आज हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता एके हंगल उर्फ अवतार किशन हंगल की पुण्यतिथि (Ak Hangal Death Anniversary) है. अपनी अधिकांश भूमिकाओं में, वह एक अच्छा बूढ़ा आदमी बनकर स्क्रीन पर आए. वो आदमी जो किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता और हर कोई उस पर भरोसा कर सकता था. वह केवल एक अभिनेता ही नहीं थे, बल्कि उन्हें राजनीति की भी काफी अच्छी समझ थी. शायद यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि एके हंगल फिल्मों में आने से पहले स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई का हिस्सा भी रहे थे.
कहा जाता है कि आजादी की लड़ाई लड़ने के दौरान वह तीन साल तक जेल में भी रहे. बटवारे के बाद पाकिस्तान के सियालकोट में जन्मे एके हंगल मुंबई आ गए थे. मुंबई में पढ़ाई करने के बाद उनकी दिलचस्पी थिएटर में जगी. वह कई सालों तक थिएटर का हिस्सा रहे. 50 साल की उम्र में उन्होंने अपना फिल्मी करियर शुरू किया. एके हंगल ने अपने फिल्मी करियर में कई हिट फिल्मों में यादगार रोल निभाए, जिनमें से एक शोले के रहीम चाचा का किरदार भी है. रहीम चाचा का किरदार भले ही छोटा था, लेकिन उनका एक डायलॉग आज भी लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल कर ही लेते हैं. वो डायलॉग है- इतना सन्नाटा क्यों है भाई…
अपनी पहली फिल्म देखकर क्यों निराश हुए एके हंगल?
एके हंगल के सफल किरदारों के बारे में हर कोई बात करता है, लेकिन उन्होंने शुरुआत कैसे की, इस पर लोगों को कम बात करते हुए देखा है. आज जो एके हंगल से जुड़ा किस्सा हम आपके लिए लाए हैं, उसके बारे में शायद ही आप लोगों ने कहीं पढ़ा या सुना हो. यह किस्सा जुड़ा है एके हंगल की पहली फिल्म 'तीसरी कसम' से. अब आप सोच रहे होंगे कि एके हंगल तो इस फिल्म में थे ही नहीं, तो बस यही बात तो हम आपको आज बताने जा रहे हैं कि एके हंगल इस फिल्म का हिस्सा थे और वह फिल्म में क्यों नहीं दिखे?
यह बात 1960 के दशक के शुरुआती दौर की है. एके हंगल, इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन से जुड़े हुए थे. वह फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें उस वक्त वह सुनहरा मौका नहीं मिल पा रहा था. अन्नू कपूर अपने एक शो में बताते हैं कि एक दिन हंगल साहब मुंबई के वॉर्डन रोड पर स्थित भूलाभाई देसाई इंस्टिट्यूट में एक नाटक की रिहर्सल कर रहे थे. उसी दौरान उनसे मिलने के लिए वहां महान फिल्म निर्देशक बासु भट्टाचार्य पहुंच गए. उन्होंने एके हंगल से मुलाकात की. बासु ने उन्हें बताया कि वह एक फिल्म बना रहे हैं, जिसका नाम है- तीसरी कसम.
इस फिल्म में राज कपूर के एक बड़े भाई का किरदार है, जिसे वह चाहते थे कि एके हंगल ही निभाएं. एके हंगल पहले ही फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने की जद्दोजहद में लगे थे. ऐसे में सामने से फिल्म का ऑफर मिला तो उन्होंने उसके लिए बासु भट्टाचार्य से तुरंत हां कर दी. इस फिल्म के लिए हां करने की सिर्फ यही वजह नहीं थी कि उन्हें किसी फिल्म में काम करना था, बल्कि उन्हें पहली ही फिल्म में राज कपूर जैसे दिग्गज कलाकार के बड़े भाई का रोल करने का मौका मिल रहा था, जिसे वह किसी सूरत में गंवाना नहीं चाहते थे.
टूट गया था एके हंगल का दिल
फिल्म की शूटिंग हुई. उन्होंने अपने हिस्से की शूटिंग भी पूरी कर ली, लेकिन एके हंगल की बदकिस्मती तो देखिए कि अपनी पहली ही फिल्म के रिलीज होने का उन्हें छह साल तक इंतजार करना पड़ा. वह अपने आप को बड़े पर्दे पर देखने के लिए काफी उत्साहित थे. छह साल बाद यानी 1966 में जब तीसरी कसम फिल्म रिलीज हुई तो वह काफी निराश हुए. वह खुद को बड़े पर्दे पर देखने के लिए बहुत ही खुश होकर सिनेमाघर पहुंचे थे, लेकिन पूरी फिल्म खत्म हो गई, पर वह उस फिल्म में खुद को ढूंढ भी न पाए. वो इसलिए, क्योंकि उनके सारे सीन एडिटिंग में काट दिए गए थे. इससे एके हंगल साहब का दिल टूट गया था.
हालांकि, उन्होंने इसकी शिकायत फिल्मकार से नहीं की, अपने दर्द को अपने तक ही सीमित रखा. न ही उन्हें उनके सीन हटाने की वजह किसी ने बताई थी. इस फिल्म के बाद उनके मन में यह खयाल आने लगे थे कि उनका फिल्मी करियर नहीं चल पाएगा. इस फिल्म के बाद उन्होंने और भी फिल्में की, लेकिन उनसे उन्हें कोई पहचान नहीं मिली. फिर उन्हें 1967 में ऑफर हुई फिल्म शागिर्द, इस फिल्म में एके हंगल के काम को काफी सराहा गया. शागिर्द फिल्म से उनके करियर को एक रफ्तार मिली और इसके बाद उन्होंने अपने करियर में एक से एक हिट फिल्मों में बहुत ही महत्वपूर्ण और दमदार किरदार निभाए.