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बच्चों को डिस्प्लिन यानी अनुशासन सिखाना हर पैरेंट्स का सिरदर्द होता है, ख़ासकर इस पीढ़ी के बच्चों को. जहां हमारी पीढ़ी को अनुशासन सिखाने के लिए पैरेंट्स बोलते कम थे, उनके हाथ-पैर ज़्यादा चलते थे, अब तो अगर बात बनती है तो केवल बातचीत से ही बनती है. अनुशासन सिखाने की पुरानी परंपरा अब बच्चों को बाग़ी बना देती है. यहां हम बच्चों को अनुशासित करने के पॉज़िटिव तरीक़े बता रहे हैं, जिससे वे न केवल अनुशासन में रहेंगे, बल्कि अदब और प्यार भी सीखेंगे. हम यह बताएंगे कि उनके किस नखरे को किस तरह हैंडल करना है.
अगर बच्चे सबकुछ बिखेर देते हों
ज़्यादातर बच्चों को गेम्स पसंद होते हैं. अगर वे अपनी चीज़ों को ठिकाने पर नहीं रखते. यहां-वहां फेंकते-फैलाते रहते हैं तो उन्हें चीज़ें जगह पर रखने की सीख खेल-खेल में ही दें. टाइमर लगाकर उन्हें चीज़ों को व्यवस्थित रखने के लिए कहें. इसे एक रियल लाइफ़ गेम की तरह ट्रीट करें. उनके द्वारा समय पर काम पूरा करने के बाद उन्हें रिवॉर्ड भी दें. देखें, आपके बच्चे किस तरह खेल-खेल में चीज़ों को व्यवस्थित रखना सीख जाते हैं.
अगर बच्चे नखरे करते हों
बच्चों द्वारा नखरे करना यह बताता है कि वे मेंटली अपसेट हैं. वे या तो बहुत ज़्यादा क्रोध में होते हैं या या बहुत ही अधिक दुखी होते हैं. ऐसे में उन्हें डांटना-मारना सही नहीं होगा. आप उनके साथ जादू की झप्पी वाला ट्रीटमेंट आज़माकर देखें. आपके स्नेह और प्यार से उनका भावनात्मक उतार-चढ़ाव तुरंत संतुलित हो जाता है. वे पलभर में ही नॉर्मल न हो जाएं तो कहना.
अगर बच्चा कुछ ज़्यादा ही रौब दिखाता हो
अक्सर बच्चे अपने से छोटों या अपनी बात सुनने वालों पर रौब झाड़ना शुरू कर देते हैं. ऐसे में आपको क्या करना चाहिए? रौब छाड़ने वाले बच्चों पर अधिकार जमाना उन्हें और उत्तेजित कर सकता है. उन्हें अपना सहायक बनाकर देखें. उन्हें थोड़े अधिकार देकर उन्हें महत्वपूर्ण फ़ील कराएं. उसके बाद किसी काम, जो आमतौर पर उनकी उम्र के बच्चे आसानी से न करें, को करने की ज़िम्मेदारी उन्हें दें. वे पूरे लगन से उस काम को करने में जुट जाएंगे. आप देखेंगे कि किस तरह ज़िम्मेदारी उन्हें एक अच्छे बच्चे में बदल देती है.
अगर वह खाने में नखरे करता हो
जब बच्चे खाने में नखरे करते हों तो उन्हें ठीक करने के लिए ‘वन बाइट रूल’ सबसे कारगर नियम है. अमूमन बच्चे खाने को टेस्ट करने से पहले ही नखरे करने लगते हैं. उनसे प्यार से आग्रह करें कि वे पहले एक कौर खाना खाकर देखें, अगर उसके बाद पसंद न आए तो नहीं खाएंगे तो चलेगा. हां, बदले में उन्हें दूसरा खाना टेस्ट करना होगा. ऐसा करते समय आपको दो-तीन चीज़ें बनानी पड़ेंगी, ताकि वे भूखे न रह जाएं. इस तरीक़े को अपनाने से तीन अच्छी बातें होंगी-पहली बात यह कि वे भूखे नहीं रहेंगे, दूसरी बात-वे कई चीज़ें टेस्ट करेंगे तो उनके टेस्ट बड्स डेवलप होंगे और तीसरी बात-वे खाने के नाम पर नाटक नहीं करेंगे.
अगर उसको होमवर्क कराना बड़ा टास्क हो
ज़्यादातर बच्चे होमवर्क करने के नाम पर ही दूर भागने लगते हैं. ऐसे में उनके पैरेंट्स उन्हें ज़बर्दस्ती स्टडी टेबल पर बिठा देते हैं. कई बार बच्चे अनमने ढंग से होमवर्क जैसे-तैसे पूरे कर ही लेते हैं और उससे भी बुरा यह होता है कि वे घंटों बिना कुछ किए बैठे रहते हैं. कई पैरेंट्स उन्हें पढ़ने में अच्छे बच्चों से कंपेयर करके प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जिससे बच्चे और भी चिढ़ जाते हैं. आपको चाहिए कि बच्चे के साथ ज़ोर-ज़बर्दस्ती या उनकी तुलना करने के बजाय पढ़ाई में उनकी रुचि जगाएं.
अगर बच्चे समय के महत्व को नहीं समझते हों
समय का महत्व बच्चे का बड़े भी नहीं समझते. ‘हां, दो मिनट में आता हूं’ कहकर वे घंटों खेलने लगते हैं. इस तरह की आदतें अगर बचपन में ही नहीं सुधारी गईं तो बच्चे ज़िंदगीभर ढीले और समय को लेकर अस्तव्यस्त बन जाते हैं. अगर बच्चे ऐसा करें तो उन्हें सबक सिखाने के लिए उनके फ़ेवरेट काम के टाइम को कम कर दें. जब उन्हें अपनी पसंदीदा गतिविधि के लिए समय नहीं मिलेगा, तो वे बाक़ी कामों में समय के महत्व को समझ जाएंगे.
अगर आपका बच्चा आदतन झूठ बोलनेवाला बन गया हो
बच्चे एक तरह के फ़ैंटसी वर्ल्ड में रहते हैं, जिसके चलते बिना मतलब झूठ बोलना उनकी आदत बन जाती है. अगर आपका बच्चा फ़ैंटसी और रिऐलिटी में फ़र्क़ नहीं कर पा रहा हो तो वह आदतन झूठा बन जाता है. वह असल ज़िंदगी से जुड़ी चीज़ों को भी बढ़ा-चढ़ाकर बताने लगता है. उसकी इस आदत को छुड़ाने के लिए एक काम करें, उसकी इस क्षमता का सही इस्तेमाल करना सिखाएं. उसे कहानी लिखने की प्रेरणा दें. उससे कहें कि वह अपने पूरे इमैजिनेशन को काग़ज़ पर उतार दे. इस तरह वह रियल और कल्पना वाली दुनिया में फ़र्क़ करना सीखेगा. साथ ही एक अच्छा राइटर भी बन जाएगा.
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