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एट्रेनबरो ने 'ब्राइटन रॉक' (1948), 'आई एम ऑल राइट जैक' (1959), 'द ग्रेट एस्केप' (1963), 'द सैंड पेबल्स' (1966), 'जुरासिक पार्क' (1993) जैसी फिल्मों में अभिनय किया। ) के लिए जाना जाता है। लेकिन, अगर बतौर निर्देशक उनकी सबसे बेहतरीन फिल्म की बात की जाए तो नाम 'गांधी' होगा। साल 1982 में रिलीज हुई इस फिल्म को एटनबरो ने इतनी शिद्दत से बनाया कि उन्होंने इसमें अपनी जिंदगी के करीब दो दशक लगा दिए. इस फिल्म को बनाने, महात्मा गांधी के जीवन और भारत को बेहतर ढंग से समझने के लिए उन्होंने कई बार भारत की यात्रा की। फिल्म के निर्माण के दौरान उन्होंने पैसों की कोई कमी नहीं आने दी और अपना घर भी बेच दिया। इस कड़ी मेहनत के बाद जो फिल्म बनकर तैयार हुई उसने इतिहास रच दिया। आख़िर एटनबरो को यह फ़िल्म बनाने की प्रेरणा कहां से मिली?
रिचर्ड एटनबरो का जन्म 29 अगस्त 1923 को इंग्लैंड में हुआ था। उन्होंने एक्टिंग में अपना करियर बनाया और कई अंग्रेजी फिल्मों में एक्टिंग का जादू बिखेरा। उन्होंने फिल्म निर्माण की दुनिया में भी अपना हाथ आजमाया। वह एक अभिनेता और कुछ हद तक निर्माता के रूप में शानदार काम कर रहे थे जब एक दिन अचानक मोतीलाल कोठारी ने उन्हें लुई फिशर द्वारा लिखित गांधी की जीवनी दी। इसे पढ़ने के बाद एटनबरो का जीवन पूरी तरह से बदल गया। ये बात खुद एटनबरो ने एक बातचीत के दौरान कही। उन्होंने कहा था, 'इस किताब ने मेरी जिंदगी बदल दी। उसके बाद मैंने अभिनय छोड़ने से लेकर फिल्मों का निर्देशन करने तक जो कुछ भी किया, वह इसी किताब के प्रभाव के कारण था। इसके बाद उन्होंने महात्मा गांधी पर फिल्म बनाने का फैसला किया।
एटनबरो ने यह सुनिश्चित किया कि फिल्म के किसी भी पहलू में कमी न रहे। एक अभिनेता-निर्देशक के तौर पर वह वही करना पसंद करते थे जो वह सोचते थे। फिल्म गांधी बनाते समय उन्होंने कहा था, 'मैं गांधी पर फिल्म नहीं बना रहा हूं, बल्कि गांधी को फिल्म में कैद करने की कोशिश कर रहा हूं।' यही वजह थी कि उन्होंने इसके लिए काफी रिसर्च और यात्राएं कीं। बता दें कि फिल्म 'गांधी' बनाने के लिए एटनबरो ने करीब 40 बार भारत की यात्रा की थी। इस दौरान वे कई बार जवाहरलाल नेहरू से मिले, इंदिरा गांधी से मिले। वह भारत आए और हर उस जगह गए जहां वे गांधीजी को समझ सकते थे। हर उस व्यक्ति से मुलाकात हुई जो गांधी जी के बारे में बेहतर जानकारी दे सकता था।
इस फिल्म को बनाते समय वह गांधी जी से पूरी तरह प्रभावित हो गये थे। इस फिल्म को वे जिस आलीशान अंदाज में बनाना चाहते थे, उसके लिए काफी पैसे की जरूरत थी और एटनबरो ने इस फिल्म को बनाने में कभी भी पैसे की कमी आड़े नहीं आने दी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने इसके लिए अपना लंदन वाला घर गिरवी रख दिया था और अपना आर्ट कलेक्शन बेच दिया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनके सामने ऐसी स्थिति भी आ गई थी कि गैस का बिल चुकाने के लिए भी पैसे नहीं बचे थे। हालांकि, करीब दो दशक की कड़ी मेहनत के बाद जब एटनबरो की फिल्म 'गांधी' आई तो उसने इतिहास रच दिया। इस फिल्म ने एक नहीं, दो नहीं बल्कि आठ ऑस्कर जीते। इतना ही नहीं, एक साल बाद यानी 1983 में एटनबरो को भारत सरकार द्वारा तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्म-भूषण' से भी सम्मानित किया गया।
बता दें कि फिल्म 'गांधी' में एक्टर बेन किंग्सले ने गांधीजी का किरदार निभाया था। इस फिल्म से जुड़ा एक किस्सा है। पुणे के आगा खान पैलेस में शूटिंग के दौरान बेन किंग्सले का सीढ़ियाँ चढ़ना एटनबरो को खास पसंद नहीं आया। वह गांधी जी के कदम को बेहद उत्सुकता से देखना चाहते थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसके लिए एटनबरो ने बेन किंग्सले को करीब 50 बार सीढ़ियां चढ़वाई होंगी। इसके बाद वह अपनी चाल से संतुष्ट हो गया। इतना ही नहीं, कहा जाता है कि उन्होंने गांधी का किरदार निभाने के लिए शूटिंग के दौरान बेन किंग्सले को बापू की जीवनी अपनाने की सलाह दी थी। इसके लिए होटल का वह कमरा खाली करा लिया गया, जहां उन्हें ठहराया गया था। बेन कमरे में फर्श पर सोता था। गांधीजी की तरह जागना। उपवास करते थे इन सबके बाद जब उनका मेकअप होता था तो बेन किंग्सले पूरी तरह से गांधी जी के रूप में सामने आते थे। इसके पीछे एटनबरो की कड़ी मेहनत और योजना थी। यही कारण था कि वे भारत के महान व्यक्तित्व पर इतनी अद्भुत फिल्म बना पाये, जो एक दस्तावेज है।
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Harrison
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