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79 वर्षीय बुजुर्ग ने चौथे चरण के कैंसर से बनाया रिकॉर्ड, इम्यूनोथेरेपी के जरिये मिला नया जीवन
Admin4
17 Aug 2021 1:17 PM GMT
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79 वर्षीय बुजुर्ग ने तो चौथे चरण के कैंसर से उबरते हुए रिकॉर्ड ही बना डाला है. यह सब संभव हुआ है, इम्यूनोथेरेपी से.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क :- कैंसर यानी एक ऐसी खतरनाक बीमारी, जिसमें शरीर के किसी अंग की कोशिकाएं खराब होकर असामान्य रूप से बढ़ने लगती हैं और ऐसा होना मौत का कारण बनता है. किसी मरीज में जब कैंसर का पहली बार पता चलता है तो सामान्यत: बातचीत में यह पूछा जाता है कि कैंसर कौन-से स्टेज में है. यानी पहले या दूसरे स्टेज में कैंसर का पता चल जाए तो उपचार में ज्यादा संभावनाएं रहती हैं.
कैंसर के तीसरे, चौथे स्टेज में पहुंच जाने पर स्थिति गंभीर हो जाती है. खासकर चौथे स्टेज के कैंसर मरीजों के बारे में सामान्यत: यह माना जाता है कि उनकी जीवन प्रत्याशा एक वर्ष है. यानी वह एक वर्ष तक जिंदा रह पाएंगे, लेकिन एक 79 वर्षीय बुजुर्ग ने तो चौथे चरण के कैंसर से उबरते हुए रिकॉर्ड ही बना डाला है. यह सब संभव हुआ है, इम्यूनोथेरेपी से.
क्या है इम्यूनोथेरेपी?
इम्यूनोथेरेपी शब्द से ही स्पष्ट होता है कि यह मानव शरीर में इम्यूनिटी बढ़ाने वाली थेरेपी है. कैंसर के उपचार के लिए सामान्यत: कीमोथेरेपी की जाती है. लेकिन इसके विपरीत इम्यूनोथेरेपी कैंसर को मारती नहीं है, बल्कि यह कैंसर कोशिकाओं से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा कोशिकाओं को अधिक प्रभावी बनाता है. यानी प्रभावित अंग में जो स्वस्थ कोशिकाएं हैं, उनको इम्यून कर मजबूत बनाती हैं ताकि स्वस्थ कोशिकाएं, खराब कोशिकाओं से लड़ सकें.
79 वर्षीय व्यक्ति को मिला नया जीवन
फेफड़ों के कैंसर के खतरनाक चौथे चरण से पीड़ित 79 वर्षीय एक बुजुर्ग को गुड़गांव में एक निजी अस्पताल में इम्यूनोथेरेपी कराने के बाद नया जीवन मिला है. अस्पताल के अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी. पारस अस्पताल गुड़गांव के एक बयान के मुताबिक, एक धारणा है कि फेफड़ों के कैंसर की गंभीर अवस्था वाले रोगियों की जीवन प्रत्याशा एक वर्ष की हो सकती है. लेकिन 79 वर्षीय ने इस धारणा को तोड़ दिया है.
कैंसर के साथ सबसे लंबे समय तक जीने का रिकॉर्ड
बयान में कहा गया, 'इम्यूनोथेरेपी के उपयोग के साथ, हम 79 वर्षीय रोगी को जीवन की उत्कृष्ट गुणवत्ता के साथ जीवित रख पाने में सक्षम हैं. वह शायद चौथे चरण के फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित व्यक्तियों में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वालों में से एक हैं, जिन्हें आधुनिक चिकित्सा का लाभ मिला है.'
बयान में दावा किया गया है कि रोगी के 2016 में चरण चार के फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित होने का पता चला था और तब से उन्हें इम्यूनोथेरेपी दी गई. उन पर इलाज का अच्छा असर हुआ है और वह भारत में इस चरण के कैंसर पीड़ितों में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वालों में से एक हैं.
2016 में डिटेक्ट हुआ कैंसर, लड़ कर जीते
वर्ष 2016 में उनकी बीमारी का पता लगने के बाद, रोगी पर विभिन्न प्रकार के कीमोथेरेपी का असफल परीक्षण किया गया था. वह काफी कमजोर थे और व्हीलचेयर पर ही रहते थे. पारस कैंसर केंद्र, पारस अस्पताल, गुड़गांव के वर्तमान अध्यक्ष डॉ (सेवानिवृत्त कर्नल) आर रंगा राव ने उन्हें इम्यूनोथेरेपी की सलाह दी, जो उस समय भारत के लिए काफी नई थी और कुछ हफ्तों के बाद, वह चल पा रहे थे.
बयान में कहा गया है कि शुरुआत में उन्हें त्वचा पर चकत्ते और थायरॉइड की समस्या जैसे कुछ दुष्प्रभाव हुए, लेकिन डॉक्टरों ने इसे तुरंत नियंत्रित कर लिया. वर्तमान में मरीज की स्वास्थ्य में बहुत सुधार हो रहा है और अगले साल की शुरुआत में अपना 80वां जन्मदिन मनाने का इंतजार कर रहे हैं.
इसके बारे में राव ने कहा, 'खतरनाक फोर्थ स्टेज के कैंसर के बावजूद, उन्होंने कैंसर से लड़ाई लड़ी है और बिना किसी सर्जरी के इससे बच हुए हैं. कैंसर के इलाज में नई तकनीकों के विकास और चिकित्सा के सही विकल्प के चयन के माध्यम से खतरनाक चरणों वाले और बुजुर्गावस्था में भी फेफड़ों के कैंसर से निपटा जा सकता है.'
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