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शास्त्रों में श्राद्ध के लिए क्यों शुभ समय माना जाता है दोपहर
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| पूर्वजों को समर्पित पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2021) शुरू हो चुका है. इस महीने में हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं. माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ लोक में जल की कमी हो जाती है. ऐसे में पितृ अपने वंशजों के पास धरती लोक आते हैं ताकि उन्हें अन्न और जल मिल सके. चूंकि आज हम जो भी हैं, अपने पितरों की बदौलत ही हैं, ऐसे में श्राद्ध पक्ष को पूर्वजों द्वारा किए गए उपकार को चुकाने वाला महीना माना जाता है.
पितृ पक्ष के दौरान पितरों को तर्पण के जरिए जल और श्राद्ध के जरिए अन्न अर्पित किया जाता है. श्राद्ध के लिए सुबह से लेकर दोपहर तक का समय सही माना जाता है. दोपहर का वक्त तो सबसे ज्यादा उत्तम है. कभी शाम के समय श्राद्ध नहीं करनी चाहिए. इसके अलावा पितरों को खीर और पूड़ी का भोग लगाने की परंपरा है. जानिए इन परंपराओं के पीछे क्या है मान्यता.
इसलिए श्राद्ध के लिए दोपहर का समय है उत्तम
देवताओं को जब कोई चीज समर्पित की जाती है, तो उसका स्रोत अग्नि को बताया गया है. हम यज्ञ के जरिए देवताओं को चीजें अर्पित करते हैं. उसी तरह सूर्य भी अग्नि का स्रोत है. इसे पितरों को भोजन देने का जरिया माना गया है. मान्यता है कि धरती पर पधारने वाले हमारे पितर सूरज की किरणों के जरिए ही श्राद्ध का भोजन ग्रहण करते हैं. चूंकि सुबह से सूरज चढ़ना शुरू होता है और दोपहर तक पूरी तरह अपने प्रभाव में आ जाता है. इसलिए श्राद्ध का सही समय सुबह से लेकर दोपहर तक का माना गया है. चूंकि दोपहर में सूरज अपने पूरे जोर पर होता है, इसलिए श्राद्ध का सबसे श्रेष्ठ समय दोपहर का है.
इसलिए लगाया जाता है खीर-पूड़ी का भोग
शास्त्रों में पायस को प्रथम भोग बताया गया है और खीर पायस अन्न होती है. वहीं चावल एक ऐसा अनाज है, जो पुराना होने पर भी खराब नहीं होता. बल्कि पुराना होने के साथ और अच्छा हो जाता है. इसलिए पितरों को प्रथम भोग के तौर पर पायस अन्न का भोग लगाया जाता है. इसके अलावा एक मान्यता ये भी है कि लंबे समय के बाद पितर अपने वंशजों से मिलने उनके पास आते हैं. आमतौर पर भारतीय सभ्यता में जब कोई तीज-त्योहार मनाया जाता है तो पकवानों में खीर और पूड़ी जरूर होती है. ऐसे में पितरों के आगमन पर उनके आतिथ्य सत्कार के लिए खीर और पूड़ी बनाई जाती है.