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शाहिद कपूर की बहन ने कहा- मैं सेल्फ डाउट करने लगी थी कि क्या मैं एक्ट्रेस बन सकूंगी?

Neha Dani
26 Sep 2022 9:30 AM GMT
शाहिद कपूर की बहन ने कहा- मैं सेल्फ डाउट करने लगी थी कि क्या मैं एक्ट्रेस बन सकूंगी?
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मानती हूं कि शादी में एडजस्ट करना पड़ता है, मगर किसी के लिए खुद को इतना मत बदलो कि खो ही जाओ।

'शानदार', 'खजूर पे अटके', 'रामप्रसाद की तेरहवीं' जैसी फिल्मों में काम कर चुकी पंकज कपूर-सुप्रिया पाठक की बेटी और शाहिद कपूर की बहन सना कपूर इन दिनों चर्चा में हैं अपनी नई फिल्म 'सरोज का रिश्ता' से। इस विशेष मुलाकात में सना ने अपनी फिल्म, फिजिकैलिटी, माता-पिता, भाई शाहिद, अपनी सास सीमा पाहवा और अपने क्रश शाहरुख खान को लेकर मजेदार बातें कीं।


मैं हमेशा से अपनी फेवरेट हुआ करती थी। असल में मेरे घर का माहौल ऐसा था कि कभी मुझे कमतर या अलग तरह से फील नहीं करवाया गया। मगर जब मैं फिल्मों में आई तो यहां आकर मैंने दिखा कि यहां पर खूबसूरती का अपना एक बना-बनाया पैमाना है। उस दौरान ऐसे कई पल आए जब मैं सेल्फ डाउट करने लगी थी कि क्या मैं यहां के लिए फिट हूं? क्या मैं एक्ट्रेस बन सकूंगी? क्योंकि उस सांचे में मैं फिट नहीं बैठ रही थी। जहां तक सेल्फ लव की बात है तो मैं अभी भी स्ट्रगल करती हूं। कोई दिन ऐसे होते हैं, जब मैं सोचती हूं घर से बाहर न निकलूं, मगर कई दिन ऐसे भी होते हैं, जब मैं सोचती हूं कि क्या फर्क पड़ता है? मैं जैसी हूं अच्छी हूं। मगर मैं मानती हूं कि खुद से प्यार करना बहुत जरूरी है। मैं ये जरूर कहना चाहूंगी कि हम मोटे, पतले, काले, गोरे जो भी हों, हम यूनीक हैं।

कोशिश करती हूं कि इनकी मौजूदगी में प्रेशर महसूस न करूं(हंसती हैं) प्रेशर फील करती हूं। मगर दूसरी तरफ से खुद को बहुत खुशकिस्मत मानती हूं। मेरे सास-ससुर भी काफी क्रिएटिव हैं और साथ-साथ बहुत सपोर्टिव भी। मैंने अपने परिवार से बहुत कुछ सीखा है, मगर अपने काम को लेकर बहुत सतर्क रहती हूं कि अपना सौ फीसदी दूं, क्योंकि मेरे साथ मेरे मायके के साथ-साथ ससुराल वालों का नाम भी जुड़ा हुआ है।

हम दोनों के लिए ही हमारे माता-पिता काफी अहमियत रखते हैं तो हम दोनों ही अपने पेरेंट्स को ध्यान में रख कर, उन्हें शुक्रिया कहते हुए शादी के बंधन में बांधना चाहते थे। हमने एक तरफ पारंपरिक शादी की तो दूसरी तरफ कोर्ट मैरिज भी की। मैं चाहती थी कि पापा कन्यादान करें। इन सब रिवाजों को बीच हमारी प्यारी भावनाएं थीं कि डैड मेरा हाथ मयंक के हाथ में देते हुए कहें कि अब तक मैंने इसका ध्यान रखा है, आगे आपको रखना है और मयंक ने वो वादा पंजाबी में किया। हमने मंगलसूत्र, सिंदूर, मेहंदी, चूड़ा आदि जैसे रिचुअल्स किए। मयंक को मैं बचपन से जानती हूं और हम अगल-बगल में ही रहते हैं, तो कुछ दूर जाने जैसा अहसास नहीं था। हम दोनों ही एक-दूसरे को हर तरह से परिपूर्ण करते हैं। हम एक ही इंडस्ट्री से हैं और हमारे पारिवारिक मूल्य भी एक जैसे ही हैं। हम लोग पूरी-पूरी रात बैठकर बातें कर सकते हैं ,कई बार बौद्धिक बहस भी होती है। मैं काफी क्रेजी हूं और वे शांत हैं, तो इस तरह वे मुझे बैलेंस करते हैं।

यही कि वे अपने बच्चों के लिए सही मैच ढूंढ पाएं। लोग कहते हैं कि शादी के मामले में लड़कियों को ज्यादा जज किया जाता है, मगर मुझे लगता है लड़का-लड़की दोनों जज होते हैं। लड़की सुंदर-सुशील होनी चाहिए, तो लड़का भी नौकरी और घरदार होना चाहिए। सरोज का रिश्ता जैसे फिल्म करने के पीछे मेरी अहम वजह यही थी कि हम यह संदेश देना चाहते हैं कि किसी भी लड़की को उसके आउटर लुक से जज न करें। मानती हूं कि शादी में एडजस्ट करना पड़ता है, मगर किसी के लिए खुद को इतना मत बदलो कि खो ही जाओ।


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