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इस रिपोर्ट के अनुसार युवाओं पर ही नहीं, बुजुर्गों पर भी शानदार असर दिखा रही है एस्ट्रोजेनेका की कोरोना वैक्सीन

Kajal Dubey
26 Oct 2020 2:19 PM GMT
इस  रिपोर्ट के अनुसार युवाओं पर ही नहीं, बुजुर्गों पर भी शानदार असर दिखा रही है एस्ट्रोजेनेका की कोरोना वैक्सीन
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कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच दुनियाभर के लोगों को इसकी एक सुरक्षित और असरदार वैक्सीन का इंतजार है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच दुनियाभर के लोगों को इसकी एक सुरक्षित और असरदार वैक्सीन का इंतजार है। रूस और चीन में कुछ टीकों को मंजूरी तो दे दी गई है, लेकिन तीसरे चरण का ट्रायल अभी पूरा नहीं हुआ है। वहीं, भारत, अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई देशों में कुछ वैक्सीन कैंडिडेट्स के तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है। इन्हीं में से एक है- एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सहयोग से एस्ट्राजेनेका कंपनी इस वैक्सीन को विकसित कर रही है। इस वैक्सीन के बारे में सामने आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, बुजुर्गों पर भी इस टीके का शानदार असर देखा जा रहा है। टीका लगाने के बाद उनमें मजबूत एंटीबॉडी तैयार हुई है, जो कोरोना वायरस से लड़ने में सक्षम है।

फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट एक रिपोर्ट में वैक्सीन डेवलपमेंट से जुड़े दो लोगों का हवाला देते हुए दावा किया गया है कि कोविड-19 महामारी से मुकाबला करने के लिए एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन ने मानव शरीर में मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पैदा की है। रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रायल में शामिल बुजुर्गों लोगों पर वैक्सीन का ऐसा असर देखा गया है। इससे पहले युवाओं पर भी वैक्सीन के असरदार साबित होने की रिपोर्ट सामने आई थी।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि एस्ट्राजेनेका कंपनी जिस वैक्सीन का निर्माण कर रही है, उससे बड़े आयु वर्ग के लोगों में सुरक्षात्मक एंटीबॉडी तो पैदा हुई ही है, इसके साथ टी-कोशिकाओं का भी उत्पादन हुआ है। किसी बीमारी से लड़ने के लिए एंटीबॉडी और टी-कोशिकाओं की भूमिका अहम होती है। अधिकतर वैक्सीन केवल एंटीबॉडी बनाती है, लेकिन इसने टी-कोशिकाएं भी विकसित की है।

बता दें कि शुरुआती चरणों के ट्रायल में वैक्सीन ने शानदार असर दिखाया था। जुलाई में हुए शुरुआती चरणों के ट्रायल की रिपोर्ट में पता चला था कि वैक्सीन ने 18-55 वर्ष की आयुवर्ग के व्यस्कों में मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पैदा की है। बुजुर्गों के शरीर में भी एंटीबॉडी और टी-कोशिकाओं का बनना वैक्सीन की सफलता की ओर इंगित करती है।

बता दें कि ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका की इस वैक्सीन के ट्रायल के दौरान ब्राजील में एक वॉलेंटियर की मौत के बाद तीसरे चरण का ट्रायल रोक दिया गया था। हालांकि जांच में पता चला कि जिस वॉलेंटियर की मौत हुई थी, उसे कोरोना की वैक्सीन नहीं दी गई थी। अन्य देशों के साथ अमेरिका में भी वैक्सीन का ट्रायल फिर से शुरू किया जा चुका है।


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