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मां आदिशक्ति दुर्गा के हर स्वरूप की महिमा है निराली, जानिए नौ देवियों के बारे में
![मां आदिशक्ति दुर्गा के हर स्वरूप की महिमा है निराली, जानिए नौ देवियों के बारे में मां आदिशक्ति दुर्गा के हर स्वरूप की महिमा है निराली, जानिए नौ देवियों के बारे में](https://jantaserishta.com/h-upload/2021/10/01/1326666--.webp)
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। प्रत्येक वर्ष में छह माह के अंतराल पर मुख्य दो नवरात्रि आती हैं। अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। इस बार शारदीय नवरात्रि 07 अक्टूबर 2021 दिन गुरुवार को आरंभ हो रही हैं। मां भगवती की पूजा के लिए ये नौं दिन बहुत ही पावन और महत्वपूर्ण माने जाते हैं। मान्यता है कि इस समय मां दुर्गा पृथ्वी लोक पर विचरण करती हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करती हैं। इन नौं दिनों तक भक्त मां दुर्गा के नौं स्वरुपों का पूजन करते हैं। प्रथम दिन मां शैलपुत्री, द्वितीय मां ब्रह्मचारिणी, चतुर्थ मां चंद्रघंटा, पंचम स्कंद माता, षष्टम मां कात्यायनी, सप्तम मां कालरात्रि, अष्टम मां महागौरी, नवम मां सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है। मां के हर स्वरुप की अपनी एक अलग विशिष्टता और निराली महिमा है। शारदीय नवरात्रि के पावन दिन आरंभ होने वाले है तो चलिए जानते हैं मां के नौं स्वरुपों के बारे में विस्तार से।
मां शैलपुत्री-
नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है ये मां दुर्गा का प्रथम स्वरुप हैं। ये राजा हिमालय (शैल) की पुत्री हैं इसी कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। ये वृषभ पर विराजती हैं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल तो बाएं हाथ में कमल धारण करती हैं। प्रथम दिन इनके पूजन से ही भक्त के नौं दिन की यात्रा आरंभ होती है।
मां ब्रह्मचारिणी-
मां दुर्गा के नौं स्वरुपों में मां ब्रह्मचारिणी द्वितीय स्वरुप हैं। ब्रह्मचारिणी अर्थात् तप का आचरण करने वाली। इन्होंने भगवान शिव को पति रुप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था इसलिए ये ब्रह्मचारिणी कहलाई। मां ब्रह्मचारिणी का स्वरुप अत्यंत ज्योतिर्मय है। इनके बांए हाथ में कमंडल सुशोभित है तो दाहिने हाथ में ये माला धारण करती हैं। इनकी उपासना से साधक को सदाचार, संयम की प्राप्ति होती है।
चंद्रघण्टा देवी-
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा का पूजन होता है। ये मां दुर्गा की तृतीय शक्ति हैं। इनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्तियां समाहित हैं। इनके मस्तक पर अर्द्ध चंद्र सुशोभित हैं, इसी कारण ये चंद्रघंटा कहलाती हैं। इनके घंटे की ध्वनि से सभी नकारात्मक शक्तियां दूर भाग जाती हैं। इनके रंग स्वर्ण के समान चमकीला है, ये सिंह पर विराजती हैं। मां चंद्रघंटा का स्वरुप भक्तों के लिए अत्यंत कल्याण कारी है।
कूष्मांडा माता-
नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरुप कूष्मांडा माता की पूजा का विधान है। इनकी मंद हंसी से ही ब्रह्मांड का निर्माण होने के कारण इनका नाम कूष्मांडा पड़ा। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार जब चारों ओर अंधकार ही अंधकार था तब मां की ऊर्जा से ही सृष्टि का सृजन हुआ था। मां कूष्मांडा का आठ भुजाएं हैं, वे इनमें धनुष, बाण, कमल, अमृत, चक्र, गदा और कमण्डल धारण करती हैं। मां के आंठवे हाथ में माला सुशोभित रहती है। ये भक्त को भवसागर से पार उतारती हैं और उसे लौकिक-परालौकिक उन्नति प्रदान करती हैं।
स्कंदमाता-
नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा के पंचम स्वरुप स्कंदमाता का पूजन किया जाता है। ये अपनी गोद में कुमार कार्तिकेय को लिए हुए हैं और कार्तिकेय का एक नाम स्कंद है, इसी कारण ये स्कंद माता कहलाती हैं। ये कमल के आसन पर विराजती हैं और इनका वाहन सिंह है। इनका स्वरुप स्नेहमय और मन को मोह लेने वाला है। इनकी चार भुजाएं हैं, दो भुजाओं में कमल सुशोभित हैं तो वहीं एक हाथ वर मुद्रा में रहता है। मां एक हाथ से अपनी गोद में स्कंद कुमार को लिए हुए हैं। स्कंद माता सदैव अपने भक्तों का कल्याण करने के लिए तत्पर रहती हैं।
कात्यायनी माता-
नवरात्रि में छठे दिन मां दुर्गा के षष्ठम स्वरुप मां कात्यायनी की आराधना की जाती है। इन्होंने कात्यायन ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके घर पुत्री रुप में जन्म लिया था और ऋषि कात्यायन ने ही सर्वप्रथम इनका पूजन किया था। इसी कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। मां कात्यायनी का स्वरुप तेजमय और अत्यंत चमकीला है। इनकी चार भुजाएं हैं, दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयु मुद्रा में रहता है तो वहीं नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है। बाई ओर के ऊपर वाले हाथ में मां तलवार धारण करती हैं तो वहीं नीचे वाले हाथ में कमल सुशोभित है। सिंह मां कात्यायनी का वाहन है। इनकी साधना से साथ को इस लोक में रहकर भी आलौकिक तेज की प्राप्ति होती है।
कालरात्रि माता-
मां दुर्गा के सप्तम स्वरुप को कालरात्री कहा जाता है, नवरात्रि में सप्तमी तिथि को इन्हीं की पूजा अर्चना की जाती है। इनका स्वरुप देखने में प्रचंड है लेकिन ये अपने भक्तों के सदैव शुभ फल प्रदान करती हैं। इसलिए इन्हें शुभड्करी भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार रक्तबीज नामक राक्षस का संहार करने के लिए मां ने ये भयानक रुप धारण किया था। इनकी पूजा करने से भक्त सभी तरह के भय से दूर हो जाता है। ये दुष्टों का विनाश करती हैं।
महागौरी माता-
मां दुर्गा के आठवें स्वरुप को महागौरी कहा जाता है। दुर्गा अष्टमी के दिन मां महागौरी की पूजा-आराधना की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार इन्होंने भगवान शिव को पति रुप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी जिसके कारण इनका शरीर काला पड़ गया था। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर इन्हें गौरवर्ण प्रदान किया इसलिए ये महागौरी कहलाईं। ये श्वेत वस्त्र और आभूषण धारण करती हैं इसलिए इन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है। इनकी चार भुजाएं हैं। दाहिनी और का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में रहता है तो वहीं नीचे वाले हाथ में मां त्रिशूल धारण करती हैं। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरु रहता है तो नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में रहता है। इनकी पूजा से पूर्वसंचित पापकर्म भी नष्ट हो जाते हैं। ये अमोघ फलदायिनी हैं और भक्तों का कल्याण करती हैं।
सिद्धिदात्री माता-
नवरात्रि में नवमी तिथि यानी अंतिम दिन मां दुर्गा के नौवें स्वरुप मां सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है। इनके नाम से ही पता चलता है सिद्धियों को प्रदान करने वाली। इनकी पूजा से भक्त को सिद्धियों की प्राप्ति होती है। धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव को इन्हीं से सिद्धियों की प्राप्ति हुई थी और इन्हीं की अनुकंपा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी (नारी) का हुआ, जिसके बाद वे अर्द्ध नारीश्वर कहलाए। ये कमल के फूल पर विराजती हैं और सिंह इनका वाहन है। इनकी उपासना से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।