लाइफ स्टाइल

वर्क फ्रॉम होम का एक मज़ेदार दिन

Kajal Dubey
3 May 2023 1:24 PM GMT
वर्क फ्रॉम होम का एक मज़ेदार दिन
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हम सभी चाहते हैं कि काश कभी-कभी ऑफ़िस न जाकर घर से ही काम करने मिले, यानी वर्क फ्रॉम होम हो तो कितना अच्छा होगा! पर ज़रूरी नहीं हमेशा यह ऑप्शन अच्छा ही कहलाए. घर से काम करने के इन साइड इफ़ेक्ट्स को देखकर तो आप भी कहेंगे. ऑफ़िस से काम करने में ही भलाई है. पर चलिए पहले इसके फ़ायदे देख लेते हैं.
हम सभी की ज़िंदगी में वह दिन आता है, जब ऑफ़िस जाने के लिए जाने के लिए जाग पाना एक बहुत बड़ा टास्क बन जाता है.
और फ़ाइनली आप फ़ैसला करते हैं, नींद के आगे आज ऑफ़िस की क़ुर्बानी देनी है.
जागने के बाद ऑफ़िस के काम की चिंता सताती है और तय करते हैं कि थोड़ा काम घर से ही कर लेते हैं. घर को कोज़ी माहौल में काम करने को लेकर बेहद उत्साहित महसूस करते हैं.
आप इस‌लिए भी ख़ुश हैं कि तैयार होने की कोई झंझट नहीं है. यहां तक कि पैंट्स पहनने की भी!
आप उस रिपोर्ट पर काम करना शुरू करते हैं.
काम पूरा करने की ख़ुशी आपको झूमने पर मजबूर कर देती है.
अपना पसंदीदा टीवी शो देख सकते हैं, किसी को पता भी नहीं चलेगा.
टीवी देखते-देखते आराम से खा सकते हैं!
थोड़ा आराम करना भी बनता है!
लेकिन जल्द ही आप ऑफ़िस के अपने कलीग्स को मिस करने लगते हैं.
और ऑफ़िस की उन सभी मस्तियों को भी.
कभी-कभी इसको भी.
और फिर आप दोबारा ऑफ़िस जाने के लिए बेताब हो जाते हैं.
यदि आप पहली बार किसी छोटी या मल्टीनैशनल कंपनी में बतौर प्रोफ़ेशनल 9 घंटे की नौकरी करने जा रही हैं, तो बेशक़ आपका मन घबराहट व उत्साह दोनों से अटा पड़ा होगा. आपको बहुत सारी बातों को ध्यान में रखते हुए अपने क़दम पूरे आत्मविश्वास के साथ बढ़ाना चाहिए. फ़र्स्ट इम्प्रेशन इज़ द लास्ट इम्प्रेशन की तर्ज पर कहें तो आपकी पहली नौकरी के शुरुआती दिन आपकी इमेज को बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं. इसलिए अच्छी तरह तैयारी करके, पूरे आत्मविश्वास व जुनून के साथ आगे बढ़ें. यहां हम आपको कुछ बुनियादी टिप्स दे रहे हैं, जिन्हें फ़ॉलो कर आप अपनी पहली नौकरी पर अपने इम्प्रेशन को बेहतर बना सकते हैं.
आप जहां कहीं भी जॉब करने जा रही हों, वहां का लैंगिक अनुपात और लीडरशिप टीम में महिलाओं की मौजूदगी के बारे में जानकारी जुटाएं. इससे आपको वहां के वर्क कल्चर और महिलाओं के प्रति कंपनी के रवैये के बारे में काफ़ी जानकारी मिल सकती है.
बदलाव को खुले दिल व दिमाग़ से स्वीकारें
एक छोटी या मल्टीनैशनल कंपनी में ख़ुद को एड्जस्ट करने के लिए शुरुआती दिनों पर पूरा फ़ोकस कंपनी को समझने में रखें. यदि आपकी कंपनी में इंडक्शन यानी परिचय प्रोग्राम्स होते हैं, तो इन्हें ज़रूर अटेंन करें. हर सेशन को समझें और ज़रूरत पड़ने पर नोट्स भी बनाएं. आगे ज़रूरत पड़ने पर या कुछ न समझ आने पर अनुभवी सहयोगियों से सहायता लेनी चाहिए.
नई प्रणालियों और प्रक्रियाओं के लिए आपको खुला और अनुकूल होना चाहिए. नई चीज़ें जानने के लिए हमेशा उत्सुक रहें. विचारों के प्रति ग्रहणशील होना चाहिए, न कि अपनी ही सोच पर एकदम से अडिग.
महिलाओं से जुड़े नियमों पर ध्यान दें
यदि आप शादीशुदा हैं और भविष्य में बच्चा प्लैन करनेवाली हैं, तो कंपनी की मैर्ट‌निटी पॉलिसी के बारे में जानकारी जुटाएं. यह जानने के लिए कि आपका नया कार्यस्थल गर्भावस्था के अनुकूल है या नहीं, कंपनी की एचआर नीतियों को विस्तार से पढ़ें. कोई जानकारी न मिले, तो एचआर से स्पष्ट रूप से इस बारे में बात करें. आमतौर पर मैर्टनिटी लीव्ज़, नर्सिंग ब्रेक, क्रेश सुविधा आदि के बारे में वाजिब सवाल पूछें. ध्यान रहे कि बात करते वक़्त आपका टोन प्रोफ़ेशनल और धैर्यशील हो.
बेहद प्रोफ़ेशनल अप्रोच रखें
एक प्रोफ़ेशनल हमेशा वह करने का प्रयास करता है, जो कंपनी के हित में होते है. आमतौर पर शुरुआती दौर में कैंडिडेट्स में प्रोफ़ेशनलिज़्म की भारी कमी होती है. जिससे आपका शुरुआती इम्प्रेशन बिगड़ सकता है. इसलिए ऑफ़िस को ऑफ़िस की तरह लें और बेहद औपचारिक तौर-तरीक़े अपनाएं. हर ऑफ़िशियल बात गंभीरता और ज़िम्मेदाराना ढंग से करें व हर कम्यूनिकेशन को मेल पर रखें. किसी पर निजी व जजमेंटल कमेंट्स करने से बचें.
भाषा को सौम्य रखें
राजनीति से लेकर किसी भी व्यक्ति तक के बारे में अपनी निजी राय किसी के सामने रखने से पहले 100 बार सोचें. ऐसी निजी मत वाली बातचीत को अवॉइड करना ही बेहतर होता है. भाषा को बेहद नम्र और स्पष्ट रखें. अक्सर कॉलेज के बाद पहली नौकरी करने पर हम वहां भी सभी को दोस्त की तरह देखते हैं और हमारे बात करने का तौर-तरीक़ा भी काफ़ी हल्का व दोस्ताना होता है. इसलिए शुरुआती समय में बहुत सोच-समझकर बात करें. कॉलेज फ़ेज़ को भूलकर ऑफ़िस में प्रोफ़ेशनल्स की तरह केवल विषय से जुड़ी बात करें. हां, ब्रेक में आप कलीग्स से हल्की-फुल्की फ़िल्मों, गानों, फ़ैशन इत्यादि से जुड़ी बातें कर सकते हैं, लेकिन तब भी अपनी भाषा को संयमित रखें. विचार-विमर्श और मंथन के दौरान, एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण की सराहना और प्रयास करना चाहिए और यदि ऐसा नहीं है, तो आदरपूर्वक असहमति जताएं. सॉरी, थैंक यू, प्लीज़, क्या मैं कर सकती हूं, जैसे शब्दों व आग्रहपूर्ण वाक्यों का खुलकर प्रयोग करें.
निजी रिश्ते बनाने से बचें
आप पहली बार नौकरी करने जा रही हैं, इसलिए आपको हो सकता है, कई बार ऑफ़िस में कुछ शेयर करने के लिए दोस्त या किसी साथी की ज़रूरत महसूस हो. लेकिन कोशिश करें कि शुरुआती दौर में लोगों को जानने में ज़्यादा समय बिताएं, बजाय दोस्ती की जल्दबाज़ी करने के. यह कड़वी सच्चाई है कि ऑफ़िस दोस्त बनाने की जगह नहीं है, बल्कि यह काम करने व अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देने की जगह है. इसलिए अपने काम को वरीयता दें और ऑफ़िस के बाहर के दोस्तों के साथ बातें शेयर करें. अपनी निजी बातें शेयर करने से बचें. और केवल अपने ही बारे में बात न करते रहें. बेहतर यही होगा कि आप सुनें ज़्यादा बोले कम. इसका मतलब यह भी नहीं कि आप ऑफ़िस में चुपचाप बैठी रहें. लोगों से मिले-जुलें, कॉन्टैक्ट्स बनाएं, लेकिन एक मज़बूत, सशक्त और प्रोफ़ेशनल महिला की तरह.
इस तरह ऑफ़िस में किया जाता है महिलाओं के साथ पक्षपात
मातृत्व को लेकर पक्षपात
बात चाहे आपके प्रमोशन को नज़रअंदाज़ करने की हो, क्योंकि आप मैटर्निटी लीव पर जा रही हैं या फिर बच्चा होने की वजह से कोई चुनौतीपूर्ण कार्यभार न देने की. यह सोच कि महिलाएं मां बनने के बाद प्रतिबद्धता और फ़ोकस खो देती हैं, आपको कई तरह से कमज़ोर बना सकती है. जबकि मां बनने से महिलाओं की योग्यता कम नहीं हो जाती. बजाय इसके वे ज़्यादा सजग, ज़िम्मेदार और समय प्रबंधन में माहिर हो जाती हैं.
यूं निपटें: अपनी कंपनी को बताएं कि आप अपने पिछले प्रदर्शन के आधार पर प्रमोशन के योग्य हैं और आप संस्था के प्रति प्रतिबद्ध हैं व छुट्टी ख़त्म होते ही आप काम पर वापस लौटने का इरादा रखती हैं. करियर को लेकर अपनी महत्वाकांक्षाओं के बारे में मैनेजमेंट से बात करें. छुट्टी के दौरान अपने सहकर्मियों के संपर्क में बनी रहें; कंपनी में क्या हो रहा है, यह जानने के लिए उन्हें फ़ोन करें. यह बहुत ज़रूरी है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपको भुला न दिया जाए और कंपनी को लगे कि आप उनसे जुड़ी हुई हैं.
इस तरह ऑफ़िस में किया जाता है महिलाओं के साथ पक्षपात
विवाह को लेकर पक्षपात
मातृत्व के बाद मैनेजमेंट को परेशान करनेवाली दूसरी सबसे बड़ी ख़बर किसी महिला कर्मचारी की शादी के अलावा और कुछ नहीं हो सकती. अक्सर जब महिलाएं अपनी शादी की बात ऑफ़िस में बताती हैं, तो बॉस ऐसे पेश आने लगते हैं, जैसे उन्होंने त्यागपत्र दे दिया हो. उन्हें नज़रअंदाज़ किया जाने लगता है.
यूं निपटें: यह अन्यायपूर्ण है कि आपका एम्प्लॉयर, आपसे सीधे बिना कोई स्पष्टीकरण मांगे, यह समझने लगे कि आप कंपनी के लिए प्रतिबद्ध नहीं होंगी. यहां आपका यह समझना भी ज़रूरी होगा कि शादी के बाद चीज़ें क्या और किस तरह बदल सकती हैं. अपने भावी पति और ससुरालवालों से इसके बारे में स्पष्ट बातचीत करें और उन्हें समझाएं कि आप अपनी नौकरी के प्रति कितनी समर्पित हैं और कितना समय ऑफ़िस में बिताना पड़ेगा. आप नहीं चाहतीं कि शादी के बाद आपसे किसी प्रकार की अप्रत्याशित उम्मीद की जाए, जैसे-घर की देखरेख करने और परिवारवालों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की, जो आपकी नौकरी के लिए प्रतिकूल हो सकता है.
इस तरह ऑफ़िस में किया जाता है महिलाओं के साथ पक्षपात
शांतिपूर्ण पक्षपात
यह काफ़ी पेचीदा होता है. क्या आपको वे सभी मौ़के याद हैं, जब आपके बॉस ने आपको ऑफ़िस से जल्दी घर जाने की इजाज़त दे दी हो और लंबे असाइन्मेंट्स से आपको मुक्त किया हो, ताकि आप अपने परिवार के साथ ज़्यादा से ज़्यादा समय बिता सकें? ख़ैर, इतने दयालु बॉस का होना भी अच्छा नहीं होता, ख़ासतौर पर जब आपको इन्क्रिमेंट के वक़्त औसत रेटिंग दी गई हो और प्रमोशन के लिए आपके नाम पर विचार तक न किया गया हो, क्योंकि आप बाक़ियों की तरह ऑफ़िस में देर तक नहीं रुकतीं!
यूं निपटें: इससे निपटना काफ़ी मुश्क़िल है, क्योंकि आपकी इसमें कोई ग़लती नहीं है. आख़िरकार, आपने किसी को अपने साथ नर्मी से पेश आने नहीं कहा था. यदि आपको लगता है कि आपने अपनी टीम के बाक़ी सदस्यों के बराबर काम किया है तो अपने बॉस से बात करें और उन्हें बताएं कि आप जानती हैं कि वे आपकी भलाई सोचते हैं, लेकिन आप इससे ज़्यादा की उम्मीद करती हैं. और यह भी कि आप अपनी निजी ज़िंदगी को बेहतर ढंग से चला सकती हैं, बग़ैर उनकी सहायता के!
इस तरह ऑफ़िस में किया जाता है महिलाओं के साथ पक्षपात
वरिष्ठ पद के लिए पक्षपात
सही योग्यता और प्रतिबद्धता होने के बावजूद कई बार उपयुक्त जगह पाना काफ़ी मुश्क़िल हो जाता है. यह सच है कि नेतृत्व करनेवाली वरिष्ठ भूमिकाओं में महिलाएं बहुत कम हैं. शुरुआती स्तर पर ढेरों महिलाएं हैं, लेकिन वरिष्ठ पदों पर इनकी संख्या पर्याप्त नहीं है.
यूं निपटें: शोध बताते हैं कि महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए संस्था में उनका उत्तरदायित्व लेनेवाले की ज़रूरत होती है-वरिष्ठ पदाधिकारी उनकी सिफ़ारिश करें, अलग-अलग फ़ोरम्स पर उनके पक्ष में बात करें और उनपर विश्वास जताने का जोख़िम उठाएं. जब आपकी संस्था में आपके लिए बात करनेवाला (स्पॉन्सर) हो तो लोगों की नज़र आप पर जल्दी पड़ती है. और अपनी संस्था में स्पॉन्सर पाने का तरीक़ा है-लंबी अवधिवाले असाइन्मेंट्स लेना, नेटवर्किंग, अपने काम को दिखाना, करियर से जुड़ी महत्वाकांक्षाओं के बारे में बात करना और संस्था के अलिखित नियमों को समझना. शांति से काम करना आपको कहीं नहीं ले जाएगा. आपका काम दिखना चाहिए. आपका काम आपके लिए नहीं बोलेगा, आपको अपने काम के बारे में बोलना होगा.
अगर आप अपनी बैलेंसशीट को स्ट्रॉन्ग बनाना चाहते हैं तो आपको इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा. और इससे बाहर निकलने का रास्ता तभी दिखेगा, जब आपको इन आम ग़लतियों के बारे में पता चलेगा, जो जाने-अनजाने हम सभी करते हैं.
रुपए-पैसे से जुड़ी आम ग़लतियां, जो लोग करते हैं
पहली ग़लती: आप ज़्यादा से ज़्यादा अगले 30 दिनों के बारे में सोचते हैं
ख़ुशहाल जीवन की सबसे अच्छी फ़िलॉसफ़ी हमें बताती है ‘हर पल यहां जीभर जियो’ इसे हम थोड़ा मॉडिफ़ाई करके इस तरह लेते हैं कि आज के लिए जियो. यहां आज के लिए का मतलब है अगले 30 दिनों के लिए जियो. हम जो कुछ भी कमाते हैं उसे इस तरह प्लैन करते हैं कि 30 दिनों तक चले. होता यह है कि 20 दिनों में ही अकाउंट ख़ाली हो जाता है. बाक़ी के 10 दिन 50 दिनों की तरह बीतते हैं. आज के लिए जीना फ़िलॉसफ़ी के हिसाब ठीक है, पर रुपए-पैसे के लिहाज़ से यह सोच उतनी कारगर नहीं है.
तो क्या करें?
बेशक आज के लिए जिएं, पर कल की भी सोचें. अगर आपके पैसे 30 के बजाय 20 दिनों में ही ख़त्म हो रहे हैं तो झोल आपकी प्लैनिंग में ही है. आप इतने कम समय की योजना बना रहे हैं, वही भी कारगर नहीं है तो भविष्य का क्या होगा? आप बहुत दूर की नहीं तो भी कम से कम निकट भविष्य की योजना तो बनाकर ही चलें. अपनी आय और ख़र्च पर दोबारा नज़र डालें. किसी भी स्थिति में आपको अपनी आय का कम से कम 12 प्रतिशत हिस्सा भविष्य के लिए निवेश करना चा‌हिए. और हां, तात्कालीन आपातकाल के लिए एक इमर्जेंसी फ़ंड ज़रूर बनाएं.
रुपए-पैसे से जुड़ी आम ग़लतियां, जो लोग करते हैं
दूसरी ग़लती: आपको ख़ुद से ज़्यादा लोन पर भरोसा करना
आज हमारे पास दुनिया की सारी सुख-सुविधाएं हैं, पर एक चीज़ ज़रा भी नहीं है... और वह है सब्र. नौकरी शुरू की नहीं, अपनी वो अधूरी इच्छाएं पूरी करने में लग जाते हैं, जो लंबे समय से मन में दबी थीं. हमें महंगे फ़ोन चाहिए, ड्रीम कार चाहिए और वेकेशन भी, पर पैसे होते नहीं. ऐसे में हमारी मदद के लिए आगे आते हैं बैंक, जो आसान किश्तों पर हमें लोन उपलब्ध करा देते हैं. आसानी से अपना सपना साकार होने की ख़ुशी मनाने के बाद जल्द ही आपको एहसास होता है कि आप तो क़र्ज़ के चंगुल में बुरी तरह फंस गए हैं. उसके बाद पसंद हो न हो, नौकरी करनी ही पड़ती है. काम से ब्रेक लेकर जिस नई स्किल को सीखने के बारे में सोच रहे थे, वह लंबे समय के लिए पेंडिंग हो जाती है. आपकी ज़िंदगी लोन चुकाने में क़ुर्बान हो जाती है.
तो क्या करें?
ख़ुद से सबसे पहले यह सवाल पूछें क्या ज़िंदगी इतनी सस्ती है? बेशक नहीं. ज़ाहिर है, आज की दुनिया में लोन से बच पाना नामुमक़िन जैसा है तो ऐसे में आपके पास केवल एक ही रास्ता है और वह है थोड़ी-सी समझदारी. आप यह देखें कि आख़िर लोन ले किसलिए रहे हैं. आपको कम से कम ऐसी चीज़ों के लिए लोन नहीं लेना चाहिए, जिसकी क़ीमत फ़्यूचर में ज़ाहिर तौर पर कम होनेवाली हो. जैसे-महंगी गाड़ी, फ़ोन या कोई दूसरा गैजेट. वहीं अगर घर ख़रीदने के लिए लोन लेना हो तो ज़रूर लें, क्योंकि घर की क़ीमत कम नहीं होनेवाली. आपको यह ध्यान में रखना होगा कि आपने सही क़ीमत पर घर लिया हो, मार्केट रेट से ज़्यादा पर नहीं. वैसे होम लोन की ईएमआई के बारे में विशेषज्ञ यह कहते हैं कि वह आपकी टोटल इनकम के 45% से अधिक न हो.
रुपए-पैसे से जुड़ी आम ग़लतियां, जो लोग करते हैं
तीसरी ग़लती: यह मानकर चलना कि मेरे साथ कुछ बुरा हो ही नहीं सकता
यह भी इंसानी फ़ितरत से जुड़ी ग़लती है कि हम कभी मानते ही नहीं कि दुर्घटनाएं हमारे साथ भी हो सकती हैं. बुरी से बुरी दुर्घटना अक्सर दूसरों के साथ हो जाती हैं, पर शुक्र है हमारे साथ कुछ नहीं होता. इसी सोच का नतीजा है कि हम पर्याप्त इंश्योरेंस नहीं लेते. और दुर्भाग्य से जब हमारे साथ कुछ बुरा होता है तो हम बुरी तरह मुसीबत में पड़ जाते हैं. मान लीजिए आप या आपके घर का कोई सदस्य बीमार हो गया और आपके पास हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है तो क्या होगा? आपको अचानक ही आर्थिक परेशानियां घेर लेंगी. कई रिसर्च कहते हैं कि अचानक आई बीमारियां भारत में ग़रीबी को बढ़ाने की महत्वपूर्ण कारक हैं. ज़रा कल्पना करें, अगर बीमारी से भी बुरा कुछ हुआ तब आपके घर की क्या हालत होगी! भले ही आप युवा और स्वस्थ हों, पर जीवन बीमा के साथ-साथ हेल्थ इंश्योरेंस भी कराएं.
तो क्या करें?
इंश्योरेंस लेने में ज़रा भी आना-कानी न करें. भले ही बीमा आग्रह की विषय वस्तु हो, पर किसी के द्वारा आग्रह किए जाने का इंतज़ार न करें. आपको अपनी ज़रूरत के अनुसार इंश्योरेंस पॉलिसी ख़रीद लेनी चाहिए. बीमा से न केवल आपको बुरे समय में आर्थिक मदद मिलती है, बल्कि कई पॉलिसीज़ आपकी टैक्स सेविंग में भी मददगार होती हैं. फिर भी पॉलिसी ख़रीदते समय अपनी ज़रूरत को प्राथमिकता दें, न कि इस बात को कि आपको टैक्स में छूट कितनी मिलेगी.
अक्सर हम इस दुविधा में होते हैं कि इंश्योरेंस का कवर कितना होना चाहिए? एक्स्पर्ट्स की मानें तो कवर आपकी सालाना आय का कम से कम चार से पांच गुना होना ही चाहिए. ध्यान रखें कि आप जितनी कम उम्र में इंश्योरेंस लेंगे आपको प्रीमियम भी उतना कम देना होगा.
रुपए-पैसे से जुड़ी आम ग़लतियां, जो लोग करते हैं
चौथी ग़लती: बिना सोचे समझे निवेश करना
आपने कहीं सुना था कि शेयर मार्केट में पैसे लगाना फ़ायदे का सौदा है. वहां अच्छा-ख़ासा रिटर्न मिलता है. आपने अभी-अभी नौकरी शुरू की है और निवेश के बारे में भी सीरियस हैं. यह तो एक अच्छी निशानी होनी चाहिए. पर दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है. कभी भी केवल सुनी-सुनाई बातों के आधार पर या किसी दोस्त की राय पर अपनी गाढ़ी कमाई का निवेश न करें. आपको अच्छे से सोच समझकर, अपने टार्गेट्स के अनुसार निवेश करना चाहिए. निवेश करते समय आपकी उम्र भी बहुत मायने रखती है. कहने का मतलब है, 20 से 30 की उम्र तक जहां पैसे लगाना ठीक था, ज़रूरी नहीं है कि आगे भी वहां पैसे निवेश करने में समझदारी है.
तो क्या करें?
जिस तरह जीवन के हर स्टेज पर हमारी प्राथमिकताएं बदलती रहती हैं, उसी तरह समय-समय पर अपने पोर्टफ़ोलियो की समीक्षा भी करनी चाहिए. युवावस्था में आपको रि‌स्की फ़ंड्स में पैसे लगाने से नहीं झिझकना चाहिए. उम्र के तीसरे दशक में घर ख़रीदने जैसे बड़े फ़ैसले ले लेने चाहिए. उससे अधिक देरी सही नहीं मानी जाती. वहीं उम्र के चौथे दशक में गैरेंटीड रिटर्न वाली जगहों पर निवेश करना चाहिए. आप अचानक बड़ा अमाउंट खोने का रिस्क नहीं ले सकते. कहने का मतलब है अपना हर पैसा काफ़ी सोच समझकर निवेश करें. किसी की बातों में आकर या किसी से प्रभावित होकर निवेश करने से अच्छा है, पैसे को फ़िक्स्ड डिपॉज़िट जैसे पारंपरिक जगहों पर ही रहने दें.
उम्मीद है आप समझ गए होंगे कि पैसे आपके पास आते ख़ूब हैं, पर टिकते इसलिए नहीं हैं क्योंकि आपकी हस्तरेखा में नहीं, आपकी फ़ायनेंशियल प्लैनिंग में प्रॉब्लम है. तो अब देर किस बात की है अपनी प्लैनिंग को दुरुस्त कर लें.
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