सेंट्रल इंस्टीच्यूट ऑफ फ्रेश वाटर एक्वाकल्चर से आए साइंटिस्ट संग चर्चा

बिलासपुर। हिमाचल प्रदेश में मछली की जैनेटिक इंप्रूवमेंट प्रोग्राम के माध्यम से अब ओडिशा के भुवनेश्वर स्थित सेंट्रल इंस्टीच्यूट ऑफ फ्रेश वाटर एक्वाकल्चर (शिफा) की नई तकनीक अडॉप्ट की जाएगी। मछली प्रजनन से लेकर मछली दोहन तक की व्यवस्था को प्रभावी बनाकर हिमाचल को देश भर में मछली उत्पादन के मॉडल सेंटर के रूप में विकसित …
बिलासपुर। हिमाचल प्रदेश में मछली की जैनेटिक इंप्रूवमेंट प्रोग्राम के माध्यम से अब ओडिशा के भुवनेश्वर स्थित सेंट्रल इंस्टीच्यूट ऑफ फ्रेश वाटर एक्वाकल्चर (शिफा) की नई तकनीक अडॉप्ट की जाएगी। मछली प्रजनन से लेकर मछली दोहन तक की व्यवस्था को प्रभावी बनाकर हिमाचल को देश भर में मछली उत्पादन के मॉडल सेंटर के रूप में विकसित कर अग्रणी राज्य बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। भुवनेश्वर संस्थान के साथ टाइअप करने के बाद विभाग ने अधिकारियों के साथ-साथ मत्स्यपालकों को एक्सपोजर विजिट करवाकर नई तकनीक से मछली उत्पादन की ट्रेनिंग करवाने का भी निर्णय लिया है। मत्स्य निदेशक विवेक चंदेल ने बताया कि मत्स्य निदेशालय बिलासपुर के कान्फ्रेंस हाल में पिछले दिन स्टेट लेवल के सेमिनार का आयोजन किया गया है, जिसमें सेंट्रल इंस्टीच्यूट ऑफ फ्रेश वाटर एक्वाकल्चर भुवनेश्वर से वरिष्ठ साइंटिस्ट डा. एनके वारिक और डा. अविनाश रस्सल विशेष रूप से उपस्थित हुए। ये साइंटिस्ट पांच फरवरी से प्रदेश दौरे पर हैं।
इस बीच इन्होंने सोलन जिला के नालागढ़ स्थित कार्प फार्म और बिलासपुर के गोबिंदसागर झील का विजिट किया है। उन्होंने बताया कि स्टेट लेवल के सेमिनार में अतिरिक्त निदेशक विक्रम महाजन, उपनिदेशक पतलीकूहल कुल्लू भूपेंद्र कुमार, सहायक निदेशक डा. सोमनाथ व चंचल ठाकुर के अलावा सभी जिलों के वरिष्ठ मत्स्य अधिकारी उपस्थित रहे। इसके अलावा मत्स्य अधिकारी ऑनलाइन माध्यम से मीटिंग में जुड़े थे। सेमिनार में प्रदेश के जलाशयों व नदी-नालों और विभागीय फार्मों में नई तकनीक आधारित मत्स्य उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विस्तृत चर्चा की गई। आने वाले समय में प्रदेश की विभागीय हैचरी में चिन्हित रोहू, मृगल, कतला और कॉमन कार्प प्रजाति की मछलियों के उच्च गुणवत्तायुक्त बीज का उत्पादन सुनिश्चित किया जाएगा। इसके लिए भुवनेश्वर संस्थान की ओर से नई ब्रीडिंग टेक्रोलॉजी उपलब्ध करवाई जाएगी।
