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वापसी की शुरुआत

Rani Sahu
25 Nov 2021 4:37 PM GMT
वापसी की शुरुआत
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तीन नए कृषि कानूनों की वापसी की सांविधानिक प्रक्रिया का शुरू होना न केवल ऐतिहासिक, बल्कि एक सीखने योग्य कदम भी है

तीन नए कृषि कानूनों की वापसी की सांविधानिक प्रक्रिया का शुरू होना न केवल ऐतिहासिक, बल्कि एक सीखने योग्य कदम भी है। बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट ने इन कानूनों की वापसी वाले विधेयक को मंजूरी दे दी है और अब इसे 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद सत्र में पेश किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते शुक्रवार को तीनों कानूनों की वापसी की घोषणा करके सबको चौंका दिया था। पर किसान पूरे खुश नहीं हुए, उन्हें ऐसा लग रहा था कि देर-सबेर सरकार बात करेगी, वैसे उन्हें अभी भी उम्मीद है कि सरकार बात करेगी। संयुक्त किसान मोर्चा से जुडे़ 40 संगठन दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं व एमएसपी गारंटी समेत छह मांगों के पूरा होने पर ही लौटने की बात कह रहे हैं।

संसद में बहुमत से पारित तीन कानूनों की वापसी अपने आप में मिसाल है, जिससे भविष्य में दूसरे आंदोलनों को प्रेरणा मिल सकती है। वैसे मोटे तौर पर सरकार के फैसले से किसानों का हौसला बढ़ा है और वे चाहते हैं कि बाकी तमाम मांगों को भी लगे हाथ मनवा लिया जाए। दिल्ली में किसान आंदोलन को एक साल पूरे हो रहे हैं और किसानों ने एक बार फिर 26 नवंबर को ज्यादा से ज्यादा संख्या में जुटने का एलान कर दिया है। 27 नवंबर को संयुक्त किसान मोर्चा फिर बैठक करेगा। 29 नवंबर को 60 ट्रैक्टरों के साथ 1,000 किसान संसद की ओर मार्च करेंगे। कुल मिलाकर, दिल्ली की सीमाओं पर मुश्किलें फिर बढ़ेंगी। 26 जनवरी को जो हुआ था, उसे कोई भूला नहीं है। वैसे भी जाम के लिए किसान खुद को जिम्मेदार नहीं मानते हैं। किसान नेता राकेश टिकैत ने बता दिया है कि 'हमने सड़क को अवरुद्ध नहीं किया है। सड़क रोकना हमारे आंदोलन का हिस्सा नहीं है। हमारा आंदोलन सरकार से बात करना है। हम सीधे संसद जाएंगे।' अगर 29 नवंबर को किसान सीधे संसद पहुंचकर सरकार से बात करते हैं, तो यह भी ऐतिहासिक और भविष्य के लिए असरदार होगा। कुछ किसान भले ही मान रहे हैं कि अब घर लौट जाना चाहिए, पर ज्यादातर निर्णायक किसान नेता घर लौटने के पक्षधर नहीं हैं। प्रधानमंत्री ने भी माना था कि हम कुछ किसानों को समझा नहीं पाए। अत: यह समय है कि इन कुछ लोगों को मनाने के प्रबंध किए जाएं, ताकि आंदोलन समाप्त हो और राजधानी की बाधाएं दूर हों।
इस आंदोलन की वजह से अब तक जान-माल का बहुत नुकसान हुआ है, आगे आंदोलन में किसानों को भी यह ध्यान रखना चाहिए। बेशक, किसानों के साथ ज्यादातर लोगों की सहानुभूति है, लेकिन इसे बचाकर रखना किसानों की भी प्राथमिकता होनी चाहिए। किसानों को भी बातचीत की राह तैयार करने के लिए पहल करनी चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि भविष्य में जो भी कानून बने, मिल-जुलकर सलाह-मश्विरे के बाद ही बने। इस आंदोलन से किसानों को एकजुटता का जो सबक मिला है, यह भविष्य में उनकी अन्य समस्याओं को सुलझाने में मददगार बनेगा। केवल केंद्र सरकार ही क्यों, राज्य सरकारों पर भी यह दबाव रहना चाहिए कि वे कृषि और कृषक हित में अपने स्तर पर समूचित उदारता बरतें। संसद में भी सभी पार्टियों को मिलकर यह कोशिश करनी चाहिए कि आंदोलन व्यावहारिक समाधान पर समाप्त हो। सरकार के लिए भी यह अपरिहार्य है कि अब उसके काम का तरीका ऐसा हो कि फिर ऐसे किसी आंदोलन की नौबत न आए।

हिन्दुस्तान

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