जनता से रिश्ता वेबडेस्क | सुरिंदर कौर पंजाब की प्रसिद्ध लोक गायिका और संगीतकार थीं। देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उनके गीतों को पसंद किया जाता रहा है। कभी उन्हें ‘पंजाब दी कोयल‘ तो कभी ‘पंजाब दी आवाज‘ कहा गया। सुरिंदर कौर पंजाबी संगीत की दुनिया के लिए लता मंगेशकर से कम नहीं थीं। वह अपनी आवाज से ऐसा जादू बिखेरती कि हर कोई उनका दीवाना बन जाता। आज सुरिंदर की डेथ एनिवर्सरी है। 14 जून, 2006 को 77 साल की उम्र में न्यू जर्सी के एक अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई थी।
25 नवंबर, 1929 को भारत-पाकिस्तान के विभाजन से पहले पंजाब के लाहौर में जन्मीं कौर ने 1948 और 1952 के बीच कई हिंदी फिल्मों के लिए पार्श्व गायिका के रूप में गीत भी गाए हैं। उन्हें पंजाबी संगीत में उनके योगदान के लिए पंजाब की कोकिला नाम दिया गया, 1984 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 2006 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सुरिंदर का दूर-दूर तक भी म्यूजिक से कोई नाता नहीं था। उनके घर में गाने बजाने की अनुमति नहीं थी। लेकिन सुरिंदर को संगीत काफी पसंद था। सुरिंदर के सात भाई-बहन थे। सुरिंदर का संगीत के तरफ झुकाव देखते हुए उनके बड़े भाई ने उनका समर्थन किया और बड़े मुश्किल से अपने घरवालों को सुरिंदर और उनकी बड़ी बहन प्रकाश कौर की संगीत शिक्षा के लिए मनाया। इसका नतीजा यह हुआ कि 12 साल की उम्र से सुरिंदर और उनकी बहन प्रकाश कौर ने मास्टर इनायत हुसैन और मास्टर पंडित मणि प्रसाद से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने शुरु कर दी थी।
सुरिंदर कौर ने पहली बार साल 1943 में लाहौर रेडियो के लिए ऑडिशन दिया था। इस ऑडिशन में वह बच्चों के म्यूजिक प्रोग्राम के लिए सिलेक्ट हो गई थी। यहीं से उनके एक नए जीवन की शुरुआत हुई थी। इसके बाद सुरिंदर और प्रकाश कौर ने अपनी पहली एल्बम में ड्यूएट गाया, जिसका एक गाना 'मावां ते धीयां रल बैठियां' काफी पॉपुलर हुआ था। इस गाने ने दोनों सुरिंदर और उनकी बहन को रातों-रात स्टार बना दिया था। साल 1947 में विभाजन के बाद सुरिंदर का परिवार दिल्ली आकर रहने लगा था और बाद में वे लोग मुंबई जाकर बस गए थे। यहां सुरिंदर कौर ने फिल्म इंडस्ट्री में बतौर प्लेबैक सिंगर काम करना शुरू किया।