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सुनील दत्त एक ऐसा नाम जिनके बिना हिंदी फिल्मों की कल्पना करना मुमकिन नहीं है। वो एक अभिनेता, निर्माता, नेता और एक ऐसे पिता रहे जो ताउम्र अपने बेटे के सपोर्ट में खड़े रहे।
जनता से रिश्ता। सुनील दत्त एक ऐसा नाम जिनके बिना हिंदी फिल्मों की कल्पना करना मुमकिन नहीं है। वो एक अभिनेता, निर्माता, नेता और एक ऐसे पिता रहे जो ताउम्र अपने बेटे के सपोर्ट में खड़े रहे।
सुनील दत्त का जन्म 6 जून 1929 को झेलम के खुर्दी गाँव में हुआ, जो अब पाकिस्तान में है। इनकी जिंदगी आसान नहीं रही, 5 वर्ष की छोटी सी उम्र में ही पिता का साया उठ गया। उसके बाद भारत-पाक विभाजन का सामना किया और भारत के हरियाणा में आकर बस गये। उस ज़माने में पैसा कमाना इतना भी आसान नहीं था। साल 1955 में उन्होंने बम्बई का रुख किया। 1955 से 1957 तक सुनील ने बहुत स्ट्रगल किया और तब जा कर इन्हें इंडस्ट्री में पहचान मिली। लेकिन क्या आप जानते हैं सुनील दत्त का असली नाम बलराज दत्त है।
हिंदुस्तान की जमीन पर अब सुनील दत्त को पहचान मिली एक रिफ्यूजी के तौर पर. इस पहचान के साथ मुफलिसी में उन्होंने अपने जीवन का संघर्ष शुरू किया. पाकिस्तान से आने के बाद उन्होंने तब के पंजाब में यमुनानगर के मंडोली में शरण ली, जो कि अभी हरियाणा में पड़ता है. यहां कुछ समय बिताने के बाद वे और उनका पूरा परिवार लखनऊ शिफ्ट हो गया. यहां की अमीनाबाद गली में उन्होंने कुछ साल गुजारे. अपनी ग्रेजुएशन पूरी की.
अमीनाबाद के बाद वो मुंबई आ गए. मुंबई में काला घोड़ा में नौसेना की एक बिल्डिंग में उन्हें रहने के लिए एक कमरा मिला. इस शहर में रहकर उन्होंने अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और फिर यहीं बस गए. पोस्ट ग्रेजुएशन के साथ-साथ उन्होंने एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम भी किया. इसके बाद उन्हें रेडियो सीलोन में नौकरी मिली, जहां पर वे फिल्मी सितारों का इंटरव्यू लिया करते थे. उस नौकरी में सुनील दत्त को 25 रुपये महीना मिलता था
सुनील कॉलेज में थियेटर से जुड़े हुए थे. एक बार कॉलेज थियेटर का प्ले देखने रेडियो के प्रोग्रामिंग हेड पहुंचे थे. यहां उन्होंने सुनील दत्त को देखा और उनकी आवाज सुनकर उनके कायल हो गए. प्रोग्रामिंग हेड ने तुरंत ही सुनील दत्त को जॉब ऑफर की और जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया. सुनील दत्त ने बड़े-बड़े कलाकारों का इंटरव्यू लेना शुरू किया और यहीं से वे अनऑफिशियली फिल्मी दुनिया से जुड़ गए. इस दौरान ही सुनील दत्त की मुलाकात नरगिस से हुई. हालांकि उस समय दोनों नहीं जानते थे कि भविष्य में वे पति-पत्नी बन जाएंगे.
एक कामयाब रेडियो जॉकी बनने के बाद अब सुनील दत्त कुछ नया करने की तलाश में थे. इसी बीच उन्होंने फिल्मों में काम करने का ऑफर मिला. उनकी पहली फिल्म थी रेलवे प्लेटफॉर्म, जो कि 1955 में आई थी. इसके बाद उन्होंने अपने फिल्मी करियर का बड़ा ब्रेक मिला फिल्म मदर इंडिया से. इस फिल्म में सुनील दत्त का किरदार एक गुस्सैल बेटे का था, जो कि किसी की बात नहीं सुनता था. फिल्म में नरगिस, सुनील दत्त की मां बनी थीं.
इस फिल्म को काफी सफलता मिली. इसके बाद सुनील दत्त ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वे एक ऐसे अभिनेता बन चुके थे, जिनकी 50 औऱ 60 के दशक में हर फिल्म सुपरहिट साबित हुई. इनमें साधना (1958), सुजाता (1959), मुझे जीने दो (1963), खानदान (1965), पड़ोसन (1967) जैसी कई फिल्में शामिल हैं. अपने आखिरी समय तक भी वे फिल्मों से जुड़े रहे थे. सुनील दत्त ने आखिरी फिल्म अपने बेटे संजय दत्त के साथ की थी, जो कि मुन्नाभाई एमबीबीएस थी. सुनील दत्त केवल एक सफल अभिनेता ही नहीं रहे बल्कि एक सफल डायरेक्टर भी रहे हैं. अपने बेटे की पहली फिल्म भी उन्होंंने ही डायरेक्ट की थी.
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