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मुंबई : मूवी रिव्यू
नाम:
पंचायत सीजन 3
रेटिंग :
कलाकार :
नीना गुप्ता, रघुबीर यादव, जितेंद्र कुमार, फैसल मलिक, चंदन रॉय, सान्विका, पंकज झा, दुर्गेश कुमार, सुनीता राजवर
निर्देशक :
दीपक कुमार मिश्रा
निर्माता :
अरुणाभ कुमार
लेखक :
चंदन कुमार
रिलीज डेट :
May 28, 2024
प्लेटफॉर्म :
प्राइम वीडियो
भाषा :
हिंदी
बजट :
NA
नई दिल्ली। सादगी में लिपटी कहानी, मगर चटपटे किरदारों के साथ फुलेरा गांव प्राइम वीडियो पर लौट आया है। देश में लोक सभा चुनाव का माहौल है तो फुलेरा में भी पंचायती चुनाव की दस्तक हो गई है। चुनाव तो चुनाव है, देश का हो या ग्राम पंचायत का, सभी जीतने के लिए लड़ते हैं और उस रास्ते पर चलते हैं, जो जीत की ओर ले जाता है।
सियासी बिसात के एक छोर पर मौजूदा पंचायत पदाधिकारी हैं तो दूसरे छोर पर प्रधान बनने के तलबगार और उन्हें समर्थन दे रहा स्थानीय विधायक है। बीच में फंसे हैं पंचायत सचिव जी, जो IIM में एडमिशन लेकर फुलेरा से फुर्र हो जाना चाहते हैं, मगर सवाल है, क्या फुलेरा उन्हें छोड़ेगा?
TVF की सीरीज पंचायत का तीसरा सीजन मुख्य रूप से प्रधानी चुनाव को लेकर शह-मात के खेल पर आधारित है, जो अंतिम एपिसोड में चौंकाने वाले घटनाक्रम के जरिए किरदारों के अलग रंग पेश करता है और चौथे सीजन की पुष्टि भी।
क्या है पंचायत के तीसरे सीजन की कहानी?
पंचायत की कथाभूमि है बलिया जिले के फकौली विकास खंड का गांव फुलेरा है। बाहुबली विधायक चंद्र किशोर सिंह के जोर लगाने के बाद सचिव अभिषेक त्रिपाठी का ट्रांसफर हो गया है, मगर प्रधान और अन्य साथी नये सचिव को ज्वाइन नहीं करने देते, ताकि अभिषेक की वापसी फुलेरा में हो सके। इस बीच हत्या के पुराने केस में विधायक को जेल हो जाती है और विधायकी चली जाती है।
रास्ता नहीं हो तो बनाया जाता है। कभी सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाकर तो कभी किसी विवाद के जरिए।फुलेरा में फिलहाल सियासत जोरों पर है। चुनावी मौसम के फैसले अक्सर विवादों में घिर जाते हैं। मौका ढूंढ रहे विरोधी इन विवादों को हवा देते हैं। विवादों ने फुलेरा को पूरब और पश्चिम में बांट दिया है।
विधायक के जेल जाते ही अभिषेक का तबादला रद हो जाता है और वो गांव पहुंचता है। मगर, एमबीए एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी के लिए किताबों के साथ। गांव में प्रधानमंत्री गरीब आवास योजना के तहत लाभार्थियों की लिस्ट जारी होती है, जो विवाद में फंस जाती है।
अपनी पत्नी को प्रधान बनाने का सपना देख रहा भूषण शर्मा इस मौके का फायदा उठाता है। जमानत पर छूटकर आने के बाद वो विधायक के पास शांति समझौते का प्रस्ताव लेकर जाता है। भूषण की राजनीति काफी हद तक सफल हो जाती है, मगर फिर कुछ ऐसा होता है कि उसे मुंह की खानी पड़ती है।
कैसा है तीसरे सीजन का स्क्रीनप्ले?
तीसरे सीजन की कहानी को भी तीस से चालीस मिनट की अवधि के आठ एपिसोड्स में फैलाया गया है। कुछ घटनाक्रमों को छोड़ दें तो शो के लेखन में पहले जैसा ह्यूमर अंडरकरेंट है, जो हालात से पैदा होता है। किरदारों की प्रतिक्रियाओं से भी हास्य आता है।
शुरुआत नये सचिव के आने से होती है। जिस तरह ग्राम प्रधान के पति बृज भूषण दुबे और सहायक विकास उसकी ज्वाइनिंग रोकते हैं, वो दृश्य मजेदार हैं। प्रधानमंत्री गरीब आवास योजना के तहत मकान के लिए वृद्ध अम्माजी की ललक और पोते से अलग होकर रहने का स्वांग हंसाता है तो इमोशनल भी करता है। मकानों की बंदरबांट को भूषण शर्मा जिस तरह से मुद्दा बनाता है, वो दिलचस्प है।
हालांकि, कहानी में कॉन्फ्लिक्ट डेवलप करने के लिए जिन घटनाक्रमों का इस्तेमाल किया गया है, वो थोड़ा हल्के लगते हैं। बाहुबली विधायक का कुत्ते को जान से मारने और खा जाने के आरोप में जेल जाने के बाद विधायकी से हाथ धोना या शांति समझौते के दौरान विधायक के हाथों कबूतर का मारा जाना।
विधायक को नीचा दिखाने के लिए फुलेरा गांव के लोगों का उसका घोड़ा खरीदना। इन प्रसंगों में ह्यूमर तो है, मगर जिस तरह ये सारे प्रसंग जुड़कर शॉकिंग क्लाइमैक्स की ओर ले जाते हैं, उससे फुलेरा में मिर्जापुर की झलक महसूस होने लगती है। बाहुबली विधायक से शह-मात का खेल अंतिम एपिसोड में हिंसक हो जाता है।
समय के साथ बदल रहे किरदारों के तेवर
पिछले दोनों सीजनों की रवानगी इस बार भी लेखन में नजर आती है। इस सीजन की सबसे बड़ी खूबसूरती कैरेक्टर ग्राफ भी है। किरदारों की कसिस्टेंसी और ग्रोथ प्रभावित करती है। पहले सीजन से शो देख रहा दर्शक सभी प्रमुख किरदारों के व्यक्तित्व में साफ परिवर्तन महसूस कर सकता है।
ग्राम प्रधान मंजू देवी अब महज स्टाम्प नहीं रहीं, वो निर्णायक भूमिका में हैं और अपने फैसले मनवाने के लिए पति पर दबाव भी बना पाती हैं। सचिव अभिषेक त्रिपाठी को फुलेरा अब काटता नहीं, बल्कि अपना लगने लगा है। फुलेरा और प्रधान-मंडली के लिए वो कुछ भी करने के लिए तैयार है।
बेटे के शहीद होने के बाद अकेलेपन ने प्रह्लाद पांडेय को शराब में डुबो दिया है। वो चुनाव लड़ने से भी इनकार कर देता है, मगर जब पता चलता है कि सहायक विकास पिता बनने वाला है तो उसे जीने का एक मकसद मिल जाता है। घोड़े वाले ट्रैक के लिए फुलेरा के दामाद गणेश यानी आसिफ खान की वापसी हुई है। गणेश का किरदार भी पहले के मुकाबले परिपक्व हुआ है।
भूषण शर्मा और बिनोद की भूमिका इस बार बढ़ी है। किरदारों की वही कसिस्टेंसी अभिनय में भी नजर आती है। इन सभी प्रमुख किरदारों के बीच बॉन्डिंग और एक-दूसरे चेहरे पर मुस्कान ला देती है। सचिव जी और रिंकी के बीच सकुचाते हुए पनपता प्यार गुदगुदाता है। शादी के दबाव के बीच रिंकी का सचिव जी से प्रभावित होकर एमबीए की तैयारी में जुटना उन्हें करीब लाता है।
गांव की प्रधान मंजू देवी के किरदार में नीना गुप्ता, प्रधानपति बृज भूषण दुबे के रोल में रघुबीर यादव, पंचायत सचिव अभिषेक त्रिपाठी बने जितेंद्र कुमार, उप प्रधान प्रह्लाद पांडेय के रोल में फैसल मलिक, सहायक विकास के किरदार में चंदन रॉय, भूषण के रोल में दुर्गेश कुमार, सभी कलाकार
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Apurva Srivastav
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