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अनुशासन के तौर पर, योग आपके शरीर के साथ-साथ आपके मन को भी स्वस्थ रखने में मदद करता है. यह निश्चित करना बहुत ही ज़रूरी होता है कि आपका शरीर तंदुरुस्त हो और आपका दिमाग़ बिल्कुल स्वस्थ. योग इतना अधिक प्रभावशाली है कि बॉलिवुड की लगभग सभी हसीनाएं इसका पुरज़ोर वक़ालत करती हैं, जिसमें मलाइका अरोरा, ईशा गुप्ता, जैक्लिन फ़र्नांडिस और बिपाशा बसु जैसी कई हस्तियां शामिल हैं. वैसे शुरुआत हमें राइट नोट पर करना अच्छा होता है, तो क्यों ना बेसिक योग स्ट्रेचिंग के साथ करें, जिससे आपके शरीर को एक सही शुरुआत मिल सकेगी. स्ट्रेचिंग करके ब्लड सर्कुलेशन को इम्प्रूव किया जा सकता, जिससे आप तरोताज़ा महसूस करेंगी और दिन की किसी भी चुनौती स्वीकारने के लिए तैयार हो सकेंगी.
हम यहां पर आपको पांच बेसिक योग स्ट्रेचिंग्स के बारे में बता रहे हैं, जो करने में बेहद आसान हैं.
1. अधोमुखश्वानासन
यह एक बेसिक योग है और इसे आप योग स्ट्रेचिंग भी कह सकती हैं. इस स्ट्रेचिंग को करने के लिए अपने दोनों हाथों और पैरों को पीछे फैलाते हुए सांस छोड़ें और अपने हिप्स को ऊपर उठाएं. जितना संभव हो सके अपने हाथों और पैरों को सीधा और अपनी नज़र नीचे की तरफ़ रखें. फिर गहरी सांस लें और कुछ सेकेंड्स के लिए इसी स्थिति में बने रहें. इस स्ट्रेचिंग को रोज़ाना करने से कमर दर्द कम होता है, ब्लड सर्कुलेशन कंट्रोल में रहता है और बॉडी को एक टोन भी मिलता है.
2. मालासान
मालासन करते समय दोनों हाथ नमस्कार या प्रणाम की मुद्रा में जोड़ लें और डीप स्क्वॉट में बैठ जाएं. आपनी एड़ियों को पूरी तरह से ज़मीन जमाए रखें. इस स्ट्रेचिंग से थाई, हिप्स औ पेल्विक एरिया बहुत ही सुंदर तरीक़े से उभरते हैं. इससे घुटनों, जोड़ों और पीठ के दर्द को कम करने में मदद मिलती है. कब्ज़ और गैस से भी राहत मिलती है.
3. भुजंगासन
यह रीढ़ की हड्डी और अपर बॉडी के लिए बहुत ही बढ़िया स्ट्रेचिंग है. इसे करने के लिए पेट के बल लेट जाएं और अपने तलवों को छत की तरफ़ रखें. इसके बाद अपने हाथों पर ज़ोर डालते हुए छाती से ऊपर की ओर उठें और पीठ को जितना हो सके मोड़ें. इस स्ट्रेचिंग को आप एक मिनट तक कर सकती हैं. इससे आपके रीढ़ की हड्डी को मज़बूती मिलती है और सायटिका से भी राहत मिलती है.
4. बीतिलासन
इस वीडियो के ज़रिए आप कैट-काउ पोज़ यानी बीतिलासन ट्राय कर सकती हैं. कैट व काउ पोज़ में आपकी रीढ़ और हिप्स में खिंचाव पैदा होता है, जिससे आपको लोअर बैक पेन, नेक पेन और स्ट्रेस से भी राहत मिलती है.
5. बालासन
बालासन करते समय ज़मीन पर अपने दोनों पैरों को घुटनों से पीछे की तरफ़ मोड़ कर बच्चे की तरह बैठ जाएं और आगे की तरफ़ लेट कर हिप्स को ऊपर उठाए और हाथों को आगे तरफ़ ले जाएं. इसे करते समय सांस लेने औऱ छोड़ने की पूरी प्रक्रिया पर अधिक ध्यान दें. सही तरीक़े से बालासन करने से थकान दूर करने में मदद मिलती है, पीठ की दर्द से आराम मिलता है और ब्लड सर्कुलेशन भी ठीक रहता है.
टीकाकरण पर अलग-अलग देशों वहां के विशेषज्ञों और लोगों का अलग-अलग विश्वास है. कुछ टीकाकरण को बहुत ही प्रभावी मानते हैं तो कुछ इन्हें बेअसर मानते हैं. कुछ का मानना है कि टीकों से अन्य रोग उत्पन्न होते हैं, जैसे-ऑटिज़्म, इंटयूससेप्शन (आंतों का उलझना) आदि. कई देशों ने कुछ टीकों को अपने देशों में प्रतिबंधित कर रखा है तो कई देशों ने अपने यहां पर उन्हीं टीकों को ज़रूरी स्वास्थ्य अभियान में शामिल किया है.
कुछ लोगों का टीकाकरण पर अटूट विश्वास है, तो कुछ का कहना है कि टीकाकरण के बावजूद रोग होते हैं, तो इन्हें लगवाने से क्या लाभ? जैसे बीसीजी का टीका लगवाने के बाद भी टीबी कई विकासशील और ग़रीब देशों में विकराल रूप धारण किए हुए है. जबकि इसके टीके की खोज हुए अगले वर्ष 100 साल हो जाएंगे. बीसीजी के टीके को आए हुए अगले साल 100 साल पूरे हो जाएंगे. 1921 में टीबी का यह विश्वप्रसिद्ध टीका आया था और हो सकता है कि इसके ठीक 100 साल बाद 2021 में वर्तमान महामारी (कोरोना) का भी टीका आ जाए (हालांकि रूस ने कोरोना का टीका डेवलप कर लिया है और जल्द ही बड़े स्तर पर टीकाकरण अभियान शुरू होनेवाला है. फिर भी पश्चिम के कई देश और ख़ुद डब्ल्यूएचओ ने उसके टीके की प्रामाणिकता पर संदेह जताया है). ख़ैर कोरोना की बात छोड़कर, हम बात करते बीसीजी के टीके की. तो सवाल यह है क्या 100 साल में हम टीबी से मुक्त हो गए? टीके की खोज के 97 साल बाद यानी 2018 में टीबी से 15 लाख लोगों की मौत हुई विश्व में और हर साल इसके 1 करोड़ नए कैसेस सामने आ रहे हैं.
बीसीजी टीके का विवादित इतिहास
बीसीजी टीके को सबसे पहले 1921 में पेरिस में वेल्हेल ने एक बच्चे को 6एमजी की मात्रा में मुंह से दिया था जिसे उसकी दादी उनके पास लाई थी. क्योंकि, उसकी मां उसे जन्म देने के बाद टीबी के कारण मर गई थी. कहते हैं कि उस बच्चे को टीबी नहीं हुई. इसके बाद 1928 तक (7 सालों में) 969 बच्चों को बीसीजी का टीका लगाया इनमें से 303 बच्चों की माताओं को टीबी थी और अन्य बच्चे ऐसे थे जिनके संपर्क में टीबी रोगी आए थे. केलमेट ने इस ट्रॉयल का निष्कर्ष यह निकाला कि जिन बच्चों को बीसीजी दिया गया उनमें टीबी से केवल 3.9% रोगी मरे जबकि ऐसे बच्चे जिन्हें यह टीका नहीं लगाया गया उनकी मृत्यु दर 32% तक थी. चिकित्सा जगत में इस रिसर्च की बहुत आलोचना हुई. कई विशेषज्ञों ने इसे मनगढ़ंत तक कह कर उपहास उड़ाया था. इन सबके बावजूद 1928 में पेरिस में हुई अंतरराष्ट्रीय लीग कॉन्फ्रेंस में इसे सुरक्षित घोषित करार दिया गया और बढ़ावा देने का प्रस्ताव भी पारित हो गया.
लेकिन, इस टीके के लिए राह अब भी आसान नहीं थी क्योंकि, 2 साल बाद ही मतलब 1930 में लुबेक त्रासदी घटित हुई. 252 जर्मन नवजात बच्चों को पॉस्चर लैब, पेरिस में बने लेकिन जर्मनी की लैब में लगाने के लिए तैयार किया था, लगाया तो उनमें से 78 बच्चों को टीबी हो गई और वे एक साल में इस रोग से मर गए. 135 और संक्रमित हुए थे लेकिन वे सौभाग्य से ठीक हो गए. इस त्रासदी से बीसीजी के टीके पर कई प्रश्नचिन्ह लग गए. इसके उपयोग में बहुत गिरावट आई. हालांकि 1932 में जांच में 2 कर्मचारियों को दोषी पाया गया कि उन्होंने हैंडलिंग सही से नहीं की और उन्हें जेल में डाल दिया गया. लेकिन, बीसीजी पर लोगों का भरोसा द्वितीय विश्वयुद्ध तक नहीं बढ़ा.
विवादों के बावजूद बढ़ी बीसीजी टीके की मांग
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इसका उपयोग बढ़ा क्योंकि, टीबी के केसेस काफ़ी बढ़ रहे थे और लोगों के पास इसके अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं थे. और फिर इतने वर्षों में लुबेक त्रासदी जैसी कोई घटना भी नहीं घटी थी. इस तरह कई देशों ने अपने यहां इसे प्रयोग करना शुरू किया और अब तक ये अधिकांश देशों के नवजात शिशुओं को लगाया जा रहा है.
बीसीजी का टीका कितना प्रभावी है इसपर भी कॉन्ट्रोवर्सी है क्योंकि, ट्रॉयल कहते हैं कि ये 0 से 80% तक टीबी से बचाव करता है. कई बीसीजी विरोधी विशेषज्ञ इसे भी हास्यास्पद बताते हैं कि 0 से 80% सेफ़्टी का क्या तात्पर्य है? यह तो उन्हें केवल भ्रम ही लगता है.
1968 में दक्षिण भारत के चिंगलपुट और उत्तर भारत में कहीं पर एक वृहद ट्रॉयल आईसीएमआर और डब्ल्यूएचओ द्वारा संयुक्त रूप से किया जाना था. मूल ट्रॉयल तो यह देखना था कि, फ्रांस में बने बीसीजी और डेनमार्क में बने बीसीजी में ज़्यादा सुरक्षा कौन देता है. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया (उत्तर भारत में ट्रॉयल नहीं हो पाया) क्योंकि उस समय भारत में राजनीतिक उठापटक चल रही थी. 10 साल बाद 1979 में केवल चिंगलपुट के नतीजे बताए गए जो कि बड़े विचित्र थे. ख़ैर, नतीजा यह था कि बीसीजी का टीका टीबी के संक्रमण से कोई सुरक्षा नहीं प्रदान करता.
बीसीजी के भाग्य में विवाद ही अधिक हैं. लेकिन, इसके समर्थक मानते हैं कि इसने टीबी से असंख्य लोगों की जान बचाई है, ख़ासतौर से बच्चों की. बीसीजी सबसे पुराना, सबसे ज़्यादा उपयोग में आने वाला और सबसे ज़्यादा विवादित टीका है विश्व में. इसके 100 साल पूर्ण होने पर वर्तमान महामारी का भी टीका आ जाएगा. हम दुआ करें कि वह टीका विवादित न हो और 100% सुरक्षित हो और सुरक्षा प्रदान करे.
डॉ अबरार मुल्तानी, कई बेस्ट सेलर किताबों के लेखक और जानेमाने आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं. भोपाल में निवास
उम्र बढ़ने के साथ-साथ आंखों के मसल्स की टोन और फ़्लैक्सिबिलिटी कम होती जाती है और आंखों से जुड़ी कई समस्याएं होने लगती हैं. इसी वजह से धीरे-धीरे विभिन्न दूरियों पर देखने की क्षमता भी कम हो जाती है, यानी आंखों की रौशनी में कमी आने लगती है. इस समस्या पर रोक लगाने के लिए आप योग और एक्सरसाइज़ का रास्ता चुन सकते हैं. अगर आपके आंखों की रौशनी एकदम फ़िट है, तो उसे फ़िट रखने के लिए और कम हुई है, तो उसमें सुधार लाने के लिए कुछ आई एक्सरसाइज़ करनी चाहिए.
डॉक्टर राजीव राजेश, चीफ़ योग ऑफ़िसर, जिंदल नेचरक्योर इंस्टिट्यूट का कहना है कि,“ ऐसी कई एक्सरसाइज़ हैं, जो न केवल आपकी आंखों के स्वास्थ्य के लिए फ़ायदेमंद होती हैं बल्कि ज़्यादा फ़ोकस करने में भी मदद करती हैं. इन एक्सरसाइज़ेस से आंखों की मसल्स में आए खिंचाव और सिकुड़न से राहत मिलती है और उनका संतुलन बना रहता है.
आंखों के लिए बेसिक और इंटरमीडिएट एक्सरसाइज़
सबसे पहले ख़ुद को रिलैक्स करें. तीन मिनट तक गहरी सांस लें, इससे रिलैक्स होने में मदद मिलेगी. आप चाहें, तो शुरुआत शवासन से कर सकते हैं. इसके बाद आरामदायक मुद्रा में आ जाएं, जैसे कि सुखासन. अपने सिर और गर्दन को स्थिर रखें और आइबॉल को भी रिलैक्स करें. अपने चेहरे के ठीक सामने एक अलार्म घड़ी रखें और आइबॉल को ऊपर की तरफ़ उठाते हुए 12 को देखें और कुछ देर तक इसी मुद्रा में बने रहें. इसके बाद आइबॉल को नीचे की तरफ़ लाएं और 6 को देखें. इसी तरह से 10 बार 12 और 6 को देखें, बिना पलकों को झपकाए हुए. एक्सरसाइज़ पूरी होने के बाद अपनी हथेलियों को आपस में ज़ोर से रगड़ें ताकि वो गर्म हो जाएं और उन्हें अपनी आंखों पर रखें और उनकी सिंकाई करें. अपनी सांस पर ध्यान दें और हथेलियों से निकलने वाली गर्माहट को महसूस करें.
सुखासन मुद्रा में बैठे हुए ही अब आइबॉल को हॉरिज़ॉन्टल तरीक़े से घूमाएं. अलार्म क्लॉक में 9 और 3 के अंक को बारी-बारी से देखें. इस प्रक्रिया को 10 बार दोहराहने के बाद हथेलियों को आपस में रगड़कर गर्म करें और आंखों को सेंकें. इसी तरह से आपको घड़ी में दिए गए सभी अंकों को अपने आइबॉल से देखना है, जैसे 1 और 7, 11 और 5. इन मूवमेंट्स से आंखों की बढ़ी हुईं ऑक्यूलर मसल्स से राहत मिलती है और आप आसपास की चीज़ों को पहले से कहीं अधिक साफ़ देखने में सक्षम हो पाते हैं.
डॉक्टर राजीव कहते हैं कि,“ जो लोग ज़्यादा समय तक लैपटॉप या फ़ोन की स्क्रीन देखते हैं उन्हें यह एक्सरसाइज़ को ज़रूर करनी चाहिए. इससे आंखों को आराम मिलेगा. आंखों में फ़ोटोरिसेप्टर हर मिनट में बनते और टूटते हैं. ऐसे में आंखों को आराम की ज़रूरत होती है. इसके लिए सबसे अच्छा रास्ता है कि आप एक लंबी गहरी सांस लें और आंखों को कवर करके उन्हें आराम दें.”
एक बार जब आपको बेसिक एक्सरसाइज़ पूरी तरह से आ जाए, तो आप दूसरी एक्सरसाइज़ भी आज़मा सकते हैं. जैसे- स्थिर बैठकर कुछ दूरी के किसी एक पॉइंट पर फ़ोकस करना. अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ाएं और अपने अंगूठे को फ़ोकल पॉइंट (जहां आपको देखना है) के नीचे रखें. इसके बाद अपने ध्यान को अंगूठे की नोक से उस पॉइंट पर धीरे से शिफ़्ट करें. इस प्रैक्टिस से आंखों में मौजूद सिलीएरी बॉडी को ट्रेंड करने में मदद मिलती है, जो आंखों के लेंस को एड्जस्ट करने में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाते हैं.
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