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तभी आप आदित्य रॉय कपूर के इस ऐक्शन अवतार पर दांव खेल सकते हैं।
अगर फिल्म में जोरदार ऐक्शन हो, भरपूर इमोशन हो, देशभक्ति का जज्बा और कहानी में ट्विस्ट पर ट्विस्ट बोनस में हो, तो आप भी सोचेंगे कि बस, एक हिट फिल्म के लिए और क्या चाहिए। जैसा कि निर्माता अहमद खान ने सोचा होगा, फिल्म 'राष्ट्र कवच ओम' को हरी झंडी दिखाते हुए। आदित्य रॉय कपूर को पहली बार धांसू ऐक्शन अवतार में पेश करती इस फिल्म में देशभक्ति पूरे उफान पर है। पिता और बेटे की उतार चढ़ाव भरी इमोशनल दास्तान भी है। फिर, असली विलेन कौन है, वाला ट्विस्ट भी खूब है, लेकिन ये सबकुछ कहानी में ऐसे जहां-तहां बिखरा हुआ है कि किसी भी पहलू से जुड़ाव महसूस नहीं होता। कहानी की कसावट इतनी कमजोर और स्क्रीनप्ले इतना मेलोड्रमैटिक है कि सारी चीजें जबरदस्ती थोपी हुई लगती हैं।
'राष्ट्र कवच ओम' की कहानी
जैसे, पहले ही सीन में रॉ के दो टॉप अधिकारी जय राठौर (Ashutosh Rana) और मूर्ति (Prakash Rana) अपनी बातचीत से ये ठप्पा लगाते हैं कि ओम रॉ का सबसे काबिल और जांबाज कमांडो है। तभी स्लो मोशन में उड़ते हुए हमारे हीरो ओम (Aditya Roy Kapur) की एंट्री होती है और वो दुश्मनों को चारों खाने चित करने लगता है पर अगले ही पल दो लोगों को देखकर जहां का तहां ठहर जाता है और गोली उसके सिर के पार हो जाती है। अगले सीन में वह बिस्तर पर बेहोश पड़ा है। तभी उसे अपने जलते हुए घर और पिता की कुछ झलकियां दिखती हैं और वो ड्रिप-व्रिप निकालकर खड़ा हो जाता है। उसकी याद्दाश्त जा चुकी है। ठीक उसी वक्त वहां हमला होता है और दो मिनट पहले बेसुध पड़ा ओम कुछ हमलावरों को खिलौने की तरह उठाकर इधर-उधर फेंक देता है। कहने का मतलब है कि कभी भी कुछ भी हो रहा है।
खैर, संक्षिप्त में कहानी ये है कि ओम के पिता वैज्ञानिक देव (Jackie Shroff) ने न्यूक्लियर बम को फटने से पहले ही डिफ्यूज करने की तकनीक कवच ईजाद की होती है। देव पर आरोप है कि वह देश से गद्दारी करते हुए वो तकनीक दूसरों को बेचने वाला है। अब ओम कवच और अपने पिता की सच्चाई दोनों देश तक लाने के मिशन पर है। लेकिन ये कहानी इतनी हल्की और बेजान है कि फिल्म में आदित्य के धुआंधार ऐक्शन के बावजूद जान नहीं फूंक पाती। रक्त से बड़ा राष्ट्र होता है जैसे डायलॉग और फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी पुराने जमाने का लगता है।
हालांकि, आदित्य ने अपने ऐक्शन अवतार के लिए काफी मेहनत की है। उनकी मेहनत दिखती है। कई कोरियोग्राफ्ड ऐक्शन सीन पर्दे पर अच्छे भी लगते हैं, लेकिन ऐसे सीन आपने सैकड़ों फिल्मों में पहले देखे होंगे। Sanjana Sanghi को सिवाय एक ऐक्शन सीक्वेंस के कुछ खास करने को नहीं मिला है, क्योंकि उनके किरदार को ठीक से गढ़ा ही नहीं गया है। ओम के चाचा और रॉ अधिकारी के रूप में आशुतोष राणा सबसे ईमानदार कलाकार लगते हैं। छोटी भूमिका में भी जैकी श्रॉफ का टशन बरकरार रहता है। प्रकाश राज खुद को दोहराते हुए नजर आए हैं। आखिर के ट्विस्ट भी बचकाने लगते हैं, तो कुल मिलाकर अगर आपके पास बर्बाद करने के लिए वक्त और पैसे हैं, तभी आप आदित्य रॉय कपूर के इस ऐक्शन अवतार पर दांव खेल सकते हैं।
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