जनता से रिश्ता वेबडेस्क| सऊदी अरब की प्रमुख महिला अधिकार कार्यकर्ता लुजैन अल-हथलौल ने हिरासत में ही भूख हड़ताल (शुरू कर दी है. लुजैन वर्ष 2018 से सऊदी अरब की हिरासत में है. उनके परिवार का कहना है लुजैन ने यह हड़ताल अपनी हिरासत की शर्तों में बदलाव के लिए की है. लुजैन की बहन लीना ने रॉयटर्स को बताया कि उसकी प्रमुख मांग है कि उसे उसके परिवार से नियमित रूप से मिलने जुलने दिया जाए. इस साल के अगस्त में रियाद की अल-हेयर जेल में अधिकारियों ने चार महीनों तक लुजैन को उनके परिवार से मिलने नहीं दिया तब भी उन्होंने छह दिनों की भूख हड़ताल की थी.
लुजैन को एक दर्जन महिला कार्यकर्ताओं के साथ गिरफ्तार किया
महिला अधिकारों के लिए लड़ रही लुजैन अल-हथलौल को एक दर्जन अन्य महिला कार्यकर्ताओं के साथ गिरफ्तार किया गया था. उनकी बहन ने बताया कि मार्च के बाद से लुजैन का उनके परिवार के साथ संपर्क बहुत सीमित कर दिया गया था. 23 मार्च को एक बार वे अपनी बहन से मिली थी जिसके बाद 19 अप्रैल को एक फोन कॉल और अंतिम मुलाक़ात 31 अगस्त को हुई थी. सोमवार को उनके माता-पिता को उनसे मिलने की अनुमति दी गई थी जिस दौरान उन्होंने अपने माता-पिता को बताया कि वे जेल अधिकारी के दुर्व्यवहार और उनके परिवार की आवाज ना सुनने से वंचित किये जाने से बहुत परेशान हो चुकी हैं. लुजैन ने उन्हें यह भी बताया कि वे कल शाम से भूख हड़ताल शुरू कर देंगी और तब तक नहीं खत्म करेंगी जब तक अधिकारी उन्हें दुबारा से परिजनों को नियमित कॉल करने की अनुमति नहीं देते.
लुजैन को दी गई ये यातनाएं...
महिला अधिकार समूह का कहना है कि लुजैन सहित तीन महिलाएं को महीनों तक एकांत कारावास में रखा गया था और बिजली के झटके, मारपीट और यौन उत्पीड़न किया गया था. सऊदी अधिकारियों ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि लुजैन की गिरफ्तारी सऊदी हितों को नुकसान पहुंचाने के संदेह में की गई थी.
लुजैन की गिरफ्तारी की थी ये वजह...
लुजैन के खिलाफ लगाए गए आरोपों में सऊदी अरब में 15 से 20 विदेशी पत्रकारों के साथ संवाद करना, संयुक्तराष्ट्र में नौकरी के लिए आवेदन करने का प्रयास करना और डिजिटल प्राइवेसी ट्रेनिंग में भाग लेना शामिल है.
सऊदी सरकार के मीडिया कार्यालय ने रॉयटर्स द्वारा मांगी गई टिप्पणी का अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है. इस मामले ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा है. वर्ष 2018 में इस्तांबुल दूतावास में सऊदी एजेंटों द्वारा पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद इस घटना ने यूरोपीय राजधानियों और अमेरिकी कांग्रेस के गुस्से को और भड़का दिया है.