पीढ़ी दर पीढ़ी प्रवाहित हो महाश्वेता देवी के सिद्धांत : अरिंदम सिल
बंगाली फिल्म 'महानंदा' के निर्देशक अरिंदम सिल ने बांग्ला लेखिका और कार्यकर्ता महाश्वेता देवी के काम और योगदान की सराहना करते हुए कहा कि महानंदा नदी की तरह उनके सिद्धांत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक प्रवाहित होने चाहिए। अरिंदम सिल ने शनिवार को कहा, "यह जीवन के सिद्धांतों के बारे में बात करने का समय है, क्योंकि आजकल बहुत कम लोग वास्तव में सिद्धांतों का जीवन जीते हैं।"
वह गोवा में चल रहे इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया में 'टेबल टॉक्स' कार्यक्रम के दौरान बोल रहे थे। 'महानंदा' लेखक-सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी के जीवन पर आधारित एक बायोपिक है। अरिंदम सिल ने कहा है, "यह जीवन के सिद्धांतों के बारे में बात करने का समय है, क्योंकि आजकल बहुत कम लोग वास्तव में सिद्धांतों का जीवन जीते हैं। महाश्वेता देवी उन कुछ लोगों में से एक थीं, जो सिद्धांतों पर आधारित जीवन जीती थी। मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि हम अपने बच्चों को सिद्धांतों का जीवन जीने के लिए कहें।"
अरिंदम सिल ने कहा कि उन्हें लगता है कि महाश्वेता देवी जैसी शख्सियत के बारे में बात करना और सामने लाना फिल्म निमार्ताओं की नैतिक जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा, "वह एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें हम सब भूलते जा रहे हैं। महाश्वेता देवी को अमेरिकी विश्वविद्यालयों में एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। हालांकि भारत के विश्वविद्यालयों में हम उनके बारे में बात तक नहीं करते हैं।" उन्होंने कहा कि महाश्वेता देवी का पूरा जीवन उन लोगों के लिए लड़ने के लिए समर्पित था, जिन्हें वह भारत की असली जनता कहती थी। उन्होंने कहा, "इस देश में किसी ने भी आदिवासियों - सबर और मुंडा - के लिए उस तरह से काम नहीं किया जैसा उन्होंने किया। मेधा पाटेकर और महाश्वेता देवी कॉमरेड की तरह थीं।" उन्होंने कहा, "महाश्वेता देवी को लोग फॉलो करते थे। उन्हें जंगलों में भगवान माना जाता था। हमने फिल्म में इन सभी तथ्यों को सामने लाने की कोशिश की है।" अरिंदम सिल ने कहा, "महानंदा नदी की तरह, उनके सिद्धांतों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक प्रवाहित होना चाहिए।"