नौहराधार। करीब पांच महीने से बारिश व बर्फबारी न होने से जिला सिरमौर के ऊंचाई वाले स्थान नौहराधार व हरिपुरधार में कारोबार पर असर पड़ा है। यह लगातार दूसरा साल है जब दिसंबर से फरवरी तक चलने वाले विंटर सीजन मंदा है। उल्लेखनीय है कि जिला सिरमौर व शिमला की सबसे ऊंची चोटी चूड़धार की …
नौहराधार। करीब पांच महीने से बारिश व बर्फबारी न होने से जिला सिरमौर के ऊंचाई वाले स्थान नौहराधार व हरिपुरधार में कारोबार पर असर पड़ा है। यह लगातार दूसरा साल है जब दिसंबर से फरवरी तक चलने वाले विंटर सीजन मंदा है। उल्लेखनीय है कि जिला सिरमौर व शिमला की सबसे ऊंची चोटी चूड़धार की वादियां हर वर्ष बर्फ से लकदक होती थी, मगर इस वर्ष बर्फबारी न होने के चलते यहां की ऊंची चोटियां भी बिना बर्फ से खाली व वीरान दिख रही हैं। ऐसे में पर्यटन कारोबारी अब उम्मीद लगा रहे हैं कि अब आगामी दिनों में अगर बारिश और बर्फबारी होती है तो बर्फ देखने की चाहत में पर्यटक एक बार फिर से बाहरी राज्यों से इन पर्यटन स्थलों का रूख करेंगे। इसके बाद ही कारोबार के पटरी पर लौटने की उम्मीद है। कारोबार की दृष्टि से नववर्ष व क्रिसमस काफी मंदा रहा है। इसके चलते कामकाज बुरी तरह प्रभावित होकर रह गया है। पर्यटन से जुड़े कारोबारियों के अलावा गर्म कपड़ों का कारोबार 50 फीसदी तक घट गया है। न्यू ईयर के बाद नौहराधार व हरिपुरधार में सैलानियों की आवाजाही काफी घटी है।
ग्राहकों को ऑफर देने के बावजूद भी ग्राहक स्वेटर, जैकेट जैसे गर्म कपड़े खरीदने नहीं पहुंच रहे हैं। क्षेत्र के कारोबारियों ने बताया कि मानसून सीजन के बाद ठंड बढऩा शुरू हो गई थी। इसलिए विंटर सीजन जल्द शुरू होने की उम्मीद में अक्तूबर में ही गर्म कपड़ों का स्टॉक मंगवा लिया था, लेकिन दिसंबर तक बारिश और बर्फबारी नहीं हुई है। वहीं होटलों और होम स्टे की ऑक्यूपेंसी में भी काफी ज्यादा गिरावट देखने को मिल रही है। उधर, पहले ही स्कूलों में छुट्टियां होने से चहल पहल कम है। अब बर्फबारी न होने से सैलानियों की संख्या भी घट गई है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में बर्फबारी हो ताकि कारोबार फिर पटरी पर लौट सके। बारिश और बर्फबारी न होने की मार जहां पर्यटन कारोबार पर पड़ी तो वहीं आने वाले समय में बागबानों और किसानों को भी इसकी मार झेलनी पड़ सकती है। यदि बारिश और बर्फबारी नहीं होती है तो सेब के चिलिंग आवर्स पूरे नहीं हो पाएंगे, जिससे इस बार भी सेब उत्पादकों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। और यदि मौसम ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में भी सेब व आड़ू के कारोबार पर इसका असर देखने को मिलेगा। बता दें कि प्रदेश की आर्थिकी में सेब पांच हजार करोड़ की भागीदारी देता है। यदि सेब की फसल अच्छी नहीं होती है तो निश्चित तौर पर हिमाचल की आर्थिकी पर इसका बुरा असर पड़ेगा।