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छुट्टियां मौज-मस्ती के साथ अनजान रास्तों और अनछुई जगहों से दोस्ती का निमंत्रण भी लाती हैं, वहीं ख़ुद से मुलाक़ात का मौक़ा भी देती हैं. गर्मियों की छुट्टियों में तैयारी कीजिए घूमने की और महसूस कीजिए क़ुदरत के रंगों को. यहां छह अनछुए पर्यटन ठिकानों से रूबरू हों.
न तो मैं, न ही कोई और
तुम्हारा सफ़र तय कर सकता है
अपनी मंज़िल, अपने रास्ते
तुम्हें ख़ुद ही नापने होंगे
इसलिए बेहतर हो कि तुम
आज ही चलना सीख लो
क्योंकि ये सफ़र तुम्हें
हर कहीं मिलेंगे
धरती से लेकर आसमान तक...
(वाल्ट व्हिटमैन)
यात्राएं ज़रूरी हैं, इसलिए नहीं कि वो हमारी पहचान किसी अनजान बस्ती, अनजान ज़िंदगी, अनजान मौज या अनजान मन से कराती हैं. इसलिए क्योंकि यात्राएं हमें ख़ुद से जोड़ती हैं. ख़ुद के नज़दीक लाती हैं और ख़ुद को समझने की सलाहियत देती हैं. वैसे भी इन दिनों जिस तेज़ी से मौसम के तेवर बदल रहे हैं, वहां बेहतर यही है कि हम कुछ दिन रास्तों से दोस्ती कर लें और निकल पड़ें एक अनजान सफ़र पर... ताकि अपने पूरे हवास में कल, आज और कल को अलग-अलग करके देख सकें. लेकिन जाएं, तो जाएं कहां? क्योंकि जिन जगहों पर सूरज के ताप से निजात मिल सकती है, वहां गर्मी आने के साथ ही भीड़ का दवाब इस क़दर बढ़ जाता है कि कई बार छुट्टियां मज़ा की जगह सज़ा हो जाती हैं. लेकिन यह आपके साथ न हो, इसीलिए हम कुछ ऐसी जगहों की जानकारी लाए हैं, जहां भीड़ कम है और सुकून ज़्यादा.
दूधपथरी
रती की जन्नत कहे जानेवाले कश्मीर में श्रीनगर से महज़ 42 किलोमीटर दूर दूधपथरी के रूप में बसी एक और जन्नत गर्मियों में घूमने के लिए बेहतरीन विकल्प है. हालांकि यहां जाने पर आप इस सवाल में उलझ सकते हैं कि यह जगह नदियों में उफनते दूध जैसे पानी की वजह से दूधपथरी है या भारी मात्रा में दूध देनेवाली गायों के कारण फलते-फूलते दुग्ध व्यवसाय की वजह से? लेकिन क़ुदरत के ख़ूबसूरत नज़ारे सवालों को ज़्यादा देर तक ठहरने की इजाज़त नहीं देते. क्योंकि यहां पहुंचते ही तमाम तनाव अपने आप दूर हो जाते हैं. बाक़ी रह जाता है, तो एक अतुलनीय और अद्वितीय एहसास. प्यालों जैसे जुड़वां घास के मैदानों और किनारे बहती हुई दो नदियों वाला स्वर्ग का यह टुकड़ा बहुत दिन तक कहीं गुम रहा, लेकिन चूंकि अब इस जगह पर राज्य पर्यटन विभाग की नज़र पड़ी चुकी है और यहां पर्यटकों के लिए सुविधाएं भी बढ़ाई जा रही हैं. इस लिहाज से यहां छुट्टियां बिताना एक अनोखा अनुभव हो सकता है.
कल्पा
माचल प्रदेश का एक छोटा-सा क़स्बा है कल्पा, लेकिन सुंदरता ऐसी कि कुछ पल के लिए मन मुट्ठियों में आ जाए और पलकें झपकना भूल जाएं. यहां न पारंपरिक शहरों जैसी घिच-पिच है और न होटल्स में जगह के लिए मारा-मारी. उस पर हिंदू, बौद्ध और सिख धर्मों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण किन्नर कैलाश को छूती सूरज की किरणें और सब्ज़ रंग से लिपटे नज़ारों को देखना वाक़ई एक अलग ही अनुभव है. हालांकि यहां फ़ूड-पॉइंट्स कुछ कम हैं, मगर जो हैं उनमें ज़रूरत से ज़्यादा ही विकल्प मिल जाएंगे. इसी तरह भले यहां स्टार-रेटेड होटल्स न हों, लेकिन अतिथि देवो भवः की सीख से समझौता नहीं किया जाता.
कलिमपोंग
मुद्र से 1250 मीटर ऊपर बसा कलिमपोंग तपती, उबलती, चिलचिलाती गर्मियों को कूल-कूल एहसास देने के लिहाज से बेहतर जगह है. पर्यटकों का दवाब कम होने की वजह से अव्वल तो यहां खाना काफ़ी सस्ता है, दूसरे रुकने की जगह भी आसानी से और वाजिब दाम पर मिल जाती हैं. यानी मन के साथ-साथ जेब को भी राहत. अगर आप राफ़्टिंग के शौक़ीन हैं, तो यक़ीनन यह जगह आपके लिए वरदान से कम नहीं, क्योंकि पास में बहती तीस्ता नदी इसका खुला निमंत्रण देती है. ख़ुशबुओं से दामन भरना हो तो फूलों की ख़ूबसूरत वादियां हैं. हॉलिडे पैकेज में किसी मशहूर जगह का नाम जोड़ना चाहते हों, तो पास में दार्जिलिंग है. दूर तक बिछे चावल, मक्का, बाजरा और मौसमी फल-सब्ज़िायों के खेतों को निहारते रहना भी कम सुकूनदायक नहीं.
नुब्रा घाटी
ह-लद्दाख किसी परिचय का मोहताज नहीं, मगर इनके उत्तर-पूर्व में श्योक और नुब्रा नदी के संगम पर स्थित तीन भुजाओं वाली नुब्रा घाटी अभी भी किसी नवयौवना-सी अछूती है. उत्तर में काराकोरम और दक्षिण में लद्दाख की छाया नुब्रा घाटी की ख़ूबसूरती को कई गुना बढ़ाती है. नुब्रा ज़िेले से सबसे नज़दीकी टूरिस्ट-बेस सड़क से तक़रीबन 15 किलोमीटर दूर खलसर व पनामिक के बीच है, जो घुमक्कड़ी के लिहाज से बेहतरीन जगह हैं. अगर आप नुब्रा घाटी की सुंदरता महसूस करने का मन बना रहे हैं, योजना कम से कम चार-पांच दिन की बनाएं. क्योंकि इससे कम समय लेकर जाने पर कुछ न कुछ छूट जाएगा.
काज़ीरंगा पार्क
अपने इतिहास में लॉर्ड कर्ज़न व उनकी पत्नी मेरी कर्ज़न के संरक्षण प्रयास और वर्तमान में यूनेस्को द्वारा जारी की गई विश्व धरोहरों की सूची के बावजूद काज़ीरंगा की ओर पर्यटकों का रुझान कुछ कम है. तथापि यह पूर्वी हिमालय के निचले इलाक़े में बसी एक ऐसी जगह है, जहां की हवाओं में ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के संगीत के साथ-साथ काज़ी-रंगा की प्रेम कहानी बहती है. स्थानीय लोग कहते हैं कि कई बरस पहले रंगा नाम की किसी लड़की को काज़ी नाम के लड़के से इश्क़ हो गया. रिवायत के मुताबिक़ दोनों के घर वाले इश्क़ के ख़िौलाफ़ खड़े हो गए. नतीजा एक दिन काज़ी और रंगा जंगलों में कहीं गुम हो गए. कभी नहीं मिले. तभी से यह जगह उनके नाम पर काज़ीरंगा कही जाने लगी. अब सच क्या है, यह तो समय जाने, क्योंकि उसकी मुट्ठी में नामकरण से जुड़ी और भी कई कहानियां हैं, पर वाइल्ड लाइफ़ को नज़दीक से देखने का निमंत्रण इस जगह का आकर्षण दोगुना कर देता है. एक सींग वाले गैंडे, जंगली भैंस और बारहसिंगा को देखना हो, तो काज़ीरंगा एक बार तो जाना ही चाहिए. सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन हेलेम तक़रीबन 30 किमी दूर है.
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