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Rashmi Rocket Review: तापसी पन्नू की फ़िल्म में खेलों की हार-जीत से परे स्वाभिमान की लड़ाई 'रश्मि रॉकेट'
Deepa Sahu
14 Oct 2021 6:54 PM GMT
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खेल फ़िल्ममेकर्स का पसंदीदा विषय रहा है।
नई दिल्ली। खेल फ़िल्ममेकर्स का पसंदीदा विषय रहा है। हार, जीत, गिरना, उठना, रोमांच, रोमांस, गर्व, देशभक्ति... ऐसा कोई मसाला नहीं, जो खेल आधारित फ़िल्म में ना दिखाया जा सके। हालांकि, क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी, बॉक्सिंग के मुकाबले एथलेटिक्स को पर्दे पर कम प्रतिनिधित्व मिला है। अगर याद करें तो भाग मिलखा भाग, पान सिंह तोमर और बुधिया सिंह- बॉर्न टू रन ही ज़हन में कौंधती हैं।
अब तापसी पन्नू की रश्मि रॉकेट आयी है, जो Zee5 पर देखी जा सकती है। मगर, आकर्ष खुराना निर्देशित रश्मि रॉकेट सिर्फ़ एक एथलीट के ट्रैक पर संघर्ष या हार-जीत की कहानी नहीं है, बल्कि यह फ़िल्म इस खेल में पैबस्त एक ऐसी बुराई की बात करती है, जो महिला एथलीटों के स्वाभिमान पर चोट करती है।
कहानी भुज की रश्मि वीरा की है। दौड़ना उसका गॉड-गिफ्ट है। उस पर एक आर्मी कैप्टन गगन ठाकुर की नज़र पड़ती है तो उसके टैलेंट से प्रभावित होकर एथलेटिक्स प्रतिस्पर्द्धाओं में शामिल होने का न्योता देता है। गगन ख़ुद एक पदक विजेता एथलीट रहा है और अब आर्मी में एथलीटों को ट्रेन करता है। रश्मि अतीत की एक घटना की वजह से दौड़ना छोड़ चुकी है, मगर मां भानुबेन के समझाने और दबाव देने पर राज़ी हो जाती है। गगन उसे ट्रेन करता है और रश्मि एक के बाद एक राज्य स्तरीय प्रतियोगिताएं जीती रहती है, जिससे वो एथलेटिक्स एसोसिएशन के सिलेक्टर्स की नज़र में आ जाती है।
रश्मि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की तैयारी के लिए पुणे की एथलीट अकादमी में भर्ती हो जाती है। जहां उसका सामना दूसरी एथलीटों से होता है। रश्मि में टैलेंट है, मगर टेक्निक नहीं। कोच मुखर्जी इसमें रश्मि की मदद करता है। मगर, रश्मि की प्रतिभा चैम्पियन एथलीट निहारिका को रास नहीं आती, जो एथलीट एसोसिएशन के पदाधिकारी दिलीप चोपड़ा की बेटी है। हालांकि, निहारिका अपने पिता के पद से ज़्यादा अपने टैलेंट पर भरोसा करती है
एशिया गेम्स में रश्मि, पदकों और शोहरत की रेस में निहारिका से आगे निकल जाती है। रश्मि का टैलेंट उसके लिए मुसीबत बन जाता है और जेंडर टेस्टिंग के लिए बुलाया जाता है। जांच में पता चलता है कि रश्मि के रक्त में टेस्टेस्टेरॉन हार्मोन की मात्रा पुरुष एथलीटों से भी अधिक है। इस बिना पर एथलीट एसोसिएशन उस पर बैन लगा देती है। इतना ही नहीं, स्पोर्ट्स हॉस्टल में उसे पुलिस के हाथों ज़लील भी होना पड़ता है।
मीडिया में भी यह केस ख़ूब उछलता है। रश्मि के संघर्ष में हर क़दम पर उसे गगन का साथ मिलता है। दोनों एक-दूसरे से प्यार करने लगते हैं और शादी कर लेते हैं। गगन, मां भानुबेन और वकील ईशित मेहता के ज़ोर देने पर रश्मि एथलेटिक्स एसोसिएशन के ख़िलाफ़ बॉम्बे हाई कोर्ट चली जाती है और बैन को चुनौती देती है।
तमिल फ़िल्ममेकर नंदा पेरियासामी की कहानी पर रश्मि रॉकेट का स्क्रीनप्ले अनिरुद्ध गुहा और कनिका ढिल्लों ने लिखा है, जबकि संवाद कनिका, आकर्ष, अनिरुद्ध और लिशा बजाज ने लिखे हैं। फ़िल्म के स्क्रीनप्ले की शुरुआत 5 अक्टूबर 2014 को उस घटना से होती है, जब पुलिस एथलेटिक्स अकादमी के परिसर में स्थित गर्ल्स हॉस्टल में एक लड़के के घुसकर मारपीट करने की शिकायत पर तापसी पन्नू को पकड़कर ले जाती है। इसके बाद फ़िल्म फ्लैशबैक में 2000 के भुज में पहुंच जाती है, जब रश्मि किशोरावस्था में होती है।
रश्मि रॉकेट अपने टाइटल का पालन करते हुए रॉकेट की तरह टेक ऑफ तो लेती है, मगर ऊपर चढ़ते रहने के बजाय जल्द ही पलटी मार लेती है। फ़िल्म के स्क्रीनप्ले में रश्मि के पैर तो हवा से बातें करते हैं, मगर फ़िल्म की रफ़्तार
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