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प्रतीक गांधी बोले, ये तय कर पाना कि क्या सही है और क्या गलत, बड़ी मुश्किल

Shiddhant Shriwas
10 Oct 2021 4:40 AM GMT
प्रतीक गांधी बोले, ये तय कर पाना कि क्या सही है और क्या गलत, बड़ी मुश्किल
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हिंदी की दो फिल्मों ‘लव यात्री’ और ‘मित्रों’ में प्रतीक गांधी ने काम किया लेकिन शायद ही उन्हें किसी ने तब नोटिस किया

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदी की दो फिल्मों 'लव यात्री' और 'मित्रों' में प्रतीक गांधी ने काम किया लेकिन शायद ही उन्हें किसी ने तब नोटिस किया हो लेकिन पिछले साल रिलीज हुई वेब सीरीज 'स्कैम 1992' ने उन्हें ओटीटी का सुपरस्टार बना दिया। प्रतीक की बतौर हीरो पहली हिंदी फिल्म 'भवाई' रिलीज की कतार में हैं। शनिवार को पूरा दिन लोगों ने प्रतीक की वेब सीरीज का एक साल पूरा होने का जश्न मनाया। और, प्रतीक ने भी अपनी इस शोहरत के लिए सीरीज के निर्देशक हंसल मेहता का दिल से आभार जताया। प्रतीक गांधी से 'अमर उजाला' के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल ने ये लंबी बातचीत हाल ही में की। इस बातचीत में प्रतीक ने 14 साल की मेहनत के बाद मिली इतनी बड़ी सफलता, इस सफलता में अपने माता पिता के योगदान और अपन जीवन दर्शन के बारे में खुलकर बातचीत की। इस इंटरव्यू के कुछ अंश 'अमर उजाला' अखबार के नियमित स्तंभ 'बिंदास' में शनिवार को प्रकाशित हो चुके हैं। 'अमर उजाला डॉट कॉम' पर पढ़िए ये पूरा एक्सक्लूसिव इंटरव्यू।

प्रतीक, बीते साल के डिजिटल के तकरीबन सारे पुरस्कार जीतने के बाद का एहसास कैसा है?

एक एक्टर की लाइफ में ये बहुत बड़ा माइलस्टोन होता है जब इतना प्यार मिले दर्शकों से इतना भरोसा मिले मेकर्स से कि लोग आपके साथ और काम करना चाहें। दर्शक आपको और देखना चाहें। मुझे लगता है कि एक एक्टर शायद इसी समय के लिए जीता और काम करता है। मैं अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे इस लाइफटाइम में ये मौका मिला और ये मैं देख पा रहा हूं और अनुभव कर पा रहा हूं।

आप 2005 में थिएटर और 2006 में गुजराती फिल्मों में आ गए, बीच में 'लवयात्री' और 'मित्रों' जैसी हिंदी फिल्मों में भी आप दिखे। लेकिन, किसी हिंदी फिल्म का लीड हीरो बनना, उसके लिए तैयार होना, उसके लिए आपको 14 साल वाकई लग गए, आपका वनवास अब जाकर पूरा हुआ फिल्म 'भवाई' से?

मैं यही मानता हूं कि भगवान ने शायद इसी हिसाब से मेरे लिए प्लान तैयार किया था। मेरे लिए लिफ्ट नहीं बनाई। मुझे हर एक सीढ़ी चढ़कर ही जाना था ऊपर। जैसे आपने कहा कि 14 साल का मेरा समय जो था वह वनवास जैसा था, मेरे लिए ये मेरी तैयारी का समय था, कि मैं इतना तैयार होकर आऊं कि जब मुझे 'स्कैम' जैसा कुछ मिले तो मैं उसे पूरी मेहनत से पूरी हिम्मत से परफॉर्म कर पाऊं।

'स्कैम 1992' में आपको रोल बहुत कुछ हर्षद मेहता से प्रेरित है, तो हंसल मेहता का विजन कितना था इसमें और कितनी प्रतीक गांधी की मेहनत?

मैं तो पूरी क्रेडिट दूंगा हंसल सर को। राइट फ्रॉम द सेलेक्शन, उन्होंने मेरे साथ 'स्कैम' बनाना भी चाहा वही बहुत बड़ा डिसीजन था क्योंकि वो मुझे उस किरदार में देख पाए। उन्होंने ऑडिशन भी नहीं देखा था मेरा। उन्होंने सिर्फ मेरी एक गुजराती फिल्म देखी थी जिसे नेशनल अवार्ड मिला है 2016 में। मुझे एक दो बार नाटकों में देखा है और शायद उसी के चलते उन्होंने मन बनाया कि मैं इस किरदार को करूंगा। दूसरे जिस तरह से कहानी को लिखा गया, उसको एडिट किया गया तो मैं उनसे कहता था कि सर, शायद मैं सालों से ऐसे ही काम करना चाहता था। चाहे स्टेज हो या गुजराती सिनेमा लेकिन पहली बार मैं अच्छे से कैप्चर हुआ कैमरे में।

तो हर्षद मेहता का किरदार गुजराती, उसका निर्देशक गुजराती और उसका एक्टर भी गुजराती..ये सारी चीजें भी काम आईं उस कैरेक्टर को निभाने में?

मुझे लगता है कि बहुत हद तक काम आई हैं ये सारी चीजें इस किरदार को निभाने में क्योंकि हर एक रीजन का हरेक भाषा का अपना एक फ्लेवर होता है फिर चाहे वो बोलने का हो, उस किरदार की बारीकियां निकालने का हो, हेल्प तो मिली ही..

अब जो फिल्म आपकी रिलीज होने जा रही है 'भवाई', जिसका पहले नाम था 'रावणलीला', उसके ट्रेलर में मैंने देखा कि आप बिटवीन द लाइंस जो बात एक कलाकार को निकालनी होती है जो स्क्रिप्ट में नहीं लिखी होती, उसका विरोधाभास दिखाने में आप माहिर हैं..

मेरा विचार बहुत सिंपल है। जो किरदार है उसकी दुनिया क्या है, उसके इमोशंस कहां से कहां तक जा रहे हैं। मुझे सिर्फ उस चीज को समझकर उसे जिंदा करने की कोशिश करना है। कहीं पर आपको ये लग गया कि प्रतीक प्रयत्न कर रहा है राजाराम जोशी का किरदार बनाने का। अगर ये आपको दिख गया तो फिर मैं बतौर अभिनेता फेल हो जाऊंगा। पर आपको अगर लगने लगे कि ये प्रतीक है ही नहीं, पांच, दस सेकेंड या एक मिनट के बाद अगर आप मुझे भूलकर सिर्फ राजाराम जोशी के किरदार को देख रहे हों तो ही उसका असर होता है। मेरा प्रयास यही रहता है कि मैं पूरी तरह से उस किरदार को निभा पाऊं। ताकि आपको उसकी दुनिया दिखे। और जहां तक वो बिटवीन द लाइंस की बात है, लेयर्स की बात है, तो हरेक किरदार में उसकी एक सादगी होती है और उसकी एक जर्नी होती है। जैसे आपने उस सीन के बारे में कहा कि रावण राम से पूछते हैं या कि दो किरदार एक दूसरे से बात करते हैं, तो मैंने उसको अप्रोच ही उस ढंग से किया कि ये जो लड़का है उसने कभी स्टेज पर काम नहीं किया। उसके गांव ने कभी कोई नाटक ही नहीं देखा। तो उसके गांव में जब रामलीला आई तो उसने तो जाकर बोला था कि मुझे राम बनना है अब सिचुएशन ऐसी होती है कि उसे रावण बना दिया गया है स्टेज पर। तो उसके अंदर भी सवाल तो होंगे ना, क्योंकि वो कोई ज्ञानी तो है नहीं। ऐसा मेरे साथ स्टेज पर बहुत हुआ। जब भी आप कोई किरदार करते हो, तो आप जानना चाहते हो बहुत सारी बातें कि ऐसा क्यों हुआ होगा। तो उसी भोलेपन के साथ जो राम का किरदार कर रहे हैं कलाकार, उनके साथ एक वार्तालाप किया है। तो उसने उसी हिसाब से एक सवाल किया है, लेकिन ये सवाल हमारी आज की दुनिया के बारे में भी है। बहुत सारे सवाल हैं।

कुछ दिन पहले मैं आनंद नीलकंठन से बात कर रहा था जिन्होंने बहुत सारी फिक्शन स्टोरीज लिखी हैं, रामायण और महाभारत के आसपास उनके जो छोटे छोटे कैरेक्टर्स हैं। उनका जो असुर नॉवेल था वह भी रामायण के नजरिये से रामकथा को देखने का प्रयास था, उन्होंने अभी एक सीरीज बनाई 'मैनी रामायन्स मैनी लेसन्स', अलग अलग तरह की जो रामायण दुनिया में प्रचलित हैं, उनसे हम क्या क्या सबक ले सकते हैं, 'भवाई' या 'रावणलीला' जो इस फिल्म का पहले नाम था, उसे करते हुए आपको रामायण या रामचरित मानस के बारे में ऐसी कोई नई जानकारी मिली जो आपको लगा हो कि मुझे पहले क्यों नहीं पता थी?

मुझे एक चीज पता चली कि रामायण के इतने सारे वर्जन्स। अपने देश में भी हैं। मलयेशिया में अलग रामायण, इंडोनेशिया में अलग और श्रीलंका में अलग और अलग अलग किरदारों के नजरिये से। और उनके विश्वार के हिसाब से वह रामायण सही भी है। तो ये तय कर पाना बहुत मुश्किल है कि क्या सही है और क्या गलत। एक चीज जो मैं समझ पाया कि जितने भी हमारे ग्रंथ लिखे गए हैं, फिर वो चाहे रामायण हो, महाभारत हो, भगवद्गीता जितने भी। वो सारी चीजें हमें दी गई हैं, उनमें से परिप्रेक्ष्य समझने के लिए। ये सारी बातें हमेशा विवेचना के लिए खुली हुई है। और ये बदलाव हो रहा है। मैंने गीता तीन बार पढ़ी है और हर बार मुझे उसका एक अलग दृष्टिकोण समझ आता है। तो सवाल होने चाहिए तभी जवाब ढूंढे जा सकेंगे।

आपने पढ़ाई लिखाई इंजीनियरिंग की और आप बन गए एक्टर। तो जब माता पिता को पहली बार पता चला होगा कि जिस बेटे को इंजीनियर बनाने के सपने देखे थे, वो जा रहा है हीरो बनने तो उनकी क्या प्रतिक्रिया रही होगी?

अरे पंकज जी, फिर तो आपको ये बात सुनकर बहुत मजा आएगा। मैंने इंजीनियरिंग इसलिए की क्योंकि ये मुझे करनी थी। मुझे बहुत मजा आता था खासकर मैकेनेकिल इंजीनियरिंग में। और थिएटर तो मैं स्कूल में था तब से करता आ रहा हूं। और मेरे घर में तो माहौल ही ऐसा है कि सब हवेली संगीत के लोग हैं। सब शास्त्रीय संगीत में विशारद हैं। उपांतर विशारद हैं। मेरे मम्पी पापा, चाचा चाची, कजिन लोग सब टीचर थे। शिक्षकों का घर ऊपर से संगीत का माहौल। सब लोग आर्टिस्ट तो आर्ट के फील्ड में जाने में मुझे तो मेहनत करनी नहीं पड़ी। इनफैक्ट, घर पर मेरे पिताजी कहते थे कि यार तुमको ये करना है तुम करो। जब मैं 2004 में मुंबई भी आया था तो भी पिताजी कहते थे कि दो चीज से ज्यादा तुम यही करो। मैंने तो 2016 तक जॉब भी किया है फुल टाइम। साथ साथ थिएटर किया। और फिर जाकर जॉब छोड़ी तो वैसी कोई घर में दिक्कत नहीं थी। इनफैक्ट, हमेशा सपोर्ट मिला।

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