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Irrfan Khan की ये फिल्में,पीकू एक पिता और बेटी के रिश्ते की मार्मिक कहानी
Shiddhant Shriwas
28 April 2024 5:58 PM GMT
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इरफान खान अब हमारे बीच नहीं हैं और इस बात पर यकीन करना अभी भी मुश्किल लगता है। 53 साल की उम्र में वह हम सबको छोड़कर चले गए। लेकिन वह हमारे लिए अपनी फिल्मों से भरा पिटारा छोड़ गए हैं, ताकि हम उन्हें इन फिल्मों के जरिए याद कर सकें। हम कह सकते हैं कि हम उस युग में पैदा हुए थे जिस युग में इरफ़ान पैदा हुए थे। वही इरफ़ान, जिन्होंने अपने अभिनय की सादगी, अपनी सटीक एक्टिंग और किरदार में ढल जाने की क्षमता से लोगों का दिल चुरा लिया। वही इरफ़ान, जो क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत ने उन्हें बेमिसाल एक्टर बना दिया. एक ऐसा अभिनेता जिसका कोई सानी नहीं.
पीकू
पीकू एक पिता और बेटी के रिश्ते की मार्मिक कहानी है। इस फिल्म में इरफान ने एक ट्रैवल एजेंसी के मालिक की भूमिका निभाई है, जो पीकू यानी दीपिका पादुकोण का अच्छा दोस्त है। पीकू के पिता यानी भास्कर बनर्जी (अमिताभ बच्चन) कब्ज से पीड़ित हैं और यही फिल्म का केंद्र बिंदु है। एक लाइन में कहें तो यह एक ऐसी फिल्म है जो पारिवारिक रिश्तों और रोजमर्रा की समस्याओं को दिखाती है. यह रिश्तों की अहमियत भी बताता है. शूजीत सरकार ने इसका निर्देशन किया है.
मदारी
मदारी एक आम आदमी की कहानी है, जिसके बेटे की मौत पुल गिरने से हो जाती है। पिता इसके लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराता है और बदला लेने के लिए देश के गृह मंत्री के 'राजकुमार' का अपहरण कर लेता है। दरअसल, ये पिता उन लोगों को सजा देना चाहता है जिनकी वजह से पुल टूटा।
पान सिंह तोमर
इरफ़ान की फ़िल्मों में मुझे निजी तौर पर 'पान सिंह तोमर' सबसे ज़्यादा पसंद है. इस फिल्म के लिए इरफान को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। फिल्म की कहानी पान सिंह तोमर नाम के एक किरदार की कहानी है, जो सेना में भर्ती होता है और भारतीय राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक जीतता है। लेकिन पुन: शस्त्रीकरण के बाद जब प्रशासन द्वारा उसके साथ उचित व्यवहार नहीं किया जाता तो वह चंबल का मशहूर डाकू बन जाता है। एक तरह से ये फिल्म बताती है कि कभी-कभी हालात इंसान को डाकू बनने पर मजबूर कर देते हैं. इस फिल्म का निर्देशन तिग्मांशु धूलिया ने किया है।
लाइफ ऑफ़ पाई
सफल हॉलीवुड फिल्म में इरफान को एक लेखक को अपनी जिंदगी की कहानी सुनाते देखा जा सकता है। कैसा था इरफ़ान का बचपन, कैसे बड़े हुए? इरफान सबके बारे में बात करते हैं. इसी क्रम में उन्होंने अपने जीवन की एक घटना का जिक्र किया है जिसमें उन्होंने एक शेर के साथ नाव पर काफी समय बिताया था. फिल्म में इरफान बताते हैं कि भूखे रहकर भूखे शेर के सामने बैठना आसान नहीं है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे आप मौत के बिल्कुल करीब बैठे हों। इस फिल्म का निर्देशन ताइवानी डायरेक्टर एंग ली ने किया है, जिसे काफी सराहना मिली।
हिंदी मीडियम
इस फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे भारत में गलत अंग्रेजी बोलने पर किसी व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता पर सवाल उठाए जाते हैं। इतना ही नहीं, अगर हिंदी माध्यम से पढ़े-लिखे माता-पिता अपने बच्चे का दाखिला अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में कराने की कोशिश करते हैं तो उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? इस फिल्म के जरिए मीता (सबा कमर) और उनके पति राज बत्रा यानी इरफान खान लोगों का दिल जीतने में कामयाब रहे. यह भी दिखाने में कामयाब रहे कि कोई भी भाषा 'उत्तम' या 'दोयम दर्जे' नहीं है। भाषा तो आख़िर भाषा ही होती है, उसके आधार पर कोई विशेष राय बना लेना ठीक नहीं है।
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