कर्नाटक

छात्रा को पंजीकृत कराने की अनुमति देने के लिए ‘‘न्याय प्रणाली को लचीला’’ बनाना है उचित

16 Dec 2023 6:54 AM GMT
छात्रा को पंजीकृत कराने की अनुमति देने के लिए ‘‘न्याय प्रणाली को लचीला’’ बनाना  है उचित
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बेंगलुरु: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि एक छात्रा को ‘इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया’ (आईसीएआई) के सदस्य के रूप में पंजीकृत कराने की अनुमति देने के लिए ‘‘न्याय प्रणाली को लचीला’’ बनाना उचित है। डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार आईसीएआई ने संस्थान के नियमन 65 को लागू किया था और दावा किया था …

बेंगलुरु: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि एक छात्रा को ‘इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया’ (आईसीएआई) के सदस्य के रूप में पंजीकृत कराने की अनुमति देने के लिए ‘‘न्याय प्रणाली को लचीला’’ बनाना उचित है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार आईसीएआई ने संस्थान के नियमन 65 को लागू किया था और दावा किया था कि उसने केवल अंतिम पाठ्यक्रम (फाइनल कोर्स) के लिए उसे अनुमति दी थी, लेकिन छात्रा ने कई फाउंडेशन कोर्स पूरे कर लिए थे, जो फाइनल कोर्स से पहले होते हैं।

अदालत ने हाल में दिए फैसले में इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि इस दलील में कोई दम नहीं है, क्योंकि फाउंडेशन कोर्स, फाइनल कोर्स में शामिल हो जाते हैं और फाइनल कोर्स के लिए अनुमति दी जाती है।

बेंगलुरु की निकिता के. जे. ने संस्थान द्वारा एक मई 2023 को एक आदेश/सूचना जारी होने के बाद अदालत का रुख किया था, जिसमें एक चार्टर्ड अकाउंटेंट के तौर पर प्रैक्टिस करने के लिए सदस्यता देने के उसके अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।

निकिता ने 2017 में बीकॉम डिग्री और सीएमए फाउंडेशन के लिए पंजीकरण कराया था। उसने 2018 में सीएस-एक्जीक्यूटिव पाठ्यक्रम में भी पंजीकरण कराया। उसने कई अन्य पाठ्यक्रमों में भी पंजीकरण कराया था, लेकिन बीकॉम डिग्री को छोड़कर उसने अन्य सारे कोर्स पूरे कर लिये। उसने चार्टर्ड एकाउन्टेंट आर्टिकलशिप प्रशिक्षण के दौरान बीकॉम डिग्री पूरी करने के लिये अनुमति मांगी।

उसे अनुमति दे दी गई और उसने 2020 में बीकॉम की पढ़ाई पूरी कर ली। इसके बाद उसने सीएमएफ फाइनल परीक्षा और सीएस प्रोफेशल कोर्स भी पूरा कर लिया। इसके बाद संस्थान में पंजीकरण के लिए आवेदन किया था।

संस्थान ने उससे यह स्पष्टीकरण मांगा कि उसने इतने सारे पाठ्यक्रम कैसे पूरे किए और उसका आवेदन खारिज कर दिया था। संस्थान ने उस पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था।

न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की पीठ के समक्ष संस्थान ने कहा कि नियमन 65 के तहत आर्टिकलशिप के दौरान किसी छात्र के कई पाठ्यक्रम की पढ़ाई करने पर रोक है।छात्रा ने अदालत में दलील दी थी कि हर बार उसने अनुमति मांगी थी और उसे नए पाठ्यक्रम के लिए अनुमति मिल गयी थी।

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