
सोलन। प्रदेश के बागबानों को गुठलीदार फलों का विकल्प जल्द उपलब्ध हो सकता है। डा. यशवंत सिंह परमार औद्योगिक एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के वैज्ञानिकों द्वारा प्रदेश में ऑस्ट्रेलियन जुजुबे बेर विकसित किया जाएगा। इसके लिए नौणी विवि ऑस्ट्रेलिया से बेर के पौधे और रूट स्टॉक इंपोर्ट किए गए हैं। वैज्ञानिकों ने शोध कार्य शुरू …
सोलन। प्रदेश के बागबानों को गुठलीदार फलों का विकल्प जल्द उपलब्ध हो सकता है। डा. यशवंत सिंह परमार औद्योगिक एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के वैज्ञानिकों द्वारा प्रदेश में ऑस्ट्रेलियन जुजुबे बेर विकसित किया जाएगा। इसके लिए नौणी विवि ऑस्ट्रेलिया से बेर के पौधे और रूट स्टॉक इंपोर्ट किए गए हैं। वैज्ञानिकों ने शोध कार्य शुरू कर दिया है। बताया जा रहा है कि ऑस्ट्रेलियन जुजुबे बेर बारिश पर निर्भर क्षेत्रों में भी तैयार होगा व बेर प्लम के आकार का होगा और खाने में बहुत मीठा है। इसमें आयरन और मिनरल की भी भरपूर मात्रा होती है। ठंडे क्षेत्रों में तैयार होने से यह देश के अन्य राज्यों के बेर से दो माह पहले तैयार होने की भी संभावना जताई जा रही है, जिसकी बाजार में भी काफी अधिक मांग रहेगी। जानकारी के अनुसार इसमें प्लम के आकार का यह बेर होता है। इसकी शेल्फलाइफ भी गुठलदार फलों से बहुत अधिक है। इसे कम पानी की आवश्यकता होगी।
ऑस्ट्रेलिया में यह फरवरी, मार्च में फल देना शुरू कर देता है, लेकिन अभी हिमाचल में इस पर शोध कार्य जारी है व पौधों को जमीन में लगाने के बाद इसके परिणाम भी जल्द नौणी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के सामने आ जाएंगे। इसका तीन चरणों में कार्य किया जा रहा है, जिसमें पहला चरण गर्म क्षेत्र धोलाकुंआ, दूसरा मध्यम क्षेत्र डा. यशवंत सिंह परमार नौणी विश्वद्यालय और तीसरा ठंडा क्षेत्र मशोबरा में इस पर कार्य चल रहा है। सफलता मिलने पर यह गुठलीदार फलों का एक अच्छा विकल्प होगा, जो कि कम पानी वाले क्षेत्रों में भी आसानी से तैयार हो जाएगा। अधिक जानकारी देते हुए सह-निदेशक क्षेत्रीय बागबानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र धोलाकुंआ डा. विशाल राणा ने बताया कि जब वह एक्सपोजर दौरे पर ऑस्ट्रेलिया गए थे, वहां पर उन्होंने इसका उत्पादन देखा और उसके बाद इसका इंपोर्ट परमेट एनबीपीजीआर (नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनीटिक्स रिसोर्सिस न्यू दिल्ली) से लिया। कुछ पौधे और रूट स्टॉक आयात किए गए और इस पर शोध कार्य किया जा रहा है।
तीन चरणों में बेर पर शोध किया जा रहा है। यदि सफलता मिलती है, तो मध्यवर्ती क्षेत्रों के किसान-बागवानों के लिए एक विकल्प होगा। यह एक मौसमी फल है और इससे न सिर्फ स्वाद के लिए खाया जा सकता है, बल्कि इसके औषधीय गुणों के चलते भी इसका सेवन कर सकते हैं
डा. संजीव चौहान, निदेशक अनुसंधान नौणी विश्वविद्यालय
