मनोरंजन

किरदारों को हूबहू परदे पर जी देने का असली ‘करिश्मा’

Rounak Dey
3 Jun 2023 5:52 PM GMT
किरदारों को हूबहू परदे पर जी देने का असली ‘करिश्मा’
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हंसल ने फिर नोचा सिस्टम का नकाब

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | वकालत और पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाली मुंबई की चर्चित पत्रकार जिगना वोरा के मुंबई पुलिस के निशाने पर आने और उसके बाद भायखला जेल में करीब नौ महीने बिताने की कहानी है हंसल मेहता निर्देशित नई वेब सीरीज ‘स्कूप’। कभी मुंबई पुलिस के हीरो रहे प्रदीप शर्मा की एनकाउंटर गाथा का पर्दाफाश भी जिगना वोरा ने ही किया था, और सीरीज अपनी पटकथा में ये अहम कड़ी बताने की जरूरत भले न समझती हो लेकिन सीरीज खत्म होने पर वह जिगना वोरा को उन लोगों के साथ जरूर खड़ा कर देती है जो शासन और सत्ता के मुखर विरोधी रहे हैं। सीरीज के आखिरी एपिसोड के एंड क्रेडिट में असली जिगना वोरा के इंटरव्यू के बाद कुछ तस्वीरें और कुछ डिटेल्स हैं...

मुंबई के चर्चित क्राइम रिपोर्टर रहे जे डे (ज्योतिर्मय डे) की दिन दहाड़े हत्या और उसको लेकर मचे बवाल के बीच पत्रकार जिगना वोरा की गिरफ्तारी मुंबई में उन दिनों कार्यरत रहे पत्रकारों को अब भी याद है। जिगना वोरा पर मकोका लगा। वह जेल गईं। फिर, सिंगल मदर और परिवार का भरण पोषण करने वाली एकमात्र सदस्य होने के नाते उन्हें जमानत मिली। सात साल तक चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद वह सारे आरोपों से बरी भी हो गईं। सीरीज के पहले चार एपिसोड जिगना की गिरफ्तारी के पहले की घटनाएं दिखाती हैं और आखिर के दो एपिसोड उनके भायखला में बिताए दिनों की। जिगना वोरा का किरदार सीरीज में निभाया है अभिनेत्री करिश्मा वी तन्ना। 2011 में मैं समाचार पत्र ‘नई दुनिया’ का महाराष्ट्र का रीजनल एडिटर था और इन घटनाओं का गवाह भी। उन दिनों मुंबई पुलिस और अंडरवर्ल्ड के रिश्तों की खबरें आम थी। छोटा राजन सुर्खियों में रहता था। और, सब कुछ इतना धुंधला और अस्पष्ट था कि किसी से कुछ भी कहने से पत्रकार कतराते थे। जिगना वोरा मामले के बाद मुंबई पुलिस और अंडरवर्ल्ड के रिश्तों को लेकर खबरें आनी भी कम हो गईं और उस दौर की कड़वी हकीकतें इस बार परदे पर लौटी हैं, वेब सीरीज 'स्कूप' की काल्पनिक कथा के जरिये।

मुंबई पुलिस और अंडरवर्ल्ड की कथित ‘मिलीभगत’ और आईबी के अधिकारियों की मेहनत पर बार बार मुंबई पुलिस के कथित रूप से पानी फेर देने की घटनाएं भी खूब पढ़ी जाती थीं। सूबे में कांग्रेस की सरकार थी। पृथ्वीराज चव्हाण मुख्यमंत्री और आर आर पाटिल गृहमंत्री। अरुप पटनायक उन दिनों मुंबई के पुलिस कमिश्नर हुआ करते थे। और, उनके मातहत काम करने वाले कम से कम तीन पुलिस अधिकारी ऐसे थे जिनके बारे में कहा जाता था कि मुंबई पुलिस के तीन खेमे इन्हीं के नीचे चलते हैं। ये सब आम समीक्षक को ये सीरीज देखते समय भले न याद आए लेकिन पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में की गई क्राइम रिपोर्टिंग ने इस तरह की घटनाओं को लेकर मेरी दिलचस्पी हमेशा बनाए रखी। कहीं पढ़ा मैंने कि करिश्मा तन्ना इस सीरीज की सबसे कमजोर कड़ी हैं। ये एक अभिनेत्री की मेहनत को सरे आम नकारने जैसा है। बाहर से आए कलाकारों की हिम्मत तोड़ने और उन्हें हाशिये पर धकेलने का काम अब भी मुंबई फिल्म जगत में अब भी खूब हो रहा है। ऐसा ही कुछ हुआ था जिगना वोरा के साथ। उसका ज्ञान, उसकी होशियारी और उसकी हिम्मत उसके पेशे से कहीं ज्यादा थी। और, पेशा कोई भी हो, उसके मगरमच्छों को अपने बीच कोई भी ऐसा नहीं चाहिए होता है जो पानी के बीचो बीच धूप सेंकने के लिए बने उनके टीले पर अपनी जगह तलाशने आ जाए।

जिगना वोरा की लिखी किताब ‘बिहाइंड बार्स इन भायखला माय डेज इन प्रिजन’ इस सीरीज का सिर्फ आधार है। इसकी असल नींव तैयार की है दीपू सेबेस्टियन एडमंड नामक पत्रकार की रिसर्च ने। कहानी मुंबई के एक मध्यमवर्गीय परिवार से लेकर शहर के नामी बिल्डर्स, दबंग पुलिस अफसर, गुजरात के फैमिली कोर्ट, पंचगनी के बोर्डिंग स्कूल से लेकर विचाराधीन कैदियों की नारकीय जिंदगी दिखाती भायखला जेल तक फैली है। मिरत, मृणालयी ने पूरी कहानी को बहुत ही चुस्त पटकथा में बुना है। करन व्यास ने जिगना की गुजराती पृष्ठभूमि के हिसाब से संवाद भी चुटीले लिखे हैं। जो कुछ इन सबसे छूटा वह अतिरिक्त पटकथा लेखक का क्रेडिट पाने वाली अनु सिंह चौधरी ने साध लिया है। इस सारी लिखावट में जो किरदार कैमरे के सामने अदाकारी निभाने के लिए उभरे हैं, उनके लिए कलाकार चुनने का काम यहां भी मुकेश छाबड़ा ने संभाला है। साध्वी, जगताप और वशिष्ठ के किरदारों के लिए कलाकार चुनने में मुकेश की टीम ने शानदार काम किया है।

और, सीरीज में कलाकारों के मामले में सबसे शानदार काम किया है करिश्मा तन्ना और जीशान अयूब ने। एक महिला पत्रकार का क्राइम रिपोर्टर होना ही अपने आप में किसी रहस्य से कम नहीं होता। और, वह भी अगर अपने काम के बूते लगातार तरक्की पाती रहे। एक अखबार से दूसरे अखबार तक छलांगे लगाती रहे और ऐसे ओहदे पर पहुंच जाए जहां उसका अपने संपादक के साथ अतिरिक्त समय बिताना दफ्तर का गॉसिप बन जाए, ऐसा किरदार निभाना, उसकी मनोदशा समझना और फिर एक मां के रूप में भी परदे पर नजर आना। इन शुरुआती चुनौतियों को बखूबी पार करने के बाद करिश्मा का असल इम्तिहान होता है विचाराधीन कैदी के रूप में उनके अभिनय में। टट्टी के बीच जा गिरे साबुन को निकालने से ठीक पहले के दृश्य दिखाते हैं कि आराम की जिंदगी जी रहा इंसान कब एक कीड़े की जिंदगी जीने को मजबूर हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। और, इसके बावजूद ऐसा इंसान एक साध्वी के बहकावे में आने से इंकार कर दे। खुद पर जुल्म ढाने वालों को माफ कर दे। करिश्मा तन्ना ने इन सारे भावों को एक ही सीरीज में इतने करीने से परदे पर जिया है कि अगर ये सीरीज एम्मी अवार्ड्स में नेटफ्लिक्स की तरफ से गई तो उनका पुरस्कार पक्का हो सकता है।

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