिंटम बाहर जाकर कंट्रोल हो जाएं तो दिल्ली-एनसीआर से आप कुछ टाइम के लिए बाहर चले जाएं, जैसे ही पॉल्यूशन कंट्रोल हो, आप वापस आ सकते हैं.
सवााल 6: ग्रीन क्रैकर्स को लेकर अब बात हो रहे हैं. यह दावा है कि इनसे 30 फीसदी कम पॉल्यूशन होगा, बावजूद इसके दिल्ली में जिस स्तर पर पॉल्यूशन का लेबल है, वैसे में ग्रीन क्रैकर्स दिल्ली वालों के लिए कितना खतरनाक साबित होंगे.
डॉ मोदी: देखिए, पॉल्यूशन का लेबल सीवियर से बहुत हाई है, पीएम 2.5 को मेजर करके बाते हैं क्रिटिकल कैटगरी में है. क्रैकर्स पर कंट्रोल नहीं रखा तो बहुत नुकसान होगा. मेरी सलाह है कि क्रैकर्स नहीं चलाए.
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