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Mumbai.मुंबई: फिल्म ‘इमरजेंसी’ पर बैन लगाने की मांग की जा रही है। विपक्ष ने इनमें इतिहास के कई पहलुओं को गलत तरीके से दिखाने का आरोप लगाया है। सिख समाज ने आरोप लगाया कि फिल्म सिख विरोधी है। कंगना रनौत और मेकर्स को लोगों ने फिल्म को रिलीज न करने की धमकी तक दे डाली। पहले इस फिल्म को 6 सितंबर को रिलीज किया जाना था हालांकि बाद में मेकर्स ने खुद ही इसकी रिलीज डेट टाल दी। लगातार हो रहे विरोध को देखते हुए फिल्म को CBFC की तरफ से अब तक सर्टिफिकेट नहीं दिया गया है। मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। पंजाब समेत कुछ गैर बीजेपी शासित राज्यों ने पहले ही कहा है कि वह इस फिल्म को रिलीज नहीं होने देंगे। ऐसे में सवाल उठ कहा है कि किसी फिल्म पर बैन कैसे लगाया जाता है। क्या सेंसर बोर्ड किसी भी फिल्म को बैन कर सकता है?
सेंसर बोर्ड क्या है?
सबसे पहले समझते हैं कि आखिर सेंसर बोर्ड क्या होता है। सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) एक वैधानिक संस्था है। सेंसर बोर्ड का हेडक्वार्टर मुंबई में है और इसके 9 क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जोकि मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलूर, तिरुवनंतपुरम, हैदराबाद, नई दिल्ली, कटक और गुवहाटी में मौजूद है। यह सेंसर बोर्ड सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 और सिनेमैटोग्राफ रूल 1983 के तहत काम करता है। जून 1983 तक इसे सेंट्रल फिल्म सेंसर बोर्ड के नाम से जाना जाता था। आम लोग भी इसे सेंसर बोर्ड के नाम से ही जानते हैं। यह सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन काम करता है। इसका काम किसी भी फिल्म को रिलीज के लिए उसके कंटेंट को इजाजत देना होता है। आम भाषा में समझें तो कोई भी फिल्म रिलीज से पहले इस बोर्ड के पास जाती है। वह इसके कंटेंट को रिव्यू करता है। अगर उसमें कोई आपत्तिजनक चीज मिलती है तो उसे हटाने या उसमें बदलाव के लिए मेकर्स को कहा जाता है। फिल्म के कंटेंट के हिसाब से ही उसे सर्टिफिकेट भी दिए जाते हैं। सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है।
सेंसर बोर्ड कितनी कैटेगरी में देता है सर्टिफिकेट
सेंसर बोर्ड किसी भी फिल्म के कंटेंट के हिसाब से उसे सर्टिफिकेट देता है। कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जिन्हें आप परिवार के साथ देख सकते हैं। हालांकि कुछ फिल्मों में हिंसा और व्यस्क सामग्री होने के कारण उन्हें सिर्फ व्यस्कों के लिए ही रिलीज किया जाता है।
सेंसर बोर्ड चार कैटेगरी में सर्टिफिकेट जारी करता है –
1 – (U) ये यूनिवर्सल कैटेगरी होती है। ऐसी फिल्में सभी वर्ग के दर्शकों देख सकते हैं।
2 – (U/A) इसके तहत 12 साल से कम उम्र के बच्चे माता पिता या किसी बड़े की देख रेख में ही फिल्म देख सकते हैं।
3 – (A) ऐसी फिल्में सिर्फ व्यस्कों लोगों के लिए ही रिलीज की जाती हैं।
4 – (S) ये कैटगरी किसी खास वर्ग के लोगों के लिए होती है। खासतौर पर इन्हें डॉक्टर, इंजीनियर या किसान के लिए रिलीज किया जाता है।
सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट मिलने की क्या है प्रक्रिया?
किसी भी फिल्म के निर्माण के बाद उसे सेंसर बोर्ड से पास कराने के लिए एक एप्लीकेशन देनी होती है। इस एप्लीकेशन को बोर्ड के सामने पेश किया जाता है। बोर्ड फिल्म के कंटेंट, उसमें दिखाए जाने वाले सीन, डायलॉग और भाषा को बारीकी से अध्ययन करता है। अगर फिल्म में देश विरोधी कंटेंट, किसी धर्म या खास समुदाय को लेकर कोई आपत्तिजनक बातें हो तो उसे हटाने को कहा जाता है। अगर मेकर्स इन्हें हटाने से इनकार करता है तो बोर्ड सर्टिफिकेट जारी करने से इनकार भी कर सकता है। खास बात यह है कि सेंसर बोर्ड किसी भी फिल्म के सर्टिफिकेशन में ज्यादा से ज्यादा 68 दिनों का वक्त ले सकता है। आवेदन मिलने के बाद उसकी जांच करने में लगभग एक हफ्ते का वक्त लगता है। इसके बाद आवेदन समिति के पास भेजा जाता है। जांच समिति 15 दिनों के अंदर इसे सेंसर बोर्ड अध्यक्ष के पास भेज देती है। अध्यक्ष फिल्म की जांच में अधिकतम 10 दिनों का वक्त ले सकता है। अगर किसी फिल्म में कट की जरूरत है तो मेकर्स को उसकी जानकारी दी जाती है और इन्हें पूरा करने के 36 दिनों के अंदर सर्टिफिकेट जारी किया जाता है।
क्या किसी फिल्म पर बैन लग सकता है?
आपको बता दें कि सेंसर बोर्ड का काम फिल्म को रिलीज के लिए सर्टिफिकेट जारी करने का होता है। उस पर रोक लगाने का काम सेंसर बोर्ड नहीं कर सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी फिल्म सेंसर बोर्ड की अनुमति के बिना रिलीज नहीं हो सकती है। एक बार किसी फिल्म को सर्टिफिकेट मिलने के बाद केंद्र और राज्य सरकार अपने हिसाब से इस पर फैसला ले सकती हैं। सरकारें कानून व्यवस्था का हवाला देकर कई फिल्मों पर रोक लगा चुकी हैं। सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट मिलने के बाद भी केंद्र और राज्य सरकारों के पास किसी भी फिल्म को बैन करने का अधिकार है। हालांकि मामला कोर्ट में जाने के बाद अंतिम फैसला अदालत का माना जाता है। कोर्ट भी फिल्मों पर बैन लगाने के लिए स्वतंत्र है।
अब तक किन फिल्मों पर लग चुका है बैन?
1 जनवरी 2000 से 31 मार्च 2016 तक 793 फिल्मों को सेंटर बोर्ड ने सर्टिफिकेट जारी करने से रोक दिया। कई फिल्मों के कंटेंट को लेकर राज्य और केंद्र सरकारों ने इन पर बैन लगाया था। 1994 में फूलन देवी पर बनी ‘बैंडिट क्वीन’ को बैन किया गया था। इसके बाद 1996 में आई ‘कामासूत्रा’ को सेक्सुअल कंटेंट दिखाने के कारण बैन लगाया गया। 1996 में आई ‘फायर’ फिल्म को भी सर्टिफिकेट नहीं दिया गया था। बाद में कुछ कट के साथ इसे 1998 में दोबारा इजाजत दी गई। ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म पर भी कई राज्यों में बैन लगाया गया था। इसके अलावा ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म पर भी कई राज्यों में बैन लगाया गया था।
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Rajesh
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