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हिंदी सिनेमा में हर साल कई फिल्में बनती हैं, जिनमें से कुछ दर्शकों को बेहद पसंद आती हैं तो
हिंदी सिनेमा में हर साल कई फिल्में बनती हैं, जिनमें से कुछ दर्शकों को बेहद पसंद आती हैं तो कुछ अब आती हैं और कब जाती हैं किसी को पता नहीं चलता. वहीं, हर फिल्म के बनने के पीछे एक किस्सा, एक कहानी जरूर होती है. ऐसी ही एक फिल्म है 'रोटी' जो साल 1942 में रिलीज हुई और बड़ी हिट साबित हुई.
बात सन, 1940 की है जब मशहूर सिंगर अनिल बिस्वास के ख़ास दोस्त और निर्माता-निर्देशक महबूब खान की तबियत खराब थी और वो अस्पताल में भर्ती थी. उन्हें पेट की कोई बीमारी थी, जिसकी वजह से डॉक्टर्स ने उन्हें रोटी खाने से मना कर दिया था. सिर्फ दही और खाखरा खाने की ही इजाज़त थी. अनिल लगभग हर दिन महबूब खान से मिलने अस्पताल जाया करते थे. एक-दो दिन तो महबूब खान ने दही और खाखरा खाकर गुज़ारा कर लिया लेकिन उसके बाद वो रोटी के लिए तड़पने लगे.
अनिल बिस्वास, हर रोज महबूब को रोटी के लिए तड़पते हुए देखते. कई बार उनके मन में आया कि वो चुपके से उन्हें दाल और रोटी खिला दें, लेकिन महबूब खान की तबियत की वजह से अनिल ऐसा कर नहीं पाए. एक दिन अनिल के मन में ख्याल आया कि उन लोगों का क्या होता होगा जिनके पास खाने के लिए रोटी नहीं होती, इसी बात को ध्यान में रखकर उन्होंने कहानी लिख दी.
जब महबूब खान ठीक होकर घर वापस आ गए तो एक दिन अनिल ने बातों-बातों में ये कहानी कह डाली जो, महबूब को काफी पसंद आई और फिल्म बनाने की ठान ली. चंद्रमोहन, सितारा देवी, शेख मुख्तार को लेकर उन्होंने ये फिल्म बनाई. ये फिल्म आज भी हिंदी सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों में शामिल है जिसका नाम है 'रोटी'.
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