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आचार्य चाणक्य की नीति के अनुसार इस दोस्त के दूर होने पर अकेला हो जाता है मनुष्य

Gulabi
2 March 2021 1:35 PM GMT
आचार्य चाणक्य की नीति के अनुसार इस दोस्त के दूर होने पर अकेला हो जाता है मनुष्य
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आचार्य चाणक्य की नीतियां हमेशा से मनुष्य के लिए मददगार साबित हुई हैं

अपनी नीतियों की मदद से नंद वंश को खत्म करने और चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाने वाले आचार्य चाणक्य की नीतियां हमेशा से मनुष्य के लिए मददगार साबित हुई हैं. चाणक्य की इन नीतियों को अपनाकर मनुष्य अपने जीवन की मुसीबतों को दूर कर सकता है. चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र यानी चाणक्य नीति में एक श्लोक के माध्यम से ऐसे मनुष्य की ऐसी स्थिति के बारे में वर्णन किया है जिसमें अपने भी मनुष्य का साथ छोड़ देते हैं. आइए जानते हैं इसके बारे में...


त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं पुत्राश्च दाराश्च सुहृज्जनाश्च।
तमर्शवन्तं पुनराश्रयन्ति अर्थो हि लोके मनुषस्य बन्धु:।।

जब मनुष्य के पास धन नहीं रहता तो उसके मित्र, स्त्री, नौकर-चाकर और भाई-बंधु सब उसे छोड़कर चले जाते हैं. यदि उसके पास फिर से धन-संपत्ति आ जाए तो वे फिर उसका आश्रय ले लेते हैं. संसार में धन ही मनुष्य का बंधु है.

आचार्य चाणक्य ने धन के व्यावहारिक पक्ष को बताते हुए कहा है कि इसी के इर्द-गिर्द सारे संबंधों का ताना-बाना हुआ करता है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं.

अन्यायोपार्जितं वित्तं दशवर्षाणि तिष्ठति।
प्राप्ते चैकादशे वर्षे समूलं तद् विनश्यति।।

इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य कहते हैं कि अन्याय से कमाया हुआ धन अधिक से अधिक 10 वर्ष तक आदमी के पास ठहरता है और 11वें वर्ष के शुरू होते ही ब्याज और मूल सहित नष्ट हो जाता है. ऐसे में व्यक्ति को पैसे के लिए कभी भी अन्याय का रास्ता नहीं अपनना चाहिए.


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