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25 फीसदी खेतों तक ही पहुंच पा रही है सिंचाई

22 Jan 2024 3:56 AM GMT
25 फीसदी खेतों तक ही पहुंच पा रही है सिंचाई
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शिमला। प्रदेश में सूखे के संकट से कृषि और बागबानी में बड़े नुकसान की संभावना बनी हुई है। जनवरी माह के अंत तक मौसम में बदलाव नहीं हुआ तो रबी की फसल गेहंू, जौ, दाल, सरसों और अलसी समेत आलू और प्याज पर असर देखने को मिलेगा। लगातार बढ़ रहे सूखे को देखते हुए कृषि विभाग …

शिमला। प्रदेश में सूखे के संकट से कृषि और बागबानी में बड़े नुकसान की संभावना बनी हुई है। जनवरी माह के अंत तक मौसम में बदलाव नहीं हुआ तो रबी की फसल गेहंू, जौ, दाल, सरसों और अलसी समेत आलू और प्याज पर असर देखने को मिलेगा। लगातार बढ़ रहे सूखे को देखते हुए कृषि विभाग ने सभी जिलों से सूखे से संभावित नुकसान की रिपोर्ट तलब कर ली है। इस रिपोर्ट के आधार पर प्रदेश में सूखे के नुकसान का आकलन किया जाएगा। प्रदेश में छह हजार करोड़ रुपए की सेब बागबानी भी सूखे की जद में आ गई है। बर्फबारी न होने की वजह से चिलिंग आवर में अब तक एक महीने से ज्यादा की देरी हो चुकी है। गौरतलब है कि प्रदेश में तीन लाख 76 हजार हेक्टेयर भूमि पर रबी की फसल उगाई जाती है। इसमें से महज 22 से 25 फीसदी क्षेत्र ही सिंचाई से जुड़ा हुआ है। अन्य सभी क्षेत्रों में कृषि पूरी तरह से बारिश के पानी पर निर्भर है। सूखे का सबसे ज्यादा असर गेहूं पर पड़ा है।

बिजाई से अब तक गेहूं के खेतों तक पानी नहीं पहुंच पा रहा है। गौरतलब है कि मौसम विभाग ने इस बार सदी का सबसे बड़ा सूखा होने की बात कही है। बीते 110 सालों में ग्याहरवीं बार ऐसा हुआ है जब बारिश का न्यूनतम स्तर माइनस 99.7 प्रतिशत आंका गया है। प्रदेश में बारिश 0.1 प्रतिशत ही हुई है, जबकि इस अवधि में सामान्य बारिश का आकलन 43.1 प्रतिशत है। इससे पूर्व सबसे कम बारिश वर्ष 1914 में दर्ज हुई थी। बर्फबारी न होने की वजह से सेब बागबान भी चिंतित हैं। सेब को सही ढंग से विकसित होने के बाद चिलिंग आवर पूरे होना आवश्यक है, लेकिन अभी तक बागबानी बहूल क्षेत्रों में चिलिंग आवर शुरू नहीं हो पाए हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा के प्रदेश संयोजक हरीश चौहान ने बताया कि बर्फबारी और बारिश न होने से छह हजार करोड़ रुपए के सेब कारोबार पर असर देखने को मिल सकता है। सेब के लिए चिलिंग आवर की जरूरत 15 दिसंबर के बाद से शुरू हो जाती है और फरवरी तक बागबान चिलिंग आवर पूरे होने की आस में रहते है। करीब सवा महीना सूखे में गुजर चुका है। अब 26 जनवरी के बाद मौसम खराब होने की संभावना है और इस दौरान बर्फबारी होती है, तो यह सेब के लिए राहत का संकेत दे सकती है। सेब की परंपरागत किस्मों के लिए एक हजार से 1600 घंटे तक चिलिंग आवर की जरूरत रहती है, जबकि लोअर हाइट में 300 से 400 घंटे की चिलिंग से विदेशों से आयात की गई सेब की प्रजातियां विकसित हो जाती है।

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