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या किसी भी फील्ड में संघर्ष करती लडकी हैं तो तमाम कमियां नजर अंदाज करके भी आपका ये मूवी देखना बनता है.
जब भी किसी की बायोपिक बनती है या बायोग्राफी लिखी जाती है तो मोटे तौर पर उस व्यक्ति को नायक बनाने के लिए निर्देशक या लेखक उसके जिंदगी के संघर्ष को दिखाता है कि कितनी मुश्किलों से उसने ये मुकाम पाया है, कितनी गरीबी झेली है. लेकिन 'शाबास मिठ्ठू' जब आप देखते हैं, शुरू के 15 या 20 मिनट तो आपको पता ही नहीं चलता कि फिल्म की नायिका वही है या उसकी सहेली है. क्रिकेट खास तौर पर महिला क्रिकेट के इतिहास में जो मूवी अहम दस्तावेज बनने जा रही हो, उसके साथ ये प्रयोग बॉक्स ऑफिस पर मूवी के लिए खतरनाक हो सकता है.
मिताली राज पर कहानी
फिल्म की कहानी भारत की सबसे कामयाब महिला क्रिकेटर मिताली राज की जिंदगी पर बनी है. दिखाया गया है कि कैसे एक लड़की नूरी उसे भरत नाट्यम की क्लास में बचपन में मिलती है और क्रिकेट का शौक भी लगाती है. उसकी टेक्निक क्रिकेट कोचिंग कर रहे उसके भाई के कोच संपत (विजय राज) को इतनी पसंद आती है कि वो उसे व नूरी दोनों को क्रिकेट की कोचिंग देना शुरू कर देते हैं. लेकिन इंडियन क्रिकेट टीम के कैंप में सेलेक्शन से पहले ही नूरी के पिता उसकी शादी तय कर देते हैं और मिताली (तापसी पन्नू) का सेलेक्शन हो जाता है.
इस तरह होती है शुरुआत
इसके बाद कैंप में कैसे सीनियर लड़कियां उसे परेशान करती हैं, टीम की कैप्टन सुकुमारी मारवाह (शिल्पी मारवाह) विलेन की तरह उसके पीछे ही पड़ जाती हैं, लेकिन मिताली अपने बल्ले से सबको खामोश कर देती है. कोच की मौत की खबर सुनकर भी पहले ही मैच में शतक जमा देती है. एक दिन मिताली को कैप्टन बना दिया जाता है और वो CII (BCCI) को पत्र लिखकर उनका सहयोग मांगती है, जो मिल भी जाता है. लेकिन कम बजट, महिला क्रिकेटर्स का मजाक, अधिकारियों का असहयोग, पब्लिक की उपेक्षा, सुकुमारी को कोच बना देना आदि के चलते मिताली एक बार तो घर ही वापस चली जाती है. पूरी टीम उसके बिना बिखर जाती है.
वर्ल्ड कप में वापसी
मिताली की वर्ल्ड कप के लिए वापसी करवाई जाती है और वो अपनी तूफानी बल्लेबाजी और शानदार नेतृत्व से भारत को विश्वकप के फाइनल में पहुंचा देती है. फाइनल में रन आउट होने के चलते भारत की उम्मीदों पर पानी फिर जाता है, लेकिन टीम संघर्ष करती है और केवल 9 रन से हार जाती है. क्लाइमैक्स है टीम का दिल्ली एयरपोर्ट पर हताश उतरना और अपने स्वागत में जबरदस्त नारे लगते देखना, मीडिया का हुजूम, प्रधानमंत्री का फोन, ये दिन महिला क्रिकेट टीम को देखने को मिला तो वजह थी मिताली राज.
सीन बेवजह लंबे
हालांकि, फिल्म के मूल डायरेक्टर राहुल ढोलकिया की जगह गुमनामी और बेगम जान की मूल बंगाली मूवी राजकहिनी जैसी इतिहास से जुड़ी मूवीज बना चुके श्रीजीत मुखर्जी को लेना इस मूवी के लिए दिक्कत पैदा कर गया क्योंकि कई सीन बेवजह लंबे दिखते हैं, ये भी लगता है कि मिताली पर अच्छी रिसर्च नहीं हुई, कंटेंट डायरेक्टर के पास है ही नहीं. बावजूद इसके श्रीजीत और तापसी ने भी काफी कोशिश की, फिर भी ये मूवी थिएटर से ज्यादा ओटीटी पर ही पसंद की जाएगी.
कंटेंट पर नहीं किया गया काम
चूंकि कंटेंट कम था, मिताली की व्यग्तिगत जिंदगी में कोई संघर्ष था ही नहीं, या दिखाया ही नहीं गया तो डायरेक्टर संजय दत्त की बायोपिक संजू की राह पर चले जाते हैं, विकी कौशल जैसा दोस्त ढूंढते हैं, और वो दोस्त थी नूरी. शुरू के 20 मिनट नूरी मिताली पर भी भारी पड़ती है, लेकिन डायरेक्टर उसे शादी करके जल्दी विदा कर देता है. ऐसा लगता है डायरेक्टर ने मिताली की रियल लाइफ दोस्त क्रिकेटर नूशीन अल खदीर को ही नूरी नाम दे दिया है. लेकिन वो तो कर्नाटक से खेलती थी और मिताली आंध्र से.
कई जगह बात नहीं होती हजम
नूशीन तो शादी करके क्रिकेट से विदा नहीं हुई, बल्कि सालों खेलती रही, इस मूवी के लिए तापसी को जिसने क्रिकेट की कोचिंग दी है, वो नूशीन ही हैं. फिर ये प्रयोग क्यों किया गया, संजू के दोस्त की तरह आखिर तक साथ देने वाली दोस्त होती तो फिल्म और बेहतरीन बन जाती. हालांकि पुरुष क्रिकेटर्स के होर्डिंग के सामने बैठकर महिला क्रिकेटर्स का यूरीन करना, एक लड़की का इंडियन महिला टीम कप्तान से पुरुष क्रिकेटर के साथ उसकी फोटो खींचने को कहना, बीसीसीआई अधिकारियों का रवैया, एयरपोर्ट पर महिला क्रिकेटर्स के साथ मामूली कर्मचारियों का बर्ताव आदि आपको खुद पर सोचने को मजबूर करता है.
तापसी ने की काफी मेहनत
फिल्म के गानों के बोल स्वानंद किरकिरे आदि ने बेहतरीन लिखे हैं, अमित त्रिवेदी का म्यूजिक है, फिर भी वो चर्चा में नहीं हैं. विजय राज, बृजेंद्र काला जैसे कुछ और बेहतरीन कलाकार मूवी को और बेहतर बना सकते थे. हालांकि, शिल्पी मारवाह इकलौती विलेन के तौर पर जमी हैं, झूलन गोस्वामी के रोल में जादूगर पीसी सरकार की बेटी मुमताज सरकार समेत बाकी लड़कियां भी मेहनत करती दिखी हैं, रणवीर सिंह की तरह लुक से लेकर क्रिकेट तक में तापसी की इस रोल के लिए कड़ी मेहनत साफ नजर आती है.
एक बार देखने लायक
लेकिन चक दे इंडिया जैसे किरदार नहीं उभर पाए. ऐसे में जिस खिलाड़ी के ऊपर ये मूवी बनी है, वो इस तरह के सम्मान की हकदार थी, सो अगर आप क्रिकेट फैन हैं, या किसी भी फील्ड में संघर्ष करती लडकी हैं तो तमाम कमियां नजर अंदाज करके भी आपका ये मूवी देखना बनता है.
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