हिंदी सिनेमा में राजेश खन्ना एक करिश्मे का नाम है। फिल्म 'बंधन' से शुरू करके फिल्म 'मर्यादा' तक 17 लगातार हिट और इनमें से 15 फिल्में सोलो हिट। ये करिश्मा इसके पहले न कभी हुआ और शायद ही कभी अब आगे होगा। सोचें तो ये करिश्मा हुए भी 50 साल से ऊपर का वक्त गुजर चुका है। लेकिन, हिंदी सिनेमा का शौकीन शायद ही कोई ऐसा बच्चा, बूढ़ा और जवान होगा जिसे राजेश खन्ना का नाम न पता हो। सुपरस्टार बनने की वह एक किताब हैं। उनका हर सबक कमाल है। कहानी सुन ली और अच्छी लगी तो फिर फिल्म करनी ही है चाहे फिर शूटिंग दिन रात ही क्यों न करनी पडे। गाने बन रहे हैं तो गीतकार से लेकर संगीतकार और गायक तक के साथ लगातार बैठकी और रिकॉर्डिंग तो कभी मिस ही नहीं करना। वह इसलिए कि किशोर कुमार की गाना गाते समय की हर हरकत राजेश खन्ना अपनी अदाकारी में जो ले आते थे। फिल्म अच्छी बन रही है, इसका भरोसा दिलाने की बारी आए तो निर्माता से पैसे न लेकर फिल्म के वितरण अधिकार ले लेने का सिलसिला भी राजेश खन्ना ने ही शुरू किया। और, निर्देशक से मन लग गया तो फिर तो कहना ही क्या? राजेश खन्ना दरअसल स्टार राजेश खन्ना बने फिल्म 'आराधना' से और उन्हें सुपरस्टार का तमगा दिलाया फिल्म 'कटी पतंग' ने और एक कमाल अभिनेता वह साबित हुए फिल्म 'अमर प्रेम' में। और, तीनों फिल्मों के निर्देशक हैं शक्ति सामंत। शक्ति सामंत निर्देशित फिल्म 'अमर प्रेम' (Amar Prem) को रिलीज हुए 50 साल पूरे हो रहे हैं और इसी फिल्म पर है हमारा आज का बाइस्कोप।
शक्ति सामंत को कहीं से बिभूतिभूषण बंदोपाध्याय की एक कहानी पढ़ने को मिल गई, 'हिंगेर कचौरी' यानी हींग की कचौड़ी। उन्हें ये कहानी बहुत पसंद आई। फिर उन्हें पता चला कि इस कहानी पर तो बांग्ला में एक फिल्म भी बन चुकी है। उन्होंने फिल्म देखी और इसकी चर्चा शर्मिला टैगोर से की। शर्मिला उस दिन शक्ति सामंत से मिलने उनके दफ्तर पहुंची हुई थीं। कहानी सुनने के बाद शर्मिला ने कहा कि ये फिल्म तो अब मैं ही करूंगी। वह वहां से हिली भी नहीं जब तक कि शक्ति सामंत ने उनका नाम ओके नहीं कर दिया। अगली चुनौती थी फिल्म के हीरो की। फिल्मों की जानकारी वाली वेबसाइट्स पर तमाम जगह ये लिखा मिलता है कि इस फिल्म के लिए पहले शक्ति सामंत ने राजकुमार से बात की थी। लेकिन, ये सही नहीं है। शक्ति सामंत ने इस बारे में खुद एक बार बताया, 'मैंने काका (राजेश खन्ना) को जब फिल्म की कहानी सुनाई तो वह छूटते ही बोले कि ये फिल्म मैं करूंगा। आपको कितनी डेट्स चाहिए। मैंने कहा कि काका तुम तो लगातार बिजी हो शूटिंग में तुम्हारे पास डेट्स कैसे होंगी। मुझे तो हर उस दिन तुम्हारी जरूरत पड़ेगी जिस दिन शर्मिला की शूटिंग होगी।' राजेश खन्ना चुप। शक्ति सामंत हैलो हैलो बोलते रहे, दूसरी तरफ से कोई जवाब ही नहीं आया।
राजेश खन्ना को भी ये एहसास हुआ कि उन्होंने शायद जरूरत से ज्यादा फिल्में हाथ में ले ली हैं और शायद इसी के चलते उन शक्ति सामंत की ये फिल्म उन्हें न मिल पाए जिन्होंने उन्हें सुपरस्टार बनाया। लेकिन, उस्ताद आखिर उस्ताद ऐसे ही नहीं होता। वह शागिर्द की मनोदशा तुरंत भांप लेता है। शक्ति सामंत ने कहा, 'काका तुम लगातार शूटिंग कर रहे हो मुझे पता है। लेकिन मुझे ये भी पता है कि तुम शाम 6.30 बजे के बाद शूटिंग नहीं करते। तो मैं तुम्हारे साथ शाम 6.30 बजे के बाद शूटिंग करूंगा।' बात बन गई। राजेश खन्ना ने पहली बार अपने करियर में देर रात तक लगातार छह महीने बस इसी एक फिल्म की शूटिंग की है। शक्ति सामंत ने अपनी शूटिंग की पूरी योजना कुछ इस तरह बनाई कि दोपहर दो बजे की शिफ्ट में शर्मिला टैगोर आतीं, अपने हिस्से की शूटिंग करतीं और फिर शाम 6.30 बजे के बाद राजेश खन्ना आते तो दोनों के साथ वाले दृश्यों की शूटिंग होती। फिल्म 'अमर प्रेम' की पूरी शूटिंग स्टूडियो के अंदर हुई है। सिर्फ दो दिन के लिए फिल्म की यूनिट आउटडोर गई। एक तो फिल्म के पहले दृश्य के लिए जिसमें शर्मिला टैगोर पर एसडी बर्मन का गाया गाना फिल्माया गया है, 'डोली में बिठाई के कहार..'। ये शूटिंग मुंबई के करीब नालासोपारा नामक जगह पर हुई। और, दूसरे दिन फिल्म की यूनिट तब बाहर गई, जब फिल्म का आखिरी दृश्य फिल्माया गया कोलकाता में, जहां शर्मिला टैगोर औऱ विनोद मेहरा के रिक्शे वाले सीन शूट किए गए।
देखा जाए तो फिल्म 'अमर प्रेम' (Amar Prem) की पूरी कहानी का मर्म यही है। पति से दुत्कारी गई पत्नी को शांति तभी मिली जब उसे बेटे का सहारा मिला। लेकिन, फिल्म ये भी बताती है कि पत्नी की बेरुखी का शिकार हुआ पति कहीं न कहीं अपने मन की बातें कहने का आसरा तलाश ही लेता है। फिल्म 'अमर प्रेम' देखा जाए तो पूरा जीवन दर्शन ही है। इस फिल्म में नायक और नायिका के साथ एक बच्चा भी है। तीनों अपनों के तानों से दुखी हैं। और, तीनों आपस में प्रेम की एक ऐसी डोरी में बंधे नजर आते हैं जिसका बस एहसास ही आंखों में पानी ला देता है। फिल्म का नायक आनंद अपनी पत्नी के पार्टियों में मशगूल रहने के चलते एक शाम यूं ही नशे में कोलकाता घूमने निकलता है तो तांगावाला उसे पहुंचा देता एक कोठे के सामने। कोठे में हालात की मारी पुष्पा को गांव का ही एक धूर्त शख्स बेच गया है। मां की दुत्कारी गई बेटी को लगता है यही उसका अब जीवन है। लेकिन, उसके स्वरों को अब भी श्याम की तलाश है और पुष्पा का श्याम आता है आनंद बनकर। वह पूछता भी है, 'तुम्हारा नाम पुष्पा है? मीरा होना चाहिए।'