जनता से रिश्ता वेबडेस्क | 22 साल पहले रिलीज हुई फिल्म ‘अशोका’ अगर बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप नहीं हुई होती तो देश के बेहतरीन छायाकारों में शुमार संतोष सिवन अब तक हिंदी सिनेमा के भी दिग्गज फिल्म निर्देशक होते। उनकी निर्देशित पहली ही फिल्म ‘स्टोरी ऑफ टिबलू’ को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। तब से वह सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म, सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाली कई फिल्में निर्देशित कर चुके हैं। सर्वश्रेष्ठ छायांकन के भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार उन्हें मिले। हिंदीभाषी दर्शक उन्हें ‘दिल से’ और ‘रावण’ जैसी फिल्मों के छायांकन के लिए जानते हैं और परदे पर उनके बिंबों के मुरीद रहे हैं। संतोष सिवन मुंबई के मुरीद हैं और इस शहर की अलग अलग गलियों में घूमती एक कहानी बतौर निर्देशक लेकर आए हैं, ‘मुंबईकर’। सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली विजय सेतुपति की ये पहली हिंदी फिल्म होनी थी, लेकिन संयोग इसे जियो सिनेमा पर लेकर आया है।
कमल हासन की चर्चित फिल्म ‘विक्रम’ और उससे पहले अजय देवगन की फिल्म ‘भोला’ जिस कहानी पर बनी, वह मूल फिल्म ‘कैथी’ निर्देशित करने वाले लोकेश कनगराज के करियर की बतौर फिल्म निर्देशक पहली फिल्म थी, ‘मानगरम’। छोटे बजट की इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर छह साल पहले तहलका मचा दिया था। फिल्म बाद में तेलुगु में ‘नगरम’ और मलयालम में ‘मेट्रो सिटी’ के नाम से डब होकर रिलीज हुई। गोल्डमाइन फिल्म्स के यूट्यूब चैनल पर इसका हिंदी डब संस्करण ‘दादागिरी 2’ नाम से उपलब्ध है। संतोष सिवन ने इसी तमिल फिल्म ‘मानगरम’ का हिंदी संस्करण बनाया है, ‘मुंबईकर’। हाइपरलिंक सिनेमा शैली में बनी फिल्म ‘मुंबईकर’ इस हफ्ते रिलीज हुई हिंदी फिल्मों और वेब सीरीज में सबसे अच्छी कही जा सकती है। जियो सिनेमा इसे अपने ओटीटी पर फ्री में दिखा रहा है तो इस सप्ताहांत के मनोरंजन के लिए ये मुफीद है। कहीं कोई गाली गलौज और देह प्रदर्शन या दैहिक संबंधों की नुमाइश नहीं है। बढ़िया कॉमिक थ्रिलर फिल्म है, ‘मुंबईकर’।
फिल्म ‘मुंबईकर’ की कहानी जैसा कि मैंने कहा हाइपरलिंक शैली की है। इस शैली में कई कहानियां एक साथ अलग अलग स्थानों पर घटती हैं। कोई एक किरदार इन कहानियों को एक सूत्र में बांधता रहता है और फिर ये सारी कहानियां एक दिन किसी चौराहे पर आकर एक हो जाती हैं। यहां कहानी शुरू होती है यूपी बोर्ड से पढ़ाई करके मुंबई में नौकरी तलाशने आए एक युवा से। नौकरी लगने के बाद जहां वह पार्टी कर रहा है, वहां एक और युवक बैठा है जिसने अपनी प्रेमिका की तरफ नजर न डालने की धमकी देने वाले गुंडों की ठुकाई कर रखी हैं। वे गुंडे अपने साथियों के साथ उसे मारने आते हैं। और, भ्रम का शिकार हो जाता है यूपी का ये भैया। इन किरदारों के बीच फिर आता है कहानी का केंद्रीय किरदार जो खुद को ‘गैंग्स्टर इन मेकिंग’ बताता है। गुंडों के गिरोह में शामिल होने के लिए ‘बायोडाटा’ लेकर आता है। और गिरोह छोड़कर नहीं भागता है बल्कि ‘रिजाइन’ करके जाता है।
ये केंद्रीय किरदार फिल्म ‘मुंबईकर’ में है विजय सेतुपति का। फिल्म शुरू होने के बाद थोड़ी देर से उनकी एंट्री है, लेकिन फिल्म असल रफ्तार में उनके परदे पर प्रकट होने के बाद ही आती है। अमिताभ बच्चन जैसी हेयर स्टाइल और रजनीकांत जैसी अदाएं लिए शीशे के सामने संवाद बोलते विजय सेतुपति का पहला दृश्य ही फिल्म का मूड बता देता है। इसके बाद इस गंवई भोले भाले इंसान के ‘मुंबई का किंग कौन?’ जैसा संवाद क्लाइमेक्स में बोलने की संभावनाओं पर फिल्म की कहानी आगे चलती रहती है। विजय सेतुपति की अदाकारी का अंदाज निराला है। दक्षिण के सिनेमा में उनकी तूती बोलती हैं और हिंदी सिनेमा में उनको लाने की कोशिशें आमिर खान तक की नाकाम रह चुकी हैं। अभी वह शाहरुख खान की ‘जवान’ में दिखने वाले हैं। विजय सेतुपति ने पूरी फिल्म को आखिर तक देखने की उत्सुकता बनाए रखी है और अंतिम दृश्य में उनका किरदार सारी दौलत बच्चों पर लुटाकर जब एक प्लास्टिक का तिरंगा हाथ में लेकर पैदल ही अंडमान की तरफ चल देता है तो अकेले में भी फिल्म देखते हुए चेहरे पर एक मुस्कान तो तैर ही जाती है।
संतोष सिवन तकनीशियन बेहतरीन हैं, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन, ये फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज होती तो अकेले विजय सेतुपति के सहारे इसका दर्शकों को खींच पाना मुश्किल प्रतीत होता है। इस लिहाज से इसे ओटीटी पर रिलीज करने का फैसला बिल्कुल सही है। साल भर पहले ही सेंसर सर्टिफिकेट पा चुकी फिल्म ‘मुंबईकर’ को जियो सिनेमा ने बिना किसी प्रचार प्रसार के रिलीज कर दिया है। लेकिन, ये फिल्म कुछ कुछ वैसी ही फिल्म जियो सिनेमा के लिए हो सकती है, जैसी ‘सिर्फ एक ही बंदा काफी है’ जी5 के लिए साबित हुई। फिल्म के लिए संतोष ने वातावरण अच्छा सजाया है। कहानी का भौगोलिक परिदृश्य ऐसा है कि मुंबई का भूगोल न जानने वालों को भी इससे ज्यादा तकलीफ होगी नहीं हालांकि यदि इसमें मुंबई के लोकप्रिय ठिकाने मसलन इंडिया गेट, बैंडस्टैंड, फिल्मसिटी और जुहू बीच खलनायक पीकेपी को घुमाने के लिए इस्तेमाल किए गए होते तो दर्शकों से उनका रिश्ता बेहतर बनता। संतोष सिवन से एक गड़बड़ी और हुई है और वह है नए कलाकार हृदु हारून के किरदार को यूपी बोर्ड का पासआउट बताना, जबकि हिंदी उसकी बताती है कि वह कम से कम उत्तर प्रदेश का तो नहीं ही हो सकता।