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शैम्वारी, पोर्ट एलिज़ाबेथ में वन्य प्राणियों की देखभाल करें
दक्षिण अफ्रीका के पोर्ट एलिज़ाबेथ और ग्राहम्सटाउन के ठीक बीच फैला शैम्वारी प्राइवेट रिज़र्व ज़िम्मेदार पर्यटन के एक बेहद आकर्षक ठिकाने के रूप में और वन्य प्राणियों के संरक्षण के प्रयासों के लिए जाना जाता है. बेबी हाथी थेम्बा से हमारी मुलाक़ात शैम्वारी के ही एक पशु अस्पताल एवं पुनर्वसन केंद्र में हुई, जहां पुन: जंगल में छोड़े जाने के लिए उसका इलाज चल रहा था. नन्हें थेम्बा की मां एक चट्टान से नीचे गिर गई थी, जिसके बाद से वह अपनी मां से बिछड़ गया था. रेन्जर्स ने थेम्बा को बचा लिया और अस्पताल पहुंचा दिया. भूख से अधमरे हो चुके थेम्बा को शैम्वारी में नई ज़िंदगी दी उसके उद्धारकों ने. उन्होंने उसे बोतल से दूध पिलाया और इतना लाड़ दिया कि वह जल्द ही फिर उतना ही तन्दुरुस्त हो गया, जितना कि हाथी के किसी नन्हें बच्चे को होना चाहिए.
दक्षिण अफ्रीका के जंगली अंचलों में आपको ऐसे एक नहीं, बल्कि अनेक थेम्बा मिल जाएंगे. दक्षिण अफ्रीका के वन्य जीवों की लुप्त होती प्रजातियों को बचाने के कई निजी प्रयास किए जा रहे हैं. इन प्रजातियों में शामिल हैं चीता व उसकी कुछ अन्य दुर्लभ प्रजातियां, लंगूर वानर और काले गेंडे. अनाथ, घायल और संकटग्रस्त प्राणियों की देख-रेख और उनको नया जीवन देने के प्रयास में कई लोग जुड़े हुए हैं, उनका मानना है कि शायद हम ही वह आख़िरी पीढ़ी हैं, जो एक नया बदलाव लाकर दुर्लभ वन्य जीवों को लुप्त होने से बचा सकते हैं.
कैसे जाएं: भारत से जोहान्सबर्ग के लिए सीधी उड़ानें उपलब्ध हैं. वहां से पोर्ट एलिज़ाबेथ के लिए फ़्लाइट पकड़ें, जो शैम्वारी गेम रिज़र्व से सड़क के रास्ते 45 मिनट की दूरी पर है.
कहां ठहरें: शैम्वारी गेम रिज़र्व एक निजी अभ्यारण्य है. यहां ठहरने के किराए में भोजन तथा गेम ड्राइव भी शामिल है.
सीमांचल पर सूर्यास्त को निहारें
भारत का सबसे बड़ा जिला कच्छ अपने राज्य गुजरात के मुख्य क्षेत्र से तबीयत और ज़िंदगी के लय-ताल के मामले में कुछ हट कर है. सुंदरता को आईना दिखाते इस जगह का स्वप्निल सच सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है, बयान नहीं. ख़ूबसूरती के इस रेतीले आकर्षण को महसूस करने-कराने के बेहद अच्छे काम में लगे हैं होडका गांव के निवासी, जो शाम-ए-सरहद रूरल रिसॉर्ट नामक एक ऐसा उपक्रम चला रहे है जो सामुदायिक पर्यटन प्रयास का अनोखा नमूना पेश करता है.
इस रिसॉर्ट की ख़ासियत है भुन्गा (बेलनाकार छतों वाली मिट्टी की दीवारों से बनीं गोल झोपड़ीनुमा रिहायशी इकाइयां, जो कच्छ के जिला मुख्यालय भुज के उत्तर में स्थित बान्नी के आसपास बसे 46 गांवों की विशेषता हैं) और रिसोर्ट के बीचों-बीच बने आरामदेह टेन्ट्स का जमावड़ा. अंदर की सजावट के लिए शोख़ रंगों के आवरणों, गलीचे, रज़ाई, छोटे-छोटे कांच के टुकड़े जड़े हुए लकड़ी के फ़र्नीचर्स इत्यादि का प्रयोग किया गया है. यहां फ्रेंच विंडोज़ पर स्थानीय कपड़े से बने पर्दे टंगे दिखाई देंगे. टेलीफ़ोन और टीवी जैसे आधुनिक उपकरण यहां नहीं हैं. भुन्गा के पिछले हिस्से में बने लग्ज़रियस बाथरूम में शीशे की दीवार पर बाहर की ओर से मिट्टी की दीवार बनाई गई है, जो उसे कवच का सा आवरण देती है.
पास के गांवों के का चक्कर लगाने के लिए निकलने पर आप ख़ूबसूरती से मिट्टी से पोते गए घरों को देख सकेंगे. गाढ़े रंगों के इस्तेमाल से बनी हुई विभिन्न प्रकार की हस्त निर्मित कलाकृतियों से की गई इन घरों की आंतरिक सज्जा भी मन मोह लेगी. मेहमाननवाज़ी पसंद गांववाले आपके हाथ में अनायास ही चाय का ग्लास थमा देंगे.
कैसे जाएं: हवाई, रेल और सड़क मार्ग के ज़रिए कच्छ के जिला मुख्यालय भुज आसानी से पहुंचा जा सकता है.
कहां ठहरें: शाम-ए-सरहद रूरल रिसोर्ट, जो कि भुज से 63 किमी की दूरी पर है एक बेहतरीन विकल्प है. यहां डबल टेन्ट का किराया आपकी जेब पर भारी नहीं पड़ेगा.
काबिनी की हरियाली में खो जाएं
काबिनी का ऑरेंज काउंटी रिसॉर्ट साफ़-सुथरा है. नदी-तट पर स्थित होने के साथ ही यह दक्षिण भारत के प्रसिद्ध नागरहोल नेशनल पार्क का एक मनोहारी हिस्सा है. घास-फूस के छप्पर से बने नीची छतों वाले विश्राम कक्ष रिसॉर्ट को प्रकृति के क़रीब बनाए रखते हैं. बावजूद इसके कि रिसॉर्ट किफ़ायती पर्यटन को समर्पित है, यहां के विलाज़ में प्राइवेट पूल्स और जकुज़ी इत्यादि की सुविधा है. इनकी सजावट स्थानीय काडू कुरुबा नाम की जनजाति के मिट्टी से बने कच्चे घरों, जिन्हें ‘हाडी’ कहा जाता है, से प्रेरित है.
बांस से बनी सीलिंग, स्थानीय कला के प्रिंट वाले पर्दे, सूखे कद्दू के आवरण से बने लैम्प तथा आंगन से जुड़े ऐसे खुले बाथरूम जिनमें बरसात के दौरान एकत्रित और प्रोसेस्ड पानी सप्लाई होता है, जैसी क़ुदरती चीज़ों की इस रिसॉर्ट को आदर्श रिसॉर्ट की शक्ल देने में अहम् भूमिका है. इसके अलावा हर कक्ष में रिवर्स ओसमोसिस संयंत्र तथा पर्यावरण-सहाय कचरा निस्तारण की सुविधा भी है. जहां बात जंगली जानवरों को उनके प्राकृतिक परिवेश में देखनी की है तो उसके लिए रिसॉर्ट नियमित गेम ड्राइव्स का इन्तज़ाम करता है. साथ ही रिसॉर्ट मेहमानों को यहां के प्राकृतिक माहौल को खंगालने के लिए भी प्रोत्साहित करता है. इसी क्रम में आप साइकल या पैदल भ्रमण द्वारा आस-पास के आदिवासी ग्रामीण अंचल के संपर्क में आने का लुत्फ़ भी उठा सकते हैं. इन गांवों के निवासी कमोबेश अब भी क़ुदरत के नियमों के अनुसार अपनी ज़िंदगी जीने में ख़ुशी का एहसास करते हैं.
कैसे जाएं: मैसूर समीपस्थ रेलवे स्टेशन और बैंगलोर निकटतम हवाईअड्डा है.
कहां ठहरें: ऑरेंज काउंटी रिसॉर्ट सबसे बेहतर विश्राम स्थली है.
मलेशिया के टर्टल आईलैंड पर गिनिए अंडे
पूर्वी मलेशिया के पलाउ द्वीप (जो टर्टल आईलैंड के नाम से प्रसिद्ध है) के टूरिस्ट लॉज के रिसेप्शन एरिया के मद्धम रोशनी में बैठकर हम इंतज़ार कर रहे थे कि कब पहली मादा कछुआ समुद्र तट पर आए और हम उसके द्वारा बीच पर दिए गए अंडों की गिनती करना शुरू करें. लगभग साढ़े सात बजे का वक़्त रहा होगा जब एक फ़ील्ड रेन्जर ने हमसे बीच पर चलने के लिए कहा. हम उसके इशारे वाली दिशा में बढ़े ही होंगे कि हमने एक काफ़ी बड़ी मादा को बालू में धंसा देखा. तभी रेन्जर ने फ़्लैशलाइट की रोशनी उस मादा पर डाली, तो हमने देखा कि वह बालू में स्वयं के बनाए गड्ढे में बड़े आराम से अंडे दे रही थी. तभी इस प्रक्रिया के दौरान ही दूसरे रेन्जर ने मादा कछुए की उस बांह जैसे अंग जो तैरने में सहायक होता है में लगा वह टैग ढूंढ़ना शुरू कर दिया जो बहुत पहले कभी बांधा गया था. इसके बाद उसने मादा के ऊपरी कवच का नाप लिया और ऐसे सारे अन्य तथ्य डायरी में नोट करने शुरू किए, जिनका अध्ययन और विश्लेषण अगले दिन किया जाना था. उस रात जो गड्ढा हमने देखा था उसी तरह के ढेर सारे अन्य तटवर्ती गड्ढों से, जिन्हें कछुओं का घोसला कहा जाता है से उस रात कुल 84 अंडे एकत्रित किए गए. बाद में सेने के लिए उन्हें ऐसे स्थान पर ले जाया गया जहां वे शिकारी जन्तुओं से सुरक्षित रह सकें.
जब हम वापस लॉज की ओर लौटे तो वहां हमारी अगवानी में अपने तैरने वाले अंग फैलाए ऐसे कई सारे छोटे-छोटे कछुए दिखे जिन्हें 21 रोज़ पहले अंडे की शक्ल में इसी बीच पर से एकत्रित किया गया था. अब उन पर भी विभिन्न जानकारीयुक्त टैग्स बांध दिए गए थे और तैयारी चल रही थी, उन्हें फिर से समुद्र में छोड़ने की. हमने भी पुन: समुद्र तट पर जाकर उन्हें ज़िंदगी के सफ़र पर रवाना किए जाने वाले उस छोटे से अभियान में भाग लिया. पानी में छोड़े जाने वाले समस्त नन्हें कछुओं में से सिर्फ़ ३ प्रतिशत ही ऐसे होंगे जो व्यस्क होने तक जीवित बच पाएंगे. जो जीवित बच पाएंगे वे 29 वर्षों बाद एक बार फिर उसी तट पर वापस लौटेंगे जिस पर उनका जन्म हुआ था, लेकिन इस बार स्वयं अपने अंड-समूह को जन्म देने के लिए.
कैसे जाएं: भारत से क्वाला लंपुर के लिए कई एयरलाइन्स की सीधी उड़ानें उपलब्ध हैं. क्वाला लंपुर आकर सैंडाकेन के लिए फ़्लाइट पकड़ें. यहां से पूर्वी मलेशिया के टर्टल आईलैंड पहुंचा जा सकता है.
कहां ठहरें: टर्टल आईलैंड की अधिकतर होटलों का किराया महंगे से किफ़ायती के बीच है. हां इसमें खाना भी शामिल होता है. होटल्स के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप टूरिज़्म मलेशिया की वेबसाइट खंगाल सकते हैं.
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Kajal Dubey
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