
43 साल हो गए भारतीय सिनेमा के मशहूर गायक रहे मोहम्मद रफी को दुनिया को अलविदा कहे हुए लेकिन उनके गाए गाने आज भी हिंदी फिल्म संगीत के सुधी श्रोताओं की पहली पसंद बने हुए हैं। मोहम्मद रफी के चाहने वाले हर साल दुनिया भर से मुंबई आते हैं। कोशिश करते हैं कि कहीं तो उनकी याद में कुछ ऐसा दिखे, जो उनके दिल को सुकून और तसल्ली दे लेकिन इसे मुंबई शहर का चलन कहें या सिनेमा में चढ़ते सूरज को ही सलाम करने की आदत कि मोहम्मद रफी का घर तलाशना यहां किसी पहेली से कम नहीं है। ‘अमर उजाला’ ने इसी सिलसिले में उनके घर के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन बांद्रा से उनके घर के रास्ते को नापा और जानने की कोशिश की कि मौजूदा पीढ़ी के लोग उन्हें कितना जानते हैं। इस सफर के आखिर में मिले मोहम्मद रफी के पड़ोसी नईम खान जिन्होंने इस महान गायक की चंद अनजानी बातों से हमें रूबरू कराया। आइए चलते हैं इस सफर पर...
देश के तमाम रेलवे स्टेशनों पर इन दिनों उस स्टेशन के आसपास पैदा हुए या जीवन का लंबा वक्त गुजारने वाले साहित्यकारों व स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में कुछ न कुछ लिखा मिल ही जाता है। लेकिन, बांद्रा रेलवे स्टेशन पर मोहम्मद रफी के बारे मे कहीं कुछ लिखा नहीं मिलता। और, बांद्रा ही क्यों, मायानगरी कहलाने वाले शहर मुंबई में किसी भी रेलवे स्टेशन पर मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के अतीत के बारे में कहीं कुछ लिखा नहीं मिलता। खैर, हम स्टेशन से बाहर निकले और स्टेशन से मोहम्मद रफी के घर पहुंचने की कोशिश की।
लता मंगेशकर के साथ मोहम्मद रफी - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई
'भैया रफी मेंशन चलेंगे?' बांद्रा पश्चिम के रेलवे स्टेशन के बाहर खड़े करीब 10 ऑटो रिक्शा वालों से हमने ये सवाल किया। हर बार जवाब मिला, ये कहां पर है? बांद्रा में शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, संजय दत्त जैसे कई सितारों के घर है। जहां जाना हो तो कोई भी ऑटो रिक्शा वाला फट से वहां पहुंचा देगा। लेकिन, हिंदी सिनेमा के सदाबहार गायकों में से एक शहंशाह-ए-तरन्नुम' के नाम से मशहूर रफी साहब को आज की पीढ़ी नहीं जानती है कि बांद्रा में वह कहां रहते थे। लेकिन, हमने हिम्मत नहीं हारी।
मोहम्मद रफी औऱ गुरु नानक पार्क - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई
मोहम्मद रफी बांद्रा में पाली नाके के पास स्थित गुरु नानक पार्क के पास कहीं रहते थे, इतने से इल्म के सहारे हमने बांद्रा रेलवे स्टेशन से पैदल ही सफर शुरू किया। कार्टर रोड पर चलते चलते बीएमसी के एक बोर्ड पर नजर पड़ी, जिसपर लिखा था पद्मश्री मोहम्मद रफी मार्ग। बीएमसी बोर्ड के नीचे एक शिला पर पर पद्मश्री मोहम्मद रफी मार्ग मार्ग भी लिखा मिला, बहुत गौर से देखने के बाद पता चलता है कि उस पर रफी साहब का छोटा सा फोटो भी है। यहां तक पहुंचने के बाद इतना तो समझ में आ गया कि रफी साहब का घर कहीं आस पास ही होगा।
मोहम्मद रफी औऱ रफी मेंशन के पास बैठी महिलाएं - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई
बांद्रा स्टेशन से कार्टर रोड की तरफ पैदल चलते 12 मिनट बीत चुके थे। पद्मश्री मोहम्मद रफी मार्ग मार्ग पर नजर पड़ने के बाद कार्टर रोड से दाहिनी तरफ मुड़ते ही सामने गुरु नानक पार्क था। सामने वाली इमारत में कभी मिथुन चक्रवर्ती रहा करते थे। पास ही बीती सदी के शोमैन सुभाष घई का दफ्तर हुआ करता था। गुरु नानक पार्क के सामने मूंगफली बेचने वाले शख्स ने पूछने पर मोहम्मद रफी के घर की तरफ इशारा किया। अब्दुल कुद्दूस यहां तीन साल से मूंगफली बेच रहे हैं। हम रफी मेंशन पहुंचे। पांच मंजिला इमारत और नीचे ग्राउंड फ्लोर पर छोटा सी मस्जिद। गेट पर दो महिलाएं बैठी दिखीं।
इन महिलाओं ने बताया कि वे सात साल से यहां रोज बैठती हैं। मस्जिद से निकलते वक्त कोई न कोई कुछ खाने पीने के लिए दे देता है। इन महिलाओं के मुताबिक यहां लोग कभी कभार मोहम्मद रफी के बारे में पूछते पूछते आ जाते हैं लेकिन उनकी सालगिरह या बरसी पर कभी कोई बड़ा जुटान उनकी याददाश्त में अब तक नहीं हुआ। रफी मेंशन में नीचे ही एक रेस्टोरेंट भी है। रुक रुक कर बारिश हो रही थी। तभी नजर गुरु नानक पार्क की दूसरी तरफ बैठे एक शख्स पर पड़ी।
मोहम्मद रफी औऱ नईम खान - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई
बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो इन्होंने अपना मोहम्मद नईम बताया। अयोध्या के रहने वाले हैं, लेकिन उनके वालिद 80 साल पहले ही अयोध्या से मुंबई आ कर बस गए। मोहम्मद नईम की पैदाइश मुंबई की है। उन्होंने बताया, 'मै पास में ही गैरेज में काम करता था। उन दिनों रफी साहब के पास फिएट कार हुआ करती थी। उस कार में कुछ भी खराबी होती थी तो मैं ही उसको ठीक करता था। काफी समय तक उनकी वह कार रफी मेंशन के सामने खड़ी थी, लेकिन पिछले तीन-चार साल से नहीं दिखी। शायद कबाड़ वालों को बेच दी गई।’
मोहम्मद रफी - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई
मोहम्मद नईम बताते हैं, 'मैं 20 बरस का था. जब रफी साहब का इंतकाल हुआ था और सबसे पहले विनोद मेहरा आए थे। जब तक उनका जनाजा उठ नहीं गया, तब तक वह रुके रहे।’ मोहम्मद रफी के बारे में और कुरेदने पर नईम बताते हैं, ‘तब तो ये बंगला हुआ करता था। बंगले के सामने से गुजरते समय अगर रफी साहब अपनी बालकनी में होते तो खुद ही सलाम करते थे। हम ये सुनकर शर्मिंदा हो जाते कि इतनी बड़ी शख्सियत और खुद पहले ही सलाम करते। आज भी उनके घर के सामने से गुजरता हूं तो ऐसा लगता है कि रफी साहब बालकनी में खड़े मुस्कुरा रहे हैं।'
मोहम्मद रफी - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो , मुंबई
मोहम्मद रफी के निधन के बाद उनके बंगले को तोड़कर वहां पांच मंजिला इमारत बनी। भूतल पर बनी मस्जिद को इस दौरान नहीं छेड़ा गया। इस इमारत की पहली मंजिल पर उनकी बेटी और दामाद और पांचवीं मंजिल पर उनके बेटे रहते हैं। मोहम्मद नईम बताते हैं, 'रफी साहब को गाड़ियों और बंगलों का बहुत शौक था। बांद्रा में ही उनके तीन बंगले थे। एक बंगला अल्मोड़ा पार्क के पास था, जिसे रफी पार्क के नाम से जाना जाता है। इस पार्क का नाम अब भले ही गुरु नानक पार्क है लेकिन लोग इसे मोहम्मद रफी पार्क के नाम से ही जानते हैं। उनकी बरसी पर दूर -दूर से लोग आते हैं। उनके बेटे शाहिद से मिलते है। शाहिद ने रफी साहब की याद में एक छोटा सा म्यूजियम भी बनाया है जिसमें रफी साहब से जुड़ी कुछ चीजें रखी हुई हैं।'
